प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल रामनवमी मर्यादाओं का अवतरण दिवस है,साथ ही शाश्वत,सनातन, और चिंतन सत्य की अभिव्यक्ति का पुण्य क्षण भी,आर्य साहित्य,लोक साहित्य की प्रवाहमान चिंतन धाराएं स्त्यविधित रूपों में वर्णित हुआ है,यह तथ्य स्पष्ट है कि मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम एवम् आदिशक्ति माता सीताजी के आदर्शों की स्थापना के लिऐ तो अवतरित हुए थे,साथ ही सनातन ब्रह्म एवम् शक्ति भी राम – सीता के रूप में लीला करने इस धरती पर आए थे।
श्रीराम और सीताजी दो होते हुऐ भी एक थे,(गोस्वामी जी कहते हैं,)गिरा अरथ जल बिन्नि सभ कहिआत भिन्न भिन्न, बदॐ सीता राम पद जिन्हीं परमप्रिय खिन्न,, भारतीय आर्य साधना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को मूल तया ब्रह्म रूप में इस चराचर जगत में प्रयाप्त मान कर सर्वोच्च सनातन होने में अपनी आस्था व्यक्त करती है,यही एक सूक्ष्म धारणा राम तथा ॐ की तात्विक एकता की ओर भी सूक्ष्म संकेत करती है,वस्तुत:’ राम ‘ शब्द जब निराकार ब्रह्मशब्द के रूप में व्यवहारित होता है तो आश्चर्य चकित रूप में ही ॐ हो जाता है,व्याकरण विदों और भाषा शास्त्रीयों के अनुसार राम शब्द में आने वाली आ तथा अ स्वर ध्वनियां शब्द में आनेवाली ‘ र ‘ तथा ‘ म’ व्यंजन ध्वनियों में उच्चारण की दृष्टि से आती है,
एक प्रमाणित सूत्र कहता है, ओमितयेदक्षरम जिससे राम तथा ॐ की तात्विक एकता प्रमाणित होती है,महाकवि तुलसीदासजी भी रामचरित मानस इसी तथ्य को पुष्ट है ,एक छत्र एक मुकुटमनि सब बखनी पर जोऊ,तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराज दोऊ,,
यही सत्य आदिकवि बाल्मिकी जी की रामायण के (युद्धाकांड) में राम को भगवान विष्णु ॐ कार स्वरूप का अभिन्न मानते हैं,इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय मनीषा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को सचिदानंद ब्रह्म मन कर उन्हे सर्बोच सनातन सता के रूप में पूजनीय रहते हैं,इसी तरह सीता जी को आदि शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करके सर्वोच्च ससमान देते हैं, युद्ध कांड में उल्लेख आता है,एषा: सीता हरेमार्या दृष्टि स्थित्यंत कारिणी, सीता सक्षात अगद्धेतु – श्चश्छत्तिरजदासिका,,अर्थात विश्वकी सृष्टि अंत की सूत्रधारिणी आद्धिशक्त्ति साक्षात महामाया सीता जगत का कारण और चेतना शक्ति और जगत का रूप है,यही सत्यमानस के(बालकांड ) में कवि श्रोमणि तुलसी दास अत्यंत श्रद्धा पूर्वक व्यक्त करते हैं।
उभद्वस्थिति संघरकरिणी क्लेशहरनी, सर्व श्रेयसकर्णी सितम नतोहरम रामबल्लभम,,भाषा शास्त्रियों के अनुसार भी सीता शब्द का अर्थ पृथ्वी से उत्तपन्न है,जो निश्चित ही सृष्टि के सृजन ,पोषण व संहार की सूत्रधार शक्ति के लिऐ आया है,व्याकरण विद्यों ब दार्शनिकों ने सीता शब्द की विशिष्ट व्याख्या करते हुऐ,यह स्पष्ट कर दिया है कि राम की शक्ति बनकर ही सीता अवतरित हुई है,इसी शक्ति की स्वीकृति आदि महाकवि श्रीबालमिकी जी की रामायण में तथा महर्षि वेदव्यास जी ने श्रीमदभागवत में सीता को महा लक्ष्मी कहकर संबोधन किया गया है।
महाकवि तुलसीदास ने दर्शन के इसी सूक्ष्मतत्व को मनोहारी रूप में व्यक्त करते हुऐ ब्रह्म शक्ति के एक्य को इस्प्रकार व्यक्त किया है।