प्रदीप कुमार
देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों का एकांगी विकास नहीं होता है, वे सभी क्षेत्रों में महारत हासिल होते हैं। यकीन नहीं होता है तो केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आइए। यहां बच्चों को योग और समाज सेवा का पाठ तो पढ़ाया ही जाता है, वे गीत-संगीत में भी निपुण होते हैं। निर्धारित पाठ्यक्रम के इतर यहां कोई न कोई गतिविधि चलती ही रहती है, जिसमें विषय विशेषज्ञ ज्ञान बांटते हैं। इन दिनों खेल-खेल में संस्कृत वार्तालाप सिखाया जा रहा है और संस्कृत गीतों की धुनों पर छात्र-छात्राएं विभिन्न प्रदेशों के लोकनृत्य कर रहे हैं।
श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इन दिनों बच्चों को संस्कृत में बातचीत के लिए दक्ष बनाया जा रहा है। संस्कृत भारती और व्याकरण विभाग के तत्त्वावधान में आयोजित शिविर में पूर्वाह्न दस बजे से पहले और शाम पांच बजे के बाद दो-दो सत्र चलाए जाते हैं। इनमें बच्चों को वस्तुओं के नाम,पहचान,उच्चारण के साथ ही गायन का अभ्यास भी कराया जाता है। प्रतिभा प्रदर्शन सत्र में छात्र लोकगीतों को संस्कृत में प्रस्तुत करते हैं। लोक के रंगों और हमारी प्राचीन भाषा का यह संगम रुचिपरक होता है। सीखने के क्षेत्र में यह अभिनव प्रयोग है, क्योंकि लोकसंगीत का आत्मा और मन से गहरा नाता होता है और मनोरंजन के साथ सीखना अधिक आसान होता है। बच्चे संस्कृत में अनूदित गीतों पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोकनृत्य करते हैं। क्या बिहू,क्या गरबा,क्या झुमैलो,क्या नाटी और क्या चौंफला इन सबसे अलंकृत संस्कृत और भी ग्राह्य बन जाती है। दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के संयोजक व्याकरण प्राध्यापक डॉ.सूर्यमणि भंडारी बताते हैं कि बच्चों की प्रतिभा निखारने का यह बेहतरीन तरीका है। संस्कृत को लोक से जोड़कर बच्चे उसके प्रति अधिक आकर्षित हो रहे हैं। डॉ.भंडारी के अनुसार संस्कृत से सभी भारतीय भाषाएं उद्भूत हैं, इसलिए संस्कृत के साथ भारतीय लोकनृत्यों का श्रेष्ठ समन्वय हो रहा है। 215 छात्र,छात्राएं इस संभाषण शिविर में भाग ले रहे हैं।
शिविर में संस्कृत बोलचाल का प्रशिक्षण दे रहीं डॉ.वैजयंती माला बताती हैं कि बच्चों को शाम को संस्कृत में ही गेम भी खिलवाये जाते हैं। क्योंकि बच्चों की खेल में रुचि होती है, इसलिए वे खेलों के माध्यम से संस्कृत को भी सहजता से और शीघ्र सीख लेते हैं।
दूसरी ओर श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के बच्चे हर शुक्रवार को रामकुंड घाट पर गंगा आरती करते हैं। आरती से पहले प्रायः घाट पर स्वच्छता अभियान चलाया जाता है। राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्रों के साथ सभी छात्र नदी तट पर प्रयोग की गयी बिखरी पूजा सामग्री को एक जगह एकत्र करते हैं और घाट में बहकर आयी लकड़ियों को हटाते हैं। इससे यहां पर स्नान को जाने वाले लोगों को असुविधा नहीं होती है। एनएसएन कार्यक्रम अधिकारी डॉ.सुरेश शर्मा के अनुसार छात्र रामकुंड घाट पर पिछले एक साल से सफाई करते आ रहे हैं। छात्रों के द्वारा परिसर में भी सफाई अभियान चलाया जाता है। इन छात्रों को बाद में प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है। इससे छात्रों में समाजसेवा के संस्कारों का रोपण होता है।
गंगा आरती कार्यक्रम के संयोजक वेद विभाग के प्राध्यापक डॉ.अमंद मिश्र छात्रों को गंगा आरती करवाते हैं। वे छात्रों को गंगा आरती इत्यादि पूजा-पाठ का विधि-विधान बताते हैं। डॉ.मिश्र के अनुसार संस्कृत पढ़ते-पढ़ते अनेक छात्र पुरोहिताई के कार्यों में सिद्धहस्त तो हो ही जाते हैं,वे विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी भाग लेने योग्य बन जाते हैं। उनके अनुसार संस्कृत के प्रति गहन निष्ठा रखने वाला छात्र कभी भी वृत्तिहीन नहीं रह सकता है।
परिसर निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि समाज में एक भ्रम है कि संस्कृत संस्थानों के बच्चे संस्कृत के अलावा अन्य क्षेत्रों में पिछड़े होते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि संस्कृत के बच्चे संस्कारों के साथ ही सभी विषयों और क्षेत्रों में आगे होते हैं। यद्यपि उन्हें संस्कृत विशेष रूप से पढ़ाई जाती है, परंतु हिंदी, कंप्यूटर, अंग्रेजी, सामान्य ज्ञान का भी बराबर का अध्ययन कराया जाता है। उन्हें समाज-राष्ट्र सेवा के लिए भी संस्कारित किया जाता है। प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम के अनुसार श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर से इस बार पांच छात्रों का नेट-जेआरएफ निकालना बताता है कि यहां पढ़ाई का वातावरण अन्य संस्थानों से कैसा है। पढ़ाई समेत किसी भी क्षेत्र में जाने के इच्छुक छात्र के लिए यहां अवसर ही अवसर हैं। संस्कृत के भी ज्योतिष,वेद,व्याकरण आदि किस क्षेत्र में जाना है,यह छात्र की इच्छा पर निर्भर है। उसे आगे बढ़ाने के लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं।