मुर्धन्य बहुमुखी प्रतिभा के धनी अनोखे व अद्वभुद चित्रकार गौरवशाली कवि दार्शनिक मत्प्रवर्तक चंडिका उपासक थे स्व.स्वनामधन्य मौलाराम तोमर

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। अद्वभुत चित्रकार एवं कवि गढ़वाल कला के संस्थापक मौलाराम तोमर गढ़वाल राज्य के राज्यश्रित कवि थे गढ़वाल राजवंश काव्या राजनीति के घटनाचक्रों के प्रत्यक्षदर्शी थे।
इस प्रसिद्ध चित्रकार कवि के पूर्वजों ने शारजहां के शहजादे सलीमशाह अर्थात दाराशिकोह के साथ गढ़वाल में शरण ली थी।
मौलाराम की चित्रकार शैली का इतिहास औरंगजेब के शासनकाल से प्रारंभ होता है। औरंगज़ेब से बचने के लिए सुलेमान शिकोह गढ़वाल के तत्कालीन राजा पृथ्वीपति शाह के पास संरक्षण के लिए आया था।
तीसरी पीढ़ी के मौलाराम (1743- 1833) प्रख्यात कवि और गढ़वाली चित्रकला शैली के जन्मदाता है।
पहाड़ी शैली के संस्थापक व चित्रकार के रूप में स्वनामधन्य मौलाराम की जितनी खाती देश-विदेश में रही है उससे कहीं अधिक उनके काव्य रूप की भी रही है। श्रृंगार से वैराग्य तक इस मनीषी कवि ने भारत के अन्य भागों के कवियों से कई अधिक लिखा और खूब डटकर लिखा। वे सच्चे अर्थों में भविष्य – दृष्टा कवि थे।
मध्यकालीन समाज धर्म की धुरी पर आधारित था मध्य युग में ऐसे बहुत कम कवि हुए हैं, जिन्होंने अर्थ – तंत्र पर व्यंग्य किया।
मौलाराम ने चित्रकला के संपूर्ण आयाम प्राप्त होने के साथ चित्रकला का विकास हुआ। चित्रकारों ने अपना रुझान पहाड़ी रियासतों तथा क्षेत्र की ओर उन्मुख किया।
पहाड़ी चित्रकला शैली की दो प्रमुख शाखाएं हैं कांगड़ा शैली, गढ़वाली शैली जिसमें अनोखे चितेरे मौलाराम के चित्रों में बहुधा पाया जाता है।
कालियादमन मैं चित्रकार ने श्रीनगर के पुराने राजमहल आदर्श हैं यहां के पहाड़ भी चित्रितण के साथ ही अलकनंदा (गंगा) राणीहाट रानियों का गांव भी मौजूद हैं।
जगदंबा उपासक मौलाराम का स्वभाव आत्मिक था इनकी माता रामादेवी महान भक्ति रस में डूबी रहती थी। इनकी माता ने हीं इन्हें भक्ति भाव का खूब पाठ पढ़ाया जिस कारण इन्होंने भक्ति भाव से ओत-प्रोत चित्रों का चित्रण अपनी कुंजी से लबालब किया।
इस युग में मौलाराम ने अध्यात्म्य तथा मन संबंधी कथाओ कालों की रचनाएं की तथा चित्रकार के लिए विभिन्न देवी देवताओं व ग्रह आदि धार्मिक विषयों को चुना। इसके साथ-साथ उन्होंने नए चित्रकारों को प्रोत्साहित तथा शिक्षित किया इनके दो शिष्य चैतु व मानुक थे।
महान चित्रकार मौलाराम को प्रकाश में लाने का श्रेय मुकंदीलाल बैरिस्टर को जाता हैं महान चित्रकार मोलाराम पर प्रकाशित गढ़वाल पेंटिंग अंग्रेजी ग्रंथ जो भारत सरकार ने प्रकाशित किया उसके लेखक थे मुकंदीलाल बैरिस्टर इसीलिए उन्हें महान चित्रकार एवं कवि कहते हैं।
मौलाराम के वंशज की नवी पीढ़ी जो की वर्तमान में श्रीनगर गढ़वाल में रहते हैं उनमें डॉ. द्वारिका प्रसाद तोमर पत्नी डॉ. धनेश्वरी तोमर पुत्री डॉ.साईं किरन तोमर, बहन सावित्री देवी, दूसरे भाई स्व. गोविंद सिंह तोमर का परिवार पुत्र प्रशांत तोमर पत्नी गीता देवी, बहन ज्योत्सना देवी आदि लोग रहते हैं।
चित्रकार व कवि मौलाराम को गढ़वाल के कलाप्रेमी आज भी उन्हें अपने दिलों में रखे हुए हैं।
मौलाराम की कला की कलाविदों ने प्रशंसा की क्योंकि पहाड़ी व कांगड़ा कला शैली के विद्वान मूलाराम हुए हैं उनके चित्रों ने गढ़वाली शैली को नए आयाम दिए।
चित्रों को स्वायमान और अलंकृत करने के उत्पादन में बारीकी की और प्राकृतिक सौंदर्य प्रदर्शन में गढ़वाल के जगतविख्यात महान चित्रकार मौलाराम भारतीय नव का प्रकाशन अनोखा चित्रकार की कला पहाड़ी शैली का देदीप्यमान नक्षत्र सदा कला प्रेमियों के बीच चमकता रहेगा।
मौलाराम केवल चित्रकार ही नहीं थे वह उच्च कोटि के कवि, इतिहासकार, लेखक, तांत्रिक, साधक, दार्शनिक और चंडिकाउपासक मत प्रवर्तक भी थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
मौलाराम आर्ट गैलरी श्रीनगर गढ़वाल की अध्यक्ष डॉ.धनेश्वरी तोमर मूर्धन्य चित्रकार मूलाराम की कलाकृतियां लेखन एवं कृतित्व का संकलन करने का प्रयास कर रहा है।
मौलाराम आर्ट गैलरी के उद्देश्य के विषय में डॉ.द्वारिका प्रसाद तोमर संरक्षक माैलाराम आर्ट गैलरी ने बताया कि प्रसिद्ध चित्रकार कवि व ज्योतिषविद मौलाराम की जीवनी, कृतियों एवं तत्सम्बंधि विभिन्न आयामों का अध्ययन विश्लेषण प्रशासन व संकलन कर जनसाधारण, सो छात्रों व जिज्ञासुओं को संवाद की सुलह माध्यमों से जानकारी उपलब्ध कराना मौलाराम चित्रकला शैली को प्रोत्साहित करना। उनके लिखो व चित्रों का प्रचार प्रसार करना।