सरकारी विद्यालय में विद्याध्ययन एक जरूरत : एक विचार।
-विभा पोखरियाल नौडियाल
शिक्षिका केंद्रीय विद्यालय संगठन
श्रीनगर गढ़वाल। इतिहास की एक घटना ,एक बार फ्रांस की रानी क्वीन मैरी जो कि आस्ट्रिया की राजकुमारी भी थी के पास भूखी प्यासी प्रजा पहुंची और बोली कि हमें खाने के लाले पड़े हुए हैं हमारे पास ब्रेड नहीं है तो रानी ने कहा “कोई बात नहीं ब्रेड नहीं है तो केक खा लीजिए! ” ।आप समझ सकते हैं कि एक रानी का यह रवैया कितना गैर जिम्मेदाराना और अमानवीय था लेकिन क्या इसमें केवल रानी की गलती थी ????
शायद नहीं, अमीर और गरीब की खाई और विभिन्न प्रकार के भेदभावो का जब समाज में बोल बाला बढ़ जाता है तो इस प्रकार के लक्षण परिलक्षित होते हैं।
अगर आज के समय की बात करें तो आज तो हर घर में राजकुमार और राजकुमारी पल रहे हैं ।
जी हां, आप समझ गए होंगे कि मेरा इशारा किस तरफ है। माता पिता की एक या दो संतानें हैं। एकल परिवार हैं। माता-पिता बच्चों को निजी यानी प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन दिलाते हैं। जी-तोड़ मेहनत करते हैं कि किसी तरह उनका बच्चा अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करें, अंग्रेजी में गिटर- पिटर करना सीख जाए ।
नतीजा ! इंसान नही मशीन पैदा हो रही है, भावनाहीन, दूसरे के सुख दुख को ना समझने वाले ,आत्म केंद्रित लोग आपको यहां वहां हर जगह मिल जाएंगे।
मानव विकास के अब तक के घटनाक्रम का अगर बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो आप पाएंगे कि मेहनत, ईमानदारी,मेलमिलाप, नैतिकता जैसे जीवन मूल्यों से हमने वे महापुरुष पाए हैं जो हमारे गौरवमई इतिहास का हिस्सा हैं , मायथोलाजी के चरित्र हों या आधुनिक युग के शिल्पी जैसे भीमराव अंबेडकर, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ,लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, कलाम साहब ,सीवी रमन, स्वामीनाथन।। सैकड़ो कहानियां हैं जिन्होंने सरकारी विद्यालय में पढ़कर जीवन के मूल मंत्र सीखे। क्योंकि गरीब हो या अमीर, हर घर से जब छात्र एक विद्या रूपी मंदिर में आते हैं तो उनके साथ आती है’ विभिन्नताभरी संस्कृतियां । बच्चे एक दूसरे का सुख-दुख ,रहन-सहन सबके जीवन को करीब से देखते हैं , समझते हैं तो भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं। लेकिन जब आपने अपने बच्चे को किसी स्कूल विशेष में डाला जहां पर सिर्फ और सिर्फ पैसे वाले या तथाकथित सभ्य परिवारों के बच्चे एडमिशन लेते हैं तो वह कभी समझ ही नहीं पाते हैं कि समाज में कितनी तरह की विभिन्नताएं हैं जो भारतीय समाज की एक विशेषता है।
इस तरह की शिक्षा प्राप्त करके जब बच्चा किसी जिम्मेदार पद पर आता है जहां उसे आम नागरिकों की परेशानियाँ और आवश्यकताएं कुछ भी पता ही नहीं तो उस व्यक्ति से आप किस समाज के विकास की उम्मीद लगा कर बैठे हैं।
इस लेख को लिखने के पीछे मेरा यह मकसद है कि अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ाइए । यह एक ऐसी पाठशाला है जहां पर आप अपने बच्चों को जीवन का मूल मंत्र देंगे । यकीन मानिए वृद्धाश्रम बन्द हो जाएंगे। और कोई मां अपने बेटे के इंतजार में कंकाल नही बनेगी।
-विभा पोखरियाल नौडियाल
शिक्षिका केंद्रीय विद्यालय संगठन
नोट :लेखक के व्यक्तिगत विचार है
प्रस्तुति- गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल