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डी.डी. कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार (10 एवं 11 जनवरी 2025): “पर्वतीय क्षेत्रों में अर्थ व्यवस्था एवं पर्यावरणीय स्थिरता”

देहरादून- उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहां की समृद्धि और पारंपरिक जीवनशैली हमेशा से वैश्विक ध्यान आकर्षित करती रही है। लेकिन, समय के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जिनमें से प्रमुख हैं—आर्थिक असमानता, पलायन, प्राकृतिक आपदाएँ और पर्यावरणीय असंतुलन। इन समस्याओं के समाधान हेतु दीर्घकालिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से योजनाओं की आवश्यकता महसूस की जाती है। इसी संदर्भ में, डी.डी. कॉलेज, देहरादून में 10 और 11 जनवरी 2025 को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई. सी. एस. एस. आर.) के तत्वावधान में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका प्रमुख विषय था—”पर्वतीय क्षेत्रों में अर्थ व्यवस्था एवं पर्यावरणीय स्थिरता”।

इस सेमिनार का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों में समग्र और संतुलित विकास के लिए विचारों का आदान-प्रदान करना था। संगोष्ठी में विशेषज्ञों, अकादमिक जगत के प्रतिष्ठित विद्वानों और छात्रों ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा की। सेमिनार का उद्घाटन

सेमिनार का उद्घाटन 10 जनवरी 2025 को हुआ, जिसका आयोजन कॉलेज के सभागार में हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रमुख अतिथियों ने की, जिनमें प्रोफेसर एन. के. जोशी (वाइस चांसलर, श्री देव सुमन विश्वविद्यालय), डॉ. वी. ए.वी. रामन (अध्यक्ष), प्रो. बी. एस. दहिया (विशिष्ट अतिथि, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली), जितेंद्र यादव (चैयरमैन, डी.डी. कॉलेज), डॉ. वी. के. त्यागी (निदेशक), और डॉ. ज्योत्सना रमोला (प्राचार्य, डी.डी. कॉलेज) शामिल थे।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ की गई, जिसमें छात्राओं ने मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति दी। बाद में, सेमिनार संयोजिका डॉ. ज्योत्सना रमोला ने अतिथियों को सम्मानित करते हुए संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन किया। इस दौरान उपस्थित सभी अतिथियों ने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर अपने विचार व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि प्रो. एन. के. जोशी ने अपने उद्घाटन भाषण में पर्वतीय क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता और पर्यावरणीय सुरक्षा के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा, “पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए आर्थिक स्थिरता की आवश्यकता है, लेकिन इसमें पर्यावरणीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कदम उठाने होंगे। उत्तराखंड में अनियोजित विकास ने कई प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दिया है, और हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।” उन्होंने यह भी बताया कि राज्य को अब पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है।

डॉ. वी. के. त्यागी सेमिनार निदेशक, ने भी पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और पर्यावरणीय असंतुलन पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने पर्यटन को लेकर अवैज्ञानिक विकास योजनाओं पर चिंता जताते हुए इसके सुधार के लिए ठोस उपायों का सुझाव दिया।

कॉलेज के चैयरमैन श्री जितेंद्र यादव ने अपने भाषण में पर्वतीय क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का विवेकपूर्ण समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है, ताकि उनकी समस्याओं को सही तरीके से समझा जा सके और उनका समाधान किया जा सके।

कॉलेज प्राचार्या डॉ. ज्योत्सना रमोला ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी के सफल आयोजन में सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया।

पैनल सत्र

दोपहर 12 बजे से सेमिनार का पहला पैनल सत्र शुरू हुआ। इस सत्र में डॉ. वी. के. त्यागी ने अध्यक्ष की भूमिका निभाई, जबकि तेजवीर सिंह राणा, डॉ. पंकज कुमार, और डॉ. अमृता बजाज पैनलिस्ट के रूप में शामिल हुए। पैनल सत्र में विभिन्न विशेषज्ञों ने पर्वतीय विकास योजनाओं के बेहतर प्रबंधन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकास कार्यों को लागू करने की आवश्यकता पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि, “पर्वतीय क्षेत्रों में योजनाओं का कार्यान्वयन बिना स्थानीय परिस्थिति और पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषण किए नहीं किया जाना चाहिए।” विशेषज्ञों ने पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक और संतुलित रणनीतियों पर जोर दिया।

तकनीकी सत्र

दिन के दूसरे हिस्से में प्रथम तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया, जो दोपहर 2:30 बजे से शुरू हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. तेजवीर सिंह राणा ने की, जबकि मिस शेफाली अदलखा प्रतिवेदक थीं। इस सत्र में विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों से आए शोधार्थियों ने अपने शोध पत्रों की प्रस्तुति दी। ये शोध पत्र पर्वतीय क्षेत्रों में आर्थिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित थे।

शोधार्थियों ने विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए, जैसे—पर्वतीय क्षेत्रों में जैव विविधता का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, पर्यावरणीय नीतियों की समीक्षा, और सामुदायिक आधारित पर्यटन के लाभ। हर एक शोध पत्र में तथ्यों और साक्ष्यों के माध्यम से पर्वतीय विकास के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम

सेमिनार के पहले दिन का समापन एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ, जिसमें कॉलेज के विद्यार्थियों ने विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों को नृत्य, संगीत और अन्य कला रूपों के माध्यम से प्रस्तुत किया। विद्यार्थियों ने उत्तराखंडी, हिमाचली, कुमाऊंनी और गढ़वाली लोक नृत्य प्रस्तुत किए, जो उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गए। यह सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ पर्वतीय क्षेत्रों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और जीवनशैली को दर्शाती थीं।

इस दो दिवसीय सेमिनार का समापन 11 जनवरी 2025 को हुआ। सेमिनार ने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए एक स्पष्ट दिशा दिखाई, जिसमें पर्यावरणीय सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और सामुदायिक भागीदारी को प्राथमिकता दी गई। इस संगोष्ठी ने यह सिद्ध किया कि पर्वतीय क्षेत्रों में सतत विकास की दिशा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता अत्यंत आवश्यक है।

संगोष्ठी में प्रस्तुत विचारों और सुझावों से यह स्पष्ट हुआ कि यदि पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की प्रक्रिया को पर्यावरणीय असंतुलन से बचाते हुए लागू किया जाता है, तो न केवल इन क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है, बल्कि पूरे राज्य और राष्ट्र के लिए यह एक आदर्श बन सकता है।

डी.डी. कॉलेज ने इस सेमिनार के आयोजन के माध्यम से एक महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दे पर बहस शुरू की है, जो आने वाले समय में उत्तराखंड और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए मार्गदर्शक बन सकती है।

By admin