महा शिवरात्रि ब्रत का महत्व एवं महात्म्य–अखिलेश चन्द्र चमोला

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। हमारी भारतीय संस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है कि यहां प्रत्येक महीने में किसी न किसी पर्व को मनाने का विवरण मिलता है।इसी कारण हमारे देश को त्योहारों का देश कहा जाता है।यहां मुख्य रुप से वैशाखी,नवरात्रि,दशहरा,दीपावली,मकरसंक्रान्ति,ईद,क्रिसमस आदि त्योहारों की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। इन त्योहारों में महा शिव रात्रि का पर्व अपने आप में कल्याण कारी मार्ग प्रशस्त करता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। वैसे तो सामान्य तया प्रत्येक मास में शिव रात्रि आती है,लेकिन यह पर्व महा शिव रात्रि के रूप में उद्घाटित होने के कारण इसका महत्व अधिक बढ़ जाता है। इस वर्ष यह पर्व 8 मार्च को है। इस दिन इस पुनीत पर्व पर तीन अद्भुत व प्रभाव कारी संयोग बन रहे हैं। शिव,सिद्व और स्वार्थ सिद्ध योग बन रहा है। मान्यता है कि शिव योग साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वार्थ सिद्ध योग में की गई पूजा से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।हर कार्य में सफलता मिलती है।
शिव भगवान को कल्याण,मंगल, महादेव,भोले बाबा,शंकर आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। शिव भगवान की आराधना करने से कल्याण कारी भावना का प्रकटीकरण होता है। ऊं नमः शिवाय का उच्चारण करने मात्र से भक्तों का कल्याण हो जाता है।
विद्येधर संहिता में भगवान शिव की महिमा का वर्णन इस प्रकार से किया गया है—वे धन्य और कृतार्थ हैं,उन्हीं का शरीर धारण करना भी सफल है,उन्होंने ही कुल का उद्धार किया है। जो शिव भगवान की उपासना करते हैं।शिव का नाम विभूति, भस्म ,रुद्राक्ष ये तीनो त्रिवेणी के समान परम पुण्य काल माने गए हैं। भगवान शिव का नाम गंगा है।विभूति यमुना मानी गई है। रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है। इन तीनो की संयुक्त त्रिवेणी सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली है।
शिव रात्रि के विषय में माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर रूद्र के रूप में प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से अवतरित हुए। इनका तीसरा नेत्र प्रलयकारी है। इस स्थिति में तांडव करते हुए सृष्टि का विनाश करते हैं। इस दिन शिव शक्ति का भी पारस्परिक मिलन माना जाता है।अर्थात माता पार्वती और शिव का विवाह हुआ। भगवान शिव इस रात्रि से असीम स्नेह करते हैं। ईशान संहीता में कहा गया है-फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदि देव भगवान शिव करोडों सूर्य के समान प्रभा वाले लिंग से प्रकट हुये।ज्योतिष शास्त्र के आधार पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है।वही समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। इस पर्व पर शिव की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस दिन के विषय में शास्त्रों में कयी तरह के आख्यान देखने को मिलते हैं।इस दिन शिव पार्वती का विवाह हुआ था। शिव भगवान ने इसी दिन कालकूट नामक विष पीकर के राक्षसों को समुद्र मंथन में निकले अमृत से दूर रखकर देवताओं को अभय प्रदान किया।शिव भगवान में कल्याण का भाव समाया हुआ रहता है।
गीता में इस बात का विवरण मिलता है कि उपवास के द्वारा इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी ब्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयास रत रहता है।रात्रि समय ही शिव भक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।व्रत में शिव पूजा करने के लिए फल,पुष्य, धतूरा,चन्दन,दीप,नैवेद्य, बेल पत्र आदि की आवश्यक्ता होती है।दूध,दही,शहद और चीनी मिलाकर पंचामृत से शिव भगवान का स्नान कर जलधारा से अभिषेक करना चाहिए। ग्यारह सौ बार ऊ नमः शिवाय का जप करके भगवान शिव की आरती तथा परिक्रमा करनी चाहिए। अन्त में निश्छल हृदय से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए-हे महादेव मैंने जो
भक्ति भाव से ब्रत लिया है। हे स्वामिन वह परम ब्रत पूर्ण हो गया है। अब विसर्जन करता हूं।आप मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।
महाशिव रात्रि का ब्रत लेने से व्यक्ति सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। जीवन में सुख समृद्धि की बृद्वि होने लगती है।अन्धकार समाप्त हो जाता है। सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला स्वर्णपदक तथा महामहिम राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित श्रीनगर गढवाल ।