सोच सकारात्मक करे–मनवर सिंह रावत*

 

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल कभी कभी जो हम सोचते है,वह होता नही,ओर जो होता है,हम सोचते नही,भाग्य और पुरुषार्थ की रस्सा कसी चलतिरहटी है,जीवन अनंत अनंत संभावनाओं का पुंज है,हमारे हिस्से में केवल कर्म है,यादि फल की अनुकूलता के लिए ही कर्म करते हैं तो निराशा ही हाथ लगेगी,यादि किसी भी फल के साकात्मक – नकारात्मक दोनो ही पक्षों को स्वीकार करना होगा,
हम आशाओं के सहारे अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ते हैं,यादि हमने कोई भी कार्य प्रारंभ करने के पहले ही उसके परिणाम का आकलन कर लिया तो कार्य करने की गति में सितिलता आजायेगी,जो हमे असफलता या परिणाम की प्रतिकूलता की ओर ले जा सकती है,जैसे प्रत्येक विद्यार्थी को परीक्षा में यह सोच कर सामिल होना चाहिए कि निश्चित ही वह प्रथम श्रेणी में पास होगा,इसी ऊर्जाके साथ तब तक यह मानसिकता उसे बनाए हुए रखना चाहिए,जब तक कि परिणाम न निकलजाये,इससे उसके मस्तिष्क में सकारात्मक चिंतनकी मानो भूति निर्मित हेगी जो उसे सफलता की ओर लेजा सकती है,अनुकूल प्रस्थतियों,सृजन के लिऐ सकारात्मक विकसित करना अति आवश्यक है,यहां संदेह की बिलकुल गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, निराशा हमारे आत्म बल को कमजोर करती है,जो हमारी प्रगति में बाधक है, यदि हम किसी कार्य को प्रारंभ करने से पहले ही परिणाम को लेकर अनिश्चितता या संदेह में पड़ गए तो प्रारंभ में ही हमारी आधी हार हो जाती है,अत: हमे निराशा,प्रतिकूलता,नकारात्मक, सोच से सदा दूर रहना चाहिए,इससे बचाने का एक ही सबसे सशक्त उपाय है कि हमे अपने अंदर शसक्त सोच विकसित करनी होगी,वही हमारी सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा, आलोचनाओं से भी अपने उद्देश्य को प्रवर्तित नही करना चाहिए,इससे हमारे कार्य छेत्र तथा जीवन शैली में उत्कृष्टता का समावेश होता है, साथ ही आत्मबल भी निर्मित होता है,ऐसा कोई मनुष्य नही हुआ जिसके जीवन में प्रतिकूल प्रस्थितिया न आई हों,यह देखा गया है कि किसी के हिस्से काम किसी के हिस्से ज्यादा,चुनौतियां व्यक्तित्व में परिपक्वता लाती है,जिससे जीवन में कठिन से कठिन कार्य करने की शक्ति अर्जित होती है,अनुकूलता तो सभी चाहते है,परंतु उसी अनुपालन में प्रतिकूलताएं भी होती हैं,फिर उन्हें कोन अंगिकार करेगा। हमे हमे अपने आत्मबल से प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलना होगा,क्योंकि श्रृष्टि की सरचना में प्रमात्मकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानव ही है,अत:परमात्मा को भी उससे पर्याप्त अपेक्षायें हैं,ओर यह जीवन का सिद्धांत भी होना चाहिए कि हम सही राहप्र चले और हो सके तो अपने साथ सकारात्मक सोच रखने वालो को भी जुड़े,प्रभु हरपल, हरक्षण,हमारे साथ ही रहते हैं,हमे चाहिए की हम अपने कर्मो कोपराभू को समर्पित करते हुऐ,सदैव यही स्मरण करे कि मेरा क्या तेरा ही तेरा है,मैं भी तेरा सब जग तेरा इस आशा विश्वास के साथ कि प्रभु सदैव हमारी सहायता करेगें।