प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। देवभूमि उत्तराखंड हिमालयी की संस्कृति में मौलाराम तोमर प्रख्यात चित्रकार एवं इतिहासकार गढ़वाल कला जगत के प्रसिद्ध लोकप्रियता पर उनकी कलाकृतियों से उदीयमान और नवोदित कलाकार सदैव प्रेरणा प्राप्त करते रहेंगे।
मौलाराम तोमर भारतीय चित्रकला की विभिन्न शैलिया पहाड़ी कलाओं में गढ़वाली कला में अपनी अद्वितीय प्रतिभा से एक प्रतिष्ठित पहचान दिलाई है।
मौलाराम तोमर गढ़वाल कला पहाड़ी शैली के संस्थापक थे जिनकी खेती देश-विदेश में रही है, सच्चे अर्थों में भविष्य दृष्टा कवि थे। पर्वतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि में उत्तराखंड की पूण्यभूमि श्रीनगर में महान चित्रकार मौलाराम तोमर ने संस्कृत साहित्य, सामाजिक विषय तथा धार्मिक वातावरण व कथाओं का चित्रित किया, पहाड़ी कला का विस्तार उनकी सर्वोच्च उपलब्धि रही है, उनकी चित्रकला की कलाकृतियां विभिन्न कलाकेदों, राजाओं के महलों, प्राचीन महल, मंदिरों में उनकी कला के उत्कृष्ट नमूने वास्तुकला, कलाप्रेमी की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
मौलाराम तोमर ने गढ़वाल के राजाओं की चित्रकारी से पर्याप्त ख्याति अर्जित की थी।
मौलाराम तोमर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिनका परिचय उनकी चित्रकला तथा काव्य कृतियाें से मिलता है, स्वयं प्रतिभावान होने के साथ-साथ चित्रकला को उजागर किया,पहाड़ी चित्रकला, कलाकृतियां उच्च कोटि को प्राप्त करने में उनका मुख्य योगदान रहा है।
मौलाराम तोमर द्वारा गढ़वाली शैली में विभिन्न विषयों चित्र बने हैं उनमें पहाड़ी कला,पहाड़ी संस्कृति, देव संस्कृति पर अत्यंत सुंदर कलात्मक चित्र बनाए हैं।
गढ़वाली चित्र शैली में उनके द्वारा प्राकृतिक दृश्य में वृक्षलता, नदी, वृक्ष उपवनों के सौंदर्य चित्रण, प्राकृतिक दृश्य में गढ़वाली चित्र शैली गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर का चित्रण इसके साथ ही पुराने राजमहल की भी आकृतियां, देवी देवताओं की आकृतियां,गढ़वाली लोक कला, पर्वतीय कला पहाड़ी स्त्रियों के सुंदर चित्रण, कांगड़ा चित्र शैली, चंबा चित्र शैली कहीं स्मरणीय प्रकृतियां चित्रकार ने अत्यंत कलात्मकता दुर्लभ चित्रों को समृद्ध किया है।
मौलाराम तोमर विश्वविख्यात चित्रकार व गौरवशाली कवि की प्रतिमा राजकीय संयुक्त चिकित्सालय परिसर श्रीनगर में स्थित है, राष्ट्र की विशाल पृष्ठभूमि पर आज भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कला के क्षेत्र में गढ़वाल कला का एक विशिष्ट स्थान है साहसिक चित्रकार महाकवि मौलाराम का अनायास ही स्मरण करा देता है और उत्तराखंड जनमानस के हृदय में स्वाभिमान व ऐतिहासिक अलौकिकता की प्रति कला प्रेमियों व बुद्धिमानों के सदा प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
इस महान कला प्रवर्तक साहित्यकार व कवि एवं भविष्यवक्ता जिनकी आज भी अनूठी चित्रकला है जिन्होंने साहित्यिक दृष्टि से भाषा की अनेकता में एकता का प्रश्न हल किया था ऐसे मनीषी को इतिहास साहित्य में उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है।