प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। सेब में छेदक कीट जड़ों,तने तथा शाखाओं को क्षति पहुँचाते हैं जिससे पौधे कमजोर पड़ जाते हैं और कई बार मर भी जाते हैं। पौधे के ऊपरी भागों में छिद्रक कीट की मौजूदगी का पता छेद से बुरादा या कीट की विष्ठा की गोलियों या सिरे की सूखी टहनियों से लगाया जा सकता है। किन्तु जड़ छेदक कीट को वाहर से नहीं देखा जा सकता पौधों पर इस कीट के संक्रमण के लक्षण प्रायः तभी देखे जाते हैं जब काफी नुकसान पहले ही हो चुका होता है। रूट बोरर के आक्रमण से पौधे में सीधापन नहीं रहता,पौधा हवा से हिलने-डुलने लगता है,पौधा छोटा व कमज़ोर हो जाता है तथा उसकी बढ़ौतरी रूक जाती है। पत्तियां छोटी,पीली-हरी पड़ जाती है और धूप में मुरझाई सी हो जाती हैं। मुख्य जड़ कट जाने पर पौधा गिर जाता है। कमजोर पौधों एवं रेतीले दोमट भूमि में इसका अधिक प्रकोप होता है।
किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति,स्वभाव ,पहिचान,प्रकोप,जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें,तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है। इस कीट की चार अवस्थाएं 1.वयस्क वीटल 2. अन्डा 3.लार्वा/ वोरर तथा 4.प्यूपा हैं।
जून माह में पहली बारिश के बाद इस कीट के वयस्क भूमि में उपस्थित प्यूपा अवस्था से वाहर निकल ते हैं। बीटल भूरै से गहरे काले रंग के 1 से 1.5 इंच बढ़े होते हैं जिनके पन्खों के नीचे की तरफ काले रंग की कई धारियां होती हैं। जून मध्य से जुलाई माह के बीच मादा वयस्क कीट अन्डे देती है।एक मादा वयस्क कीट एक बार में 150-200 अन्डे देती है जिन्हें वह अलग-अलग जगहों पर भूमि के अन्दर छोड़ती है। लगभग दो सप्ताह बाद अन्डे से वोरर/ लार्वा बाहर निकलता है जो क्रीमी कलर के विना पैरों के होते हैं। शुरू में लार्वा/ बोरर नई कोमल जड़ों को खाते हैं बाद में मुख्य जड़ों पर आक्रमण करना शुरू कर देती हैं तथा धीरे-धीरे जड़ों को नष्ट कर देते हैं जिस कारण पौधा सूख जाता है।
कीट प्रबंधन-किसी भी कीट के संक्रमण के उपचार की तुलना में रोकथाम का प्रबंधन करना ज्यादा आसान प्रभावी व असरकारक होता है।
1.बोरर अधिकतर रोगी व कमजोर पौधों पर आक्रमण करता है इसलिए बगीचों की नियमित देखभाल, उचित पोषण तथा पौधों को स्वस्थ रखना आवश्यक है। रेतीले दोमट भूमि में इस कीट का अधिक प्रकोप होता है, एम 9 रूट स्टॉक्स में Burr knots विकसित होने की प्रवृत्ति के कारण इन पौधों में वोरर कीट आसानी से आक्रमण करते हैं अतः रेतीली कमजोर भूमि में एम 9 रूट स्टॉक्स वाले पौधे लगाने से बचें।
कीट नियंत्रण -कीट की चारों अवस्था अन्डे,लार्वा,प्यूपा व वयस्क बीटल को नष्ट कर ही प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
1.मई-जून माह में जैसे ही वयस्क / बीटल पौधों पर या आसपास दिखाई दें सामुहिक प्रयास से उन्हें नष्ट करने का प्रयास करें। एक सप्ताह तक कीट वयस्क अवस्था में दिखाई देते हैं।
2 जून के प्रथम सप्ताह से माह सितम्बर तक प्रकाश प्रपंच की सहायता से प्रौढ़ कीटों को इक्कठा कर नष्ट करते रहें।प्रकाश प्रपंच स्वयंम भी बना सकते हैं एक चौडे मुंह वाले वर्तन ( पारात,तसला आदि) में कुछ पानी भरलें तथा पानी में मिट्टी तेल या कीट नाशक रसायन की कुछ बूंदें मिला लें उस वर्तन के ऊपर से मध्य में विद्युत वल्व लटका दें यदि खेत में लाइट सम्भव न हो तो वर्तन में दो ईंठ या पत्थर रख कर उसके ऊपर लालटेन या लैंम्प रख दें। साम को अंधेरा होने से रात के 9 -10 बजे तक वल्व,लालटेन या लैम्प को जला कर रखें। वयस्क / बीटल कीट प्रकाश से आकृषित होकर वल्व, लालटेन व लैम्प से टकराकर वर्तन में रखे पानी में गिर कर मर जाते हैं। बाजार या एमजोन से सोलर प्रकाश प्रपंच मंगाये जा सकते हैं।
3 नर कीटों को आकृषित करने हेतु फ्यूरामोन ट्रेप का प्रयोग करें तथा एकत्रित नर कीटों को नष्ट करते रहें।
4 माह अगस्त के प्रथम सप्ताह से 15 सितंबर तक मैटारीजियम या बैवेरिया वैसियाना लिक्युड का अलग-अलग या एक साथ प्रयोग करें। पांच मिलीलीटर दवा का दो लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर पौधों के थावलों को तर करें। रूट बोरर का आक्रमण प्रत्येक बर्ष हो सकता है इसलिए पूर्ण उन्मूलन हेतु दो तीन वर्षों तक लगातार इन दवाओं का प्रयोग करते रहें।
जैविक विधियों से कीट नियंत्रण न होने की दशा में रसायनिक विधि अपनायें।
1 संक्रमित पौधे के तौलिए में तने के चारों ओर के घेरे को 0.1% क्लोरपाइरीफॉस से नवम्बर-दिसम्बर में पूरी तरह सींचें।
क्लोरपाइरी फास 80 ml.दवा एक किलो ग्राम रेत/भुरभुरी सूखी मिट्टी में मिलायें। रेत या मिट्टी की ढेर के बीच में दवा डालने हेतु जगह बनायें जैसे आटा गूंथने में पानी के लिए जगह बनाते हैं फिर हाथों में गल्वस पहन लें यदि गल्वस नहीं है तो हाथ पर पौलीथीन की थैली लपेट कर लकड़ी की डंडी के सहारे दवा को रेत में मिलायें। एक कीलो दवा मिली रेत एक नाली भूमि के उपचार के लिए प्रर्याप्त होती है।दवा मिली रेत के बुरकाव के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है।