प्रदीप कुमार
चमोली/श्रीनगर गढ़वाल। हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्तवाल राजकीय महाविद्यालय नागनाथ पोखरी, चमोली में दिनांक 22.04.2024 को पृथ्वी दिवस के उपलक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर पंकज पंत द्वारा की गई जो कि कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भी थे। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम की संयोजिका डॉ.कंचन सहगल द्वारा किया गया। उन्होंने पृथ्वी दिवस मनाने के कारणों एवं उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए पर्यावरण,जल,मृदा.वायु एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता पर चर्चा करते हुए इस वर्ष की थीम “Planet v/s Plastic” प्रस्तुत की। कार्यक्रम में विभिन्न छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग किया। जिसके अंतर्गत कु.प्रीति,बी.एससी.तृतीय वर्ष की छात्र छात्रा ने पृथ्वी दिवस की थीम पर अपने विचार प्रस्तुत किए। कु.खुशी बी.एससी.चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हमारा कर्तव्य है व पृथ्वी की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। अन्य प्रतिभागियों में कु.कल्पना,कु.ममता,पवन,एवं ऋषभ किमोठी ने पृथ्वी दिवस की उपयोगिता एवं महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए। महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के डॉ.अभय श्रीवास्तव ने कहा पृथ्वी शब्द अपने आप में सभी प्राकृतिक संसाधनों को समेटे हुए हुए जैसे,पर्यावरण,जय विविधता,खनिज,जल,जीव जंतुओं इत्यादि को समाहित किए हुए है। इसी कारण पृथ्वी को रत्नगर्भा एवं धरीत्री भी कहते हैं। मानव ने औद्योगीकरण की प्रक्रिया में प्रकृति को उपभोग की वस्तु बना दिया है,जो कि पृथ्वी के संतुलन के लिए अनुचित है। साथ ही उन्होंने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का उपयोग कम करने का सुझाव दिया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.पंकज पंत ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कार्यक्रम की सार्थकता के बारे में बताते हुए कहा कि छात्रों को इस प्रकार कार्यक्रम से प्रेरणा लेनी चाहिए। इसी क्रम में प्राचार्य ने पावर प्वाइंट प्रस्तुति के माध्यम से ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर पृथ्वी तथा पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर परिवर्तन सदा ही होते रहे हैं किंतु वे प्राकृतिक हैं,जबकि जो मानव जनित परिवर्तन प्राकृतिक संसाधनों को अंधाधुंध इस्तेमाल से हो रहे हैं वे विनाशक होंगे। पिछले 70 से 80 वर्षों में मानव ने जैव विविधता हो बहुतायत में समाप्त कर दिया है। उन्होंने बताया कि विकास के क्रम में हमें सदैव ही इस 3R के सिद्धांत को ध्यान रखना चाहिए। जिसका मतलब रिड्यूस,रिसाइकल एंड रीयूज होता है। हमें प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम अथवा आवश्यकतानुसार कम से कम उपयोग,तथा संसाधनों को रिसाइकल करने तथा पुनःउपयोग में लाने पर कार्य करना चाहिए। उन्होंने बताया की वर्तमान में पृथ्वी पर मात्र 3 प्रतिशत जल पीने योग्य बचा है,जिसे भी मानव प्रदूषित कर रहा है। साथ ही प्लास्टिक के उपयोग से मृदा की उर्वरता क्षीण होती जा रही है। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ डॉ.अनिल कुमार,डॉ.हरिओम,डॉ.वर्षा सिंह,डॉ.शाजिया,डॉ.शशि चौहान,डॉ.अंशु सिंह,विक्रम कंडारी सहित अन्य शिक्षक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।