प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल।
तू प्रेम है तू प्यार है तू जन्नत है मेरी।
तू साक्षात् देवी स्वरूप मां है मेरी।।
तुमसे ही यह जीवन सार्थक हुआ है मेरा।
पहचान है तू मेरी तेरे बिना कुछ नहीं मेरा।।
तुझसे जीवन तुझसे है दुनिया सारी।
तू साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा मां है मेरी।।
तूने ही दुनिया में परिचय कराया है मेरा।
तूने ही दुखो से जीवन उभारा है मेरा।।
बुखार आने पर धरती आसमां एक कर जाती।
मुझ पर आंच न आये तुम कुछ भी कर देती।।
उंगली पकड़कर चलना तूने मुझे सिखाया।
अक्षर ज्ञान से परिचित भी तूने ही कराया।।
मेरी हर बात का कितना ख्याल रखती हो।
घर न पहुंचों जब तक इंतजार करती हो।।
घर आते ही क्या लाये जब बच्चे कहते।
कुछ खाया भी है तूने तुम ही पूछती।।
मतलब का सब प्यार सब दिखाते हैं।
परेशान होने पर मेरे स्वयं दुखी हो जाती है।।
खाना न खाओ मैं तुम स्वयं भी नहीं खाती।
कई बार तो भूखे पेट ही तुम सो जाती।।
एहसास कभी तूने मुझे होने नहीं दिया।
स्वयं बुखार में भी पहले मुझे सुलाया।।
कितनी फिक्र मां तू करती है मेरी।
तू जन्मदात्री मां जो है मेरी।।
तेरा प्रेम अमर है कोई कर नहीं सकता।
तुझसे ज्यादा मुझे कोई समझ नहीं सकता।।
तेरा निस्वार्थ प्रेम दुनिया में सबसे सच्चा।
हर जन्म में तू ही मां हो होता कितना अच्छा।।