केदार घाटी के हिमालयी भूभाग में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकारों के चेहरे पर मायूसी

प्रदीप कुमार

ऊखीमठ/श्रीनगर गढ़वाल। केदार घाटी के हिमालयी भूभाग में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकारों की चिन्ताये बढ़ती जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी ने कहा कि आने वाले दिनों में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं होती है तो काश्तकारों की गेहूं की फसलों के उत्पादन पर खासा असर पड़ सकता है तथा प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट आ सकती है। तुंगनाथ घाटी में भी यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं होती है तो तुंगनाथ घाटी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है। विगत दो दशकों से मौसम परिवर्तन होना ग्लोबल वार्मिंग का खासा असर माना जा रहा है तथा प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या लगातार बढ़ना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। जानकारों की माने तो केदार घाटी में विगत दो दशक से मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर, सरसों की फसलें खासी प्रभावित हो रही है। हिमालयी भूभाग में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरन्तर गिरावट देखने को मिल रही है परिणामस्वरूप कुछ गांवों में अप्रैल माह शुरू होते ही जल संकट गहराने लगता है। दो दशक पूर्व जिन सीमान्त गांवों नवम्बर माह में औंस के कारण नमी रहती थी उन गांवों के खेत-खलिहानों में नवम्बर माह में धूल उड़ना आम बात हो गयी है। सीमान्त गांवों के काश्तकारों के अनुसार दो दशक पूर्व जिन गांवों में औंस के कारण खेतों में नमी रहती थी उन गांवों में गेहूं की फसलों को प्रयाप्त मात्रा में नमी मिल जाती थी तथा प्रकृति में भी नव ऊर्जा का संचार देखने को मिलता था मगर वर्तमान समय की बात करें तो उन गांवों के खेत-खलिहानों में धूल उड़ना आम बात बनी हुई है। मदमहेश्वर घाटी के गैड़ बष्टी गांव के काश्तकार बलवीर राणा ने बताया कि विगत दो दशक से ऋतु परिवर्तन समय से पूर्व होने लगा है तथा समय से पूर्व ऋतु परिवर्तन होना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण माना जा रहा है। उनका कहना है कि प्रकृति के साथ समय – समय पर मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों का जल स्तर लगातार घट रहा है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। काश्तकार बिक्रम सिंह रावत ने बताया कि विगत दो दिनों तक क्षेत्र में मौसम के करवट लेने से काश्तकारों की आस जगी थी कि मौसम के करवट लेने के कारण मेघ बरसेगें मगर बुधवार को चटट धूप खिलने से काश्तकारों के चेहरे पर मायूसी देखने को मिली। काश्तकार चयन सिंह नेगी ने बताया कि यदि आने वाले दिनों में मौसम के अनुकूल बारिश नहीं होती है तो काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर, सरसों की फसलों को खासा नुकसान पहुंचने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।