जब मन में हो मौज बहारों की

जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी सुन्दर मेले हों,
आनंद की अद्भुतआभा होती है
उस रोज़ ‘ ही दिवाली’ होती है।
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जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की वह आभा होती है
उस रोज़ ही दिवाली होती है।
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जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की वोआभा होती है
उस रोज़ ही दिवाली होती है।
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जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्-भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की वह आभा होती है
उस रोज़ ही ‘दिवाली’ होती है।

-डा.रवीन्द्र सैनी,

राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत प्रधानाचार्य,

साँसद प्रतिनिधि ,

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय सैनी सभा सँगठन,

पूर्व जनसंपर्क अधिकारी मुख्यमंत्री,

ब्रैंड ऐम्बैसडर नगरपालिका,