प्रेरणा पुंज भी हैं संगम- रुद्रप्रयाग

प्रेरणा पुंज भी हैं संगम- रुद्रप्रयाग एपिसोड-3

गबर सिंह भंडारी

श्रीनगर गढ़वाल —अभी तक आपने नरी लाल निर्वेद की पुस्तक प्रेरणा पुंज भी हैं संगम,पुस्तक के दो एपिसोड्स में देवप्रयाग एवम श्रीनगर गढ़वाल की ऐतिहासिक जानकारी पढ़ी। आज हम उससे आगे की जानकारी दे रहे हैं। आज हम आपको हरिद्वार और ऋषिकेश से क्रमशः 164 और140 किमी दूर रुद्रप्रयाग की ओर ले चलते हैं ।जो कि श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ का मुख्य पड़ाव स्थल है।
जनश्रुति है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो यह उनके चाहने लायक न हो सकी।तो ब्रह्मा ने भगवान विष्णु को याद किया। भगवान विष्णु की भृकुटि से तब एक बालक का जन्म हुआ जो तुरंत रोने लगा।रोने के कारण उस बालक का नाम रुद्र रखा गया। जिसे लिंग के रूप में इस क्षेत्र में अवस्थित कर लिया गया। तभी से यह क्षेत्र रुद्रप्रयाग नाम से जाना जाने लगा। यह नारद मुनि की तपस्थली भी रही है । कहते हैं कि संगीत विद्या की कामना लेकर महर्षि नारद ने यहां सौ वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की और उन्हें संगीत की शिक्षा देने का अनुरोध किया।तब प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सप्त स्वरों वाली महती नाम की वीणा प्रदान की।रुद्रप्रयाग तीर्थ अलकनंदा और मंदाकिनी (जिसे काली गंगा भी कहते हैं)नदियों के किनारे बसा प्रमुख धार्मिक स्थल है। रुद्रप्रयाग स्वयं एक जिला है। जिसके हिस्से में केदारनाथ क्षेत्र आता है।रुद्रप्रयाग से ही मंदाकिनी नदी के सहारे सडक़ मार्ग से केदारनाथ मार्ग को रास्ता जाता है।जबकि यहींसे दूसरा मार्ग श्री बद्रीनाथ को चला जाताहै।
रुद्रप्रयागे तन्वंगी सर्वे तीर्थात्तमे शुभे,
महान्ति यत्र नागश्च शेषाधास्ताम्भ आचरण।।
अर्थात रुद्रप्रयाग सभी तीर्थों में उत्तम है।यहां भगवान श्री बद्री विशाल के चरणों को स्पर्श करती अलकनंदा जो कि विष्णु स्वरूप है और भगवान केदारनाथ के चरणों को स्पर्श करती मंदाकिनी जो कि शिव स्वरूप है, का मिलन स्थल ही रुद्रप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध है।दोनों नदियों का भव्य संगम हृदय को बहुत ही आनन्दित करता है। कहते हैं कि इस संगम तट पर डुबकी लगाने मात्र से ही साक्षात शिव आत्मा रूढ़ हो जाते हैं।यहां के स्नान तथा त्रिरात्री निवास को स्वर्ग से भी बढ़कर माना गया है।
अन्य प्रमुख धार्मिक स्थल
कोटेश्वर
रुद्रप्रयाग मुख्यालय से लगभग 3 किमी दूर अलकनंदा तट पर स्थित कोटेश्वर महादेव शिव भक्तों का अटूट आस्था का केंद्र है। कहते हैं कि यहां कण कण में भगवान शिव विराजमान हैं ।
रुद्रनाथ का मंदिर
यह मंदिर ठीक अलकनंदा नदी और मंदाकिनी नदी के संगम के ऊपर अवस्थित है।यह पवित्र स्थल नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर प्राचीन मंदिर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर
कोटेश्वर से 3 किमी की दूरी पर ही एकांत में भगवान लक्ष्मीनारायण का मंदिर है।यहां पर अनेक मंदिर समूह विद्यमान हैं ।जो उचित देखभाल के अभाव में नष्ट होते जा रहे हैं।इसके अतिरिक्त यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शिव पार्वती का मंदिर , गणेश मंदिर भी है। साथ ही वेद तथाज्योतिष प्रचार प्रसार के लिए संपूर्णानंद संस्कृत महाविद्यालय भी एक प्रमुख शिक्षा स्थल भी है । संगम के ऊपर माँ चामुंडा का मंदिर भी अवस्थित है।इसके अतिरिक्त हनुमान जी का मंदिर भी दर्शनीय एवम पूजनीय स्थल है।
समुद्रतल से ऊँचाई
रुद्रप्रयाग की समुद्रतल से ऊँचाई लगभग 670 मीटर है।
प्रमुख होटल
रुद्रप्रयाग के प्रमुख होटलों में होटल पुष्पदीप , देवलोक, मंदाकिनी होटल पिनाकी होटल मोनाल होटल आदि हैं।
प्रमुख धर्मशाला
यहां बाबा काली कमली धर्मशाला बिड़ला आवास,बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति धर्मशाला , लोक निर्माण विभाग निरीक्षण भवन तथा गढ़वाल मंडल विकास निगम के पर्यटक आवास उपलब्ध हैं।
मौसम
रुद्रप्रयाग भी अलकनंदा और मंदाकिनी के किनारे बसा होने के कारण गर्म है घाटी में बसा होने के कारण यहां की जलवायु शीतोष्ण है।
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।