‘माघ पूर्णिमा’ कल्पवास की पूर्णता का पर्व संकल्प, साधना, समृद्धि और संतुष्टि का पर्व   -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

माघ पूर्णिमा की शुभकामनायें
‘माघ पूर्णिमा’ कल्पवास की पूर्णता का पर्व
संकल्प, साधना, समृद्धि और संतुष्टि का पर्व  
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 5 फरवरी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने माघ पूर्णिमा की शुभकामनायें देते हुये कहा कि यह पर्व समृद्धि, सामंजस्य, समरसता और सद्भाव लेकर आयेगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माघ पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) से फाल्गुन माह की शुरुआत हो जाती है इसलिये भी माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख मिलता है कि माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजी में निवास करते हैं इसलिये इस दिन गंगाजी में स्नान, ध्यान और गंगा जल के स्पर्शमात्र से आत्मिक आनन्द और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने कहा कि माँ गंगा के पावन तट समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। समरसता सामाजिक पूंजी है जो शांति की वृद्धि हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हमारे शास्त्रों में जड़, चेतन, प्रकृति, नदियां, पर्वत, ब्रह्माण्ड, नक्षत्र और समस्त तारामंडल का ज्ञान समाहित है। नक्षत्रों के नाम पर हमारे अनेक तीर्थों, पर्वो और त्यौहारों का नामकरण हुआ है और मघा नक्षत्र के नाम पर ‘माघ पूर्णिमा‘ की उत्पत्ति हुई है। पुराणों के अनुसार माघ माह में देवता व पितरगण सदृश होते है इसलिये माघ माह में प्रभु आराधना, स्नान, ध्यान, दान और पितरों का तर्पण आदि सुकृत्य करने का विधान है। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में उल्लेख है कि माघ पूर्णिमा के दिन ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ का जाप करते हुए स्नान व दान करना अत्यंत फलदायी होता है।
माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह नदियों के शीतल स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।
जल की महत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारी नदियां है। जल ही तो है जिसने सब को अपनी ओर आकर्षित किया है। गंगा जी के जल में करोड़ों श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के स्नान करते हंै तथा जीवन के अन्तरिम आनन्द का अनुभव कर रहे है परन्तु अब समय आ गया है कि ’’जल चेतना जन चेतना बने’’ ‘‘जल क्रान्ति जन क्रान्ति बने’’ ताकि जल को लेकर आगे आने वाले संकटों का समाधान हो सके। जल का संरक्षण और संवर्द्धन अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जल है तो जीवन है, जल है तो कल है, जल है पूजा है और प्रार्थना है।
जल के बिना दुनिया में शान्ति की कामना नहीं की जा सकती। जल विशेषज्ञों के अनुसार आगे आने वाला समय ऐसा भी हो सकता है कि लोग जल के लिये युद्ध करें या विश्व में सबसे ज्यादा जल शरणार्थी भी हो सकते हैं इसलिये हमें जल की महत्ता को समझना होगा, जल केवल मानव जाति के लिये ही जरूरी नहीं है बल्कि पृथ्वी पर जो भी कुछ हम देख रहे है वह जल के बिना असम्भव है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी नदियां तो प्रकृति और धरती की जलवाहिकायें है इसलिये नदियों में स्नान के साथ उन्हें स्वच्छ, प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त रखना भी हमारा परम कर्तव्य है।