पुस्तकें सबसे अच्छी दोस्त हैं, उन्हें प्यार करो
, देहरादून! संजय आर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर एवं सेवा सोसाइटी के द्वारा विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर जनजागरूकता व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय श्री सुनील उनियाल गामा जी, महापौर, नगर निगम, देहरादून थे। कार्यक्रम में अति विशिष्ठ अतिथि पद्मश्री से सम्मानित डॉ. माधुरी बर्थवाल, प्रो. जे. पी. पचौरी कुलपति, विशिष्ठ अतिथि श्री असीम शुक्ला, श्री पारितोष किमोथी, अतिथि वक्ता डॉ. राम विनय सिंह, श्री जसवीर सिंह हलधर, श्रीमती डौली डबराल, श्री शादाब अली, श्री विश्वम्बर नाथ बजाज, श्रीमती सविता मोहन, डॉ. सुजाता संजय, डॉ. गौरव संजय, एवं कार्यक्रम की अध्यक्षा डॉ. सुधारानी के संचालक श्रीकांत एवं मीरा, यहाँ पर उपस्थित महानुभावों, आर्युवेद कॉलेज के छात्र, मास-मीडिया एवं संस्था के सभी कर्मचारी थे।
विश्व साहित्य के लिये 23 अप्रैल एक महत्वपूर्ण तारीख है। यह पूरे विश्व के लोगों के द्वारा हर वर्ष मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है। इस दिन ग्राहक को रिझांने के लिए विक्रेता हर एक किताब पर एक गुलाब देते हैं जिससे पाठक किताबें पढ़ने के लिये प्रोत्साहित हों और सम्मानित महसूस करें।
मुख्य अतिथि माननीय श्री सुनील उनियाल गामा जी, महापौर, नगर निगम, देहरादून के द्वारा अन्य अतिथियों की उपस्थिति में दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। सभी अतिथिगणों ने पुस्तकों के महत्व के ऊपर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन के दौरान सभी नागरिकों से अपील की कि शहर को स्वच्छ और हरा-भरा रखने के लिए यह एक संयुक्त प्रयास होना चाहिए ताकि हम शहर की स्वच्छता रैंकिंग में सुधार कर सकें। डॉ. सुधा रानी पांडेय पूर्व कुलपति ने आयोजक व अतिथियों को सुझाव दिया कि युवा पीढ़ी के हित के लिए भविष्य में इस तरह का कार्यक्रम आयोजित किया जाए।
पद्मश्री डॉ. बी. के. एस. संजय ने कहा कि हमारे शास्त्रों में लिखा है कि विचारः परम ज्ञानम अर्थात विचार परम ज्ञान है और यह भी लिखा है- ज्ञानम परम् बलम ज्ञान सबसे बड़ा बल है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत पड़ती है वरना दोनों मर जाते हैं। पुस्तकें किसी भी विचार के प्रचार-प्रसार का अच्छा, सस्ता और स्थायी माध्यम हैं।
हजारों साल पहले सिखाने का अधिकार गुरू का था। जिससे ज्ञान का प्रचार और प्रसार सीमित था।
आपने पढ़ा भी होगा और सुना भी होगा द्रोणाचार्य का दृष्टान्त। जिन्होंने कर्ण और एकलव्य को शिक्षा देने से इंकार कर दिया था। पुस्तकें किसी भी विचार के प्रचार-प्रसार का अच्छा, सस्ता और स्थायी माध्यम हैं।
लेखक लिखने के बाद मर जाते हैं पर पुस्तकें अमर रहती हैं जैसे हमारे ग्रंथ रामायण, महाभारत, कुरान, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहब, आगाम और पिटिक इत्यादि। जब हम कोई पुस्तक पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है मेरा लेखक से सीधा साक्षात्कार हो रहा है और यही भावना उसमें लेखकों की लेखन के साथ अमर बनाती हैं।
पुस्तकें ऐसी दोस्त हैं कि जब भी आप उनका साथ चाहते हो वह आपके साथ हो जाती हैं और अपने पूरे कर्तव्य और जिम्मेदारी निभाती हैं। उनके लिए समय और परिस्थितियों की बाधता नहीं होती है जैसे कि व्यक्तियों के साथ होती है। पुस्तकें दोस्त ही नहीं, हम सबके जीवन में शिक्षकों, गुरुओं या फिर मार्गदर्शकों का कार्य करती हैं। बचपन से ही जिन बच्चों को किताब पढ़ने की आदत होती है वही बच्चे अपने-अपने क्षेत्रों में प्रगति करते हैं और उन्नति करते हैं क्योंकि उनको बनाने में उनकी पुस्तकों और शिक्षकों का ही योगदान होता है। जब पुस्तक दिवस मनाने का आप एक आदत डाल लेंगे तो यह आदत आपमें ही नहीं आपके आने वाली पीढ़ियों में भी आ जाएगी। मेरी तो इच्छा है कि यह दिवस अपने देश में दीवाली और ईद की तरह मनाया जाना चाहिए।