पहाड़ी गांव की झलक सामाजिक जीवन पर केंद्रित हमारे गांव की राम लीला (प्रथम किश्त)–कविराज नीरज नैथानी

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। पहाड़ी गांव के सामाजिक जीवन पर केंद्रित रामलीला आलेख मैं बात कर रहा हूं आज से लगभग चालीस साल पहले हमारे गांव में होने वाली रामलीला की।उस समय हमारे गांव में बिजली नहीं पंहुची थी।
घरों में लालटेन,लैम्प,चिमनी या दिया बत्ती जलाकर रोशनी की जाती थी। शादी या अन्य आयोजनों में गैस (जिसे पैट्रोमैक्स कहते थे ) से उजाले की व्यवस्था होती थी।
प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रों से एक माह पूर्व हमारे गांव में रामलीला की तालीम (रिहर्सल) शुरु हो जाया करती थी।
रात का खाना खाने के बाद पंचायत भवन के टिन शेड में उत्साही लोगों का जमावड़ा लगता।
प्राइमरी स्कूल के मास्साब हारमोनियम के उस्ताद हुआ करते थे। शिल्पकार खोले का शिब्बू लाल जब ढोलक की थाप गुंजाता तो सब वाह वाह करने लगते।
तालीम के पहले दिन सबसे पहले पिछले साल की रामलीला कमेटी के खर्चे का ब्यौरा रखा जाता।
काना काका संदूक से पुराने रजिस्टर को निकालकर ऊंची ऊंची आवाज में सबके सामने हिसाब किताब रखते।
मीटिंग में लोग दबी जुबान से खुसुर फुसुर कर रहे होते कि सब अल्दम गल्दम कर रखा है,पता नहीं कितना पैसा जमा हुआ,कितना असल खर्च हुआ,कितना खा पी कर हजम कर गए।
काका का अंतिम वाक्य यही होता चुप हो जाओ ब्बे हल्ला मत करो ध्यान से सुनो तो सब जोड़ घटाकर इतने की उधारी बकाया है।
अब राम लीला तो होनी ही है,हम तुम क्या हैं, हमारी क्या बिसात, राम की कृपा से सब निभेगा,रामलीला होनी है तो होगी ही।
फिर घोषणा होती तो चलो सबसे पहले नयी कमेटी का गठन किया जाय। मैं देखता आ रहा था कि हर साल पिछले साल वाली कमेटी ही दुबारा चुनी जाती नयी कमेटी जैसा उसमें कुछ भी नहीं होता।
यहां तक कि पुरानी कमेटी पर घपले का आरोप लगाने वाले भी घाघ लोगों के इस अस्त्र को नहीं झेल पाते कि ये लो अपना ताम झाम संभालो इसे,अब हमारे बस का नहीं है भागदौड़ करना,सारा इंतजाम करना।
नहीं,नहीं,नहीं सारे गांव में केवल आप ही ये जिम्मेदारी निभा सकते हो आपके अलावा कोई नहीं ले सकता इतना सिर दर्द अब आपने ही निभाना है जैसे भी निभाना है वहां इकठ्ठा लोग एक स्वर में कहते।
सच बात यह है कि वे पुराने घघाड़ इसी डायलॉग को सुनने के लिए लालायित रहते।
चलो जब सभी की यही राय है तो हम ही जिम्मेदारे ले लेते हैं अपने कंधों पर किंतु सभी को साथ देना होगा,पीठ पीछे कोई कानाफूसी नहीं करेगा,सभी मदद करेंगे जैसे संवादों के साथ वही पुराने पदाधिकारी नयी कमेटी के बिल्ले के साथ तालीम की शुरुआत की घोषणा करते।
बजाओ मास्टर जी हारमोनियम,शिब्बू दा ढोलक संभाल भाई फिर गणेश जी की वंदना से रिहर्सल का पहला चरण शुरु हो जाता।
पहले दिन तो जिसको जो चौपाई याद होती वह सुर बेसुर राग में गाकर सुनाता। यह एक प्रकार से आर्टिस्ट का आडीशन टेस्ट होता जिसमें सभी पास होते केवल फेल कर दिए जाने की दिखावटी धमकी के साथ।
प्रमुख भूमिका निभाने वाले मुख्य पात्रों जैसे राम,लक्ष्मण,हनुमान,मेघनाद,रावण,जनक,दशरथ आदि के चयन का सर्वाधिकार कमेटी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के पास सुरक्षित था।
हां एक बात और महिला चरित्रों यथा सीता,कौशल्या,कैकयी,सुमित्रा,मंदोदरी,सुलोचना,तारा,सूर्पनखा आदि की भूमिका भी पुरुष अथवा बालक ही अभिनीत करते।
कुल मिलाकर पुरुष प्रधान सत्ता वाले ग्रामीण समुदाय में बालिकाओं,युवतियों व महिलाओं के लिए रंगमंच की प्रथम पाठशाला के द्वार पूर्णत: बंद थे।
-नीरज नैथानी