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 चमोली/बदरीनाथ, चमोली जनपद के सीमांत गांव माणा में स्थित केशव प्रयाग में 12 वर्षों बाद एक बार फिर पुष्कर कुंभ का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चार व धार्मिक विधि-विधान के साथ हो गया है। अलकनंदा और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर आयोजित इस विशेष आयोजन को लेकर तीर्थयात्रियों की भीड़ बदरीनाथ धाम और माणा गांव दोनों में बढ़ती जा रही है।

इस अवसर को भव्य, सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाने के लिए प्रशासन और पुलिस ने चाक-चौबंद तैयारियाँ की हैं। कुंभ की महत्ता और सांस्कृतिक समरसता को लेकर मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे ‘उत्तर और दक्षिण भारत की आध्यात्मिक एकता का प्रतीक’ बताया है।

मुख्यमंत्री ने पुष्कर कुंभ को बताया भारत की एकता का प्रतीक

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने पुष्कर कुंभ को लेकर कहा कि—

तीर्थ स्थल केवल आस्था के केंद्र नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय एकता के जीवंत उदाहरण भी हैं। माणा गांव में हो रहा पुष्कर कुंभ, उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक सेतु की भूमिका निभा रहा है।

उन्होंने कहा कि इस आयोजन के माध्यम से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना सशक्त होती है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु एक साथ एकत्र होकर भारतीय संस्कृति की महान परंपरा को जीवंत करते हैं।

प्रशासन ने किए व्यापक इंतजाम

जिलाधिकारी श्री संदीप तिवारी ने बताया कि—

  • पैदल मार्गों का सुधारीकरण किया गया है।
  • श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए हिंदी, अंग्रेजी और दक्षिण भारतीय भाषाओं में साइन बोर्ड लगाए गए हैं।
  • पुलिस बल व एसडीआरएफ की तैनाती की गई है।
  • तहसील प्रशासन को व्यवस्थाओं की नियमित मॉनिटरिंग के निर्देश दिए गए हैं।

श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए सभी विभागों को आपसी समन्वय के साथ कार्य करने के निर्देश दिए गए हैं,” – जिलाधिकारी तिवारी।

पुष्कर कुंभ का ज्योतिषीय महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब बृहस्पति (गुरु ग्रह) मिथुन राशि में प्रवेश करता है, तब केशव प्रयाग में पुष्कर कुंभ का आयोजन होता है। यह योग हर 12 वर्षों में बनता है। इसलिए माणा में यह आयोजन अत्यंत दुर्लभ और विशेष महत्व रखता है।

इस आयोजन में मुख्य रूप से दक्षिण भारत के वैष्णव संप्रदायों से जुड़े हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। वे यहां आकर केशव प्रयाग में स्नान, पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

केशव प्रयाग का उल्लेख हिन्दू धर्मशास्त्रों और महाकाव्यों में भी मिलता है। मान्यता है कि—

  • यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी।
  • दक्षिण भारत के महान आचार्य श्री रामानुजाचार्य और श्री माध्वाचार्य ने यहीं मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया था।
  • यह स्थान सप्तबदरी तीर्थ और व्यास गुफा के समीप स्थित होने से भी विशिष्ट है।

इन मान्यताओं के चलते माणा गांव धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण बनता है।

श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण और अध्यात्म का संगम

पुष्कर कुंभ के दौरान माणा गांव में—

  • धार्मिक संगोष्ठियाँ
  • कथावाचन, प्रवचन और भजन-कीर्तन
  • संस्कृत पाठशालाओं के विद्वानों द्वारा शास्त्रीय अनुष्ठान
    का आयोजन किया जा रहा है।

तीर्थयात्री स्नान के बाद केशव मंदिर, व्यास गुफा, भीम पुल और गणेश गुफा में दर्शन कर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर रहे हैं।

‘बॉर्डर विलेज’ के रूप में माणा की नई पहचान

भारत सरकार की ‘वाइब्रेंट विलेज योजना’ के अंतर्गत माणा गांव को बॉर्डर पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। पुष्कर कुंभ के आयोजन से इस गांव की धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं और अधिक उजागर हो रही हैं।

12 वर्षों बाद हो रहा पुष्कर कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का उत्सव बनकर उभरा है। जहां उत्तर के हिमालय की शांति और दक्षिण के भक्ति मार्ग का मिलन केशव प्रयाग के निर्मल जल में परिलक्षित हो रहा है। माणा गांव आज राष्ट्रीय एकात्मता, सांस्कृतिक समरसता और धार्मिक पवित्रता का एक अद्भुत केंद्र बन चुका है।

 

By admin