पर्यावरण बचाने के लिए जमीनी धरातल पर कार्य करना बहुत ही जरुरी 

 

गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल

श्रीनगर गढ़वाल :- पर्यावरण में जैविक संगठनों के शूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीडे मकोडे सभी जीब जन्तु और पेड पौधे आ जाते हैं साथ ही अजैविक संगठको में जीवन रहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं आती हैं। जैसे -चट्टानें,पर्वत,नदी,हवा और जलवायु के तत्व ,हम सबका दायित्व होना चाहिए कि हम इस प्रकृति सम्पदा की सुरक्षा की भरपूर जिम्मेदारी ले करके यथार्थ धरातल पर कार्य करें,आज पर्यावरण के नाम पर बहुत सारी संस्थायें कार्य कर रही हैं,लेकिन यह चिन्तनीय प्रश्न आम जन मानस के सामने आ करके खड़ा हो जाता है। जब जंगलों में आग लगकर हजारों निरीह पशु ,पेड पौधे जलकर समाप्त हो जाते हैं। उस स्थिति में पर्यावरणीय संस्थायें मौन रह जाती हैं।इस सम सामयिक विषय के सन्दर्भ में विकास खंड खिर्सू जनपद पौड़ी गढ़वाल में हिन्दी अध्यापक के पद पर कार्यरत श्री अखिलेश चन्द्र चमोला की ब्यंग्यात्मक कविता धरतीकीमौनब्यथा बहुत सुर्खियां बटोरने के साथ पर्यावरण जागरुकता के लिए भी कार्य कर रही है।प्रतिष्ठित साहित्य कार अखिलेश चन्द्र चमोला की कविता का सन्देश इस प्रकार से है–
धरतीकीमौनब्यथा
जन-जन की है यही पुकार,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण बचाना है,
मुहिम छेड़ रहे पौध रोपण करने की,
नित देखने को मिल रही कार्य क्रमों की बयार,
कहां कितनी पौध लगी,
धरती बेचारी है सूनी,
जन -जन की है यही पुकार,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण बचाना है,
पौधों से सजा दिया धरती को,
खींचा दी सारी तस्वीर अपनी,
सुर्खियों में छा गये,
मीडिया में चमक गये,
पौध भेंट करते-करते,
रोपित पौध भी दबा दी,
जन-जन की है यही पुकार,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण बचाना है,
भेंट कर दिए अनगिनत पौधे,
समाचार छ्प गया सुर्खियों में,
धरती बेचारी प्रतीक्षा करती रही,
प्रतीक्षा करती रही,
धरती अपनी मौन ब्यथा सुनाये तो सुनाये किसे,
जन -जन की है यही पुकार,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण के नाम पर अपने नाम को फैला रहे,
कब तक धरती सहन करती रहती,
कुपित हो गई, बिचलित हो गई,
फैला दिया अपना कहर,
कहीं बाढ़ से,कहीं दरार से,
कहीं भूकंप से,
जन -जन की है यही पुकार,
पर्यावरण बचाना है,
पर्यावरण बचाना है।