मैंने कई नई नवेली माताओं को सुना और देखा जो कहते हैं हमारा बच्चा जब तक मोबाइल ना देखे खाना नहीं खाता दूध नहीं पीता। नन्हें-मुन्ने बच्चे कार्टून देखते देखते कब आभासी दुनिया के गिद्धों के गिरफ्त में आ जाते हैं पता ही नहीं चलता।
इस आभासी मंच पर अपने आप को अच्छे से प्रस्तुत करने के लिए एक जद्दोजहद जारी है ।सब के अलग-अलग सपने अलग-अलग किरदार। एक बात जो कॉमन है वह है कि हम सब की आंखों में एक पर्दा पड़ गया है ,उस पर्दे से हमने अपना बुद्धि विवेक खो दिया है।सच्चाई से दूर आभासी दुनिया में वास्तविक प्रेम की तलाश करते हैं क्योंकि आभासी दुनिया में हमें चेहरों, व्यक्तित्व और विचारों कीकुरूपता नजर नहीं आती और यही कारण है कि हमारी आंखों को आभासी सुंदरता की आदत हो जाती है हम भूल जाते हैं कि जिस दिन हमारा आमना सामना होगा हम अपने आप से नजरें मिलाने के योग्य ना रहेंगे। और, यही सब हो रहा है हमारी बच्चियों के साथ। अखबार हो या सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म सब में एक ही बात बेटी गायब बेटा गायब आखिर कहां जा रहे हैं बच्चे ???सरकारी आंकड़े भी कहते हैं कि भारत में हर 3 मिनट में एक बच्चा और हर 8 मिनट में एक वयस्क गायब होता है ।कुछ झूठे प्यार के जाल में भागते हैं तो कुछ अपनों की अनदेखी का शिकार होते हैं। आश्चर्यजनक रूप से जब लोगों के पास एक या दो बच्चे हैं तब बच्चे ज्यादा गायब हो रहे हैं एक जमाना था 10 और 12 बच्चे होते थे और एक अकेली मां खेती, जंगल, जानवर ,खाना पानी, कपड़ा बड़े-बड़े परिवार के साथ में इतने सारे बच्चों को अपने आंचल में समेटे हुए रहतीं ।
जो परिणाम सामने आ रहे हैं उन पर हमें आश्चर्य व्यक्त करना भी नहीं चाहिए एक उन्मादी माता-पिता और आत्मकेंद्रित समाज से आप उम्मीद भी क्या कर सकते हैं । परसव पीड़ा सहनी नहीं,बच्चे को बार बार पेशाब ना ले जाना पड़े इसलिए डायपर पहना दो, अपना फिगर खराब ना हो जाए या आराम में खलल ना पड़े इसलिए स्तनपान ना कराओ । खर्चे इतने बढ़ गए हैं की छोटी मोटी सही नौकरी करनी आवश्यक है सीमित साधनों में जीवन चलता नहीं।बच्चे नौकरों के भरोसे हैं ।बुजुर्ग माता-पिता बोझ नजर आ रहे हैं। कुछ तो बुजुर्गों के भी दिमाग खराब है जिन्हें लगता है कि उनके बेटे बहू अपने बच्चे पलवाने के लिए उन्हें अपने साथ रखना चाहते हैं। पति-पत्नी तक को आपस में स्पेस और फ्रीडम चाहिए बच्चों को अपना पर्सनल स्पेस चाहिए, रही सही कसर फ्री डाटा और डिजिटल इंडिया ने कर दी है हर हाथ में मोबाइल और वर्चुअल एसगाह मौजूद है। बेटा बेटी मोबाइल में क्या देख रहे हैं माता पिता को कहां फुर्सत है क्योंकि उन्हें भी तो अपने मोबाइल में स्टेटस अपडेट करने हैं। इस सब के बावजूद कहते हैं कि बेटियां घर से क्यों भाग रही है?? माहौल खराब है!!! माहौल खराब नहीं है !हम सब मानसिक बीमारियों से ग्रसित हैं जब बच्चों को आपके अटेंशन की जरूरत है एक भावनात्मक रिश्ता बनाने की जरूरत है उस समय आप उनके पास ही मौजूद नहीं है ।आप उनकी बात नहीं सुनते जब कोई बाहर वाला चाहे झूठा ही सही वह प्यार उन्हें देने लगता है तो वे आसानी से असामाजिक तत्वों की गिरफ्त में आ जाते हैं। नतीजा ट्रैफिकिंग के दलदल में फंसते हमारे मासूम बच्चे और बच्चियां ।कुछ लोग कहते हैं कि परिवर्तन समाज का हिस्सा है लेकिन ऐसा परिवर्तन जो समाज ही ना रहने दे उसका कैसा स्वागत कब तक बच्चों को कटते पिटते और मरते देखोगे।
अभी भी समय है संभलना होगा।
लेखिका – विभा पोखरियाल नौडियाल शिक्षिका, केंद्रीय विद्यालय संगठन
नोट :लेखक के व्यक्तिगत विचार है
प्रस्तुति- गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल