देहारादून -एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंसड इंस्टीट्यूटस उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने आज न्यू कैंट रोड स्थित अपने कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया जी की खंडपीठ ने 11 अगस्त 2023 को निर्णय दिया कि प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए डीएलएड उपाधि प्राप्त उम्मीदवार ही मान्य होंगे b.ed उपाधि धारक नहीं इस संबंध में 28. 6. 2018 को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा नोटिफिकेशन जारी किया गया था की प्राइमरी क्लासेस के लिए b.ed उपाधि धारक उम्मीदवार भी पात्र होंगे इसके खिलाफ 25.11 .2020में राजस्थान हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई जिसमें माननीय हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के नोटिफिकेशन के खिलाफ निर्णय दिया और व्यवस्था दी के प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए सिर्फ डीएलएड उपाधि धारक ही पात्र होंगे माननीय हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी प्राइमरी शिक्षक के लिए डीएलएड उपाधि धारक को ही पात्र माना डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने नीतिगत फैसला दिया है की b.ed उपाधि धारक सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी क्लास के लिए टीचर बनेंगे इस संबंध में अगर इस फैसले को उत्तराखंड के नजरिए से देखा जाए तो उत्तराखंड में 13 जिलों में कुल 13 डाइट्स में डीएलएड कोर्स चल रहा है जिसमें कुल 650 छात्र प्रतिवर्ष डीएलएड कोर्स करते हैं 5 वर्ष पूर्व जब डीएलएड कोर्स के लिए एनसीटीई ने फाइलें मांगी थी तो तत्कालीन अधिकारियों की हठधर्मिता की वजह से प्रदेश में डीएलएड कोर्स प्राइवेट कॉलेजों में नहीं शुरू हो पाया प्रदेश के अधिकारियों के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने रुड़की के दो कॉलेजों को d.el.ed कोर्स की मान्यता दे दी थी लेकिन राज्य सरकार के तत्कालीन अधिकारियों के मनमाने रवैया के कारण उन कॉलेजों में सभी आधारभूत सुविधाएं पूरी करने के बावजूद d.el.ed कोर्स नहीं खुल पाया अब स्थिति यह है राज्य सरकार के तत्कालीन अधिकारियों के मनमाने रवैए के कारण प्रदेश के छात्रों को डी एल एड करने के लिए अन्य राज्यों में पलायन को विवश होना पड़ेगा क्योंकि निकटवर्ती राज्यों उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश और हरियाणा मे प्राइवेट कॉलेजों में d.el.ed पिछले 5 वर्ष से चल रहा है और उत्तर प्रदेश में तो b.ed कॉलेज से ज्यादा d.el.ed कॉलेज हैं अब नई एजुकेशन पॉलिसी में 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स को ही मान्यता है 3 वर्ष पूर्व जब इंटीग्रेटेड कोर्स के लिए एनसीटी ने फाइलें मांगी थी तब भी राज्य सरकार के अधिकारियों के कारण किसी कॉलेज को एनओसी नहीं दी गई थी ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के तत्कालीन अधिकारियों के रवैया के कारण माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सबसे ज्यादा प्रभावित उत्तराखंड राज्य ही है राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के नोटिफिकेशन के बाद शिक्षक बनने के लिए अधिकांश छात्रों ने b.ed कर लिया था क्योंकि उनके पास राज्य में डीएलएड करने का विकल्प सीमित था अब वर्तमान परिस्थितियों में छात्रों के पास प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए अन्य राज्यों में पलायन ही एकमात्र रास्ता है जो छात्र अन्य राज्यों से डीएलएड कोर्स करेंगे वह इस तरह से बिना पढ़ाई किए कोर्स करेंगे क्योंकि वे सिर्फ प्रवेश लेने जाएंगे और एग्जाम देने जाएंगे ऐसी स्थिति में भविष्य में कैसे शिक्षक होंगे जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी राज्य सरकार के तत्कालीन अधिकारियों पर है डॉ अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अगर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद में d.el.ed कोर्स अन्य कॉलेजों में शुरू करवाने के लिए राज्य सरकार की ओर से विशेष प्रयास किए जाएं तभी कुछ राहत संभव है अन्यथा की स्थिति में नई शिक्षा नीति के तहत तो राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा अब 2 वर्षीय कोर्स के लिए नई फाइलें नहीं मांगी जा रही है