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पेट से लेकर हृदय तक: डॉक्टर राजीव कुरेले से जानिए ईसबगोल की भूसी के आयुर्वेदिक चमत्कार

हरिशंकर सिंह

घर की रसोई में छुपा सुपरफूड

जब बात स्वास्थ्य की आती है, तो हम अक्सर महंगे सप्लीमेंट्स और विदेशी फूड आइटम्स की ओर भागते हैं। मगर आयुर्वेद हमें बार-बार सिखाता है कि समाधान हमारे रसोईघर में ही छिपा होता है। ईसबगोल की भूसी—एक ऐसा नाम जो बचपन में सिर्फ कब्ज से जोड़कर सुना था, दरअसल वो शरीर के समग्र स्वास्थ्य का रक्षक बन सकता है।

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हररावाला, देहरादून के आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. राजीव कुरेले कहते हैं, “ईसबगोल केवल पेट की सफाई का उपाय नहीं है, बल्कि यह आंतों से लेकर हृदय, शुगर और मानसिक स्वास्थ्य तक एक संपूर्ण समाधान है।”

ईसबगोल: क्या है यह?

ईसबगोल (Psyllium Husk) प्लांटैगो ओवाटा नामक पौधे के बीजों से प्राप्त होता है। यह एक प्राकृतिक जल-अवशोषक फाइबर है, जो जल में मिलते ही जेली जैसा रूप ले लेता है। आयुर्वेद में इसे त्रिदोष नाशक, पाचन सुधारक और मनःशांतिकर माना गया है।

1. कब्ज का शत्रु, पेट का रक्षक

डॉ. कुरेले बताते हैं कि “ईसबगोल की सबसे बड़ी खूबी इसकी बुलक-फॉर्मिंग क्षमता है। यह आँतों में जाकर जल को सोखता है और मल को मुलायम बनाता है।” इससे पेट साफ होता है, और अतिसार (दस्त) जैसी स्थितियों में भी यह जल को बांध कर राहत देता है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:
ईसबगोल वात और पित्त दोष को संतुलित करता है, जिससे पाचन तंत्र सहजता से कार्य करता है।

2. वजन घटाने में सहायक: भरा पेट, हल्का शरीर

वजन कम करना चाहते हैं? ईसबगोल को अपना दोस्त बना लें। यह पेट में फैलकर भरा हुआ अनुभव देता है, जिससे बार-बार भूख नहीं लगती। डॉ. कुरेले कहते हैं, “यह आदत में शामिल कर लेने से इमोशनल ईटिंग और ओवरईटिंग से छुटकारा मिलता है।”

3. कोलेस्ट्रॉल को कहें अलविदा

ईसबगोल में मौजूद घुलनशील फाइबर (soluble fiber) शरीर से खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को बाहर निकालने में मदद करता है। यह रक्त वाहिकाओं में जमने वाली परतों को भी कम करता है।

डॉ. कुरेले की सलाह:
“हृदय रोगियों के लिए ईसबगोल वरदान है, बशर्ते इसे सही मात्रा और सही समय पर लिया जाए।”

4. डायबिटीज़ में राहत: ब्लड शुगर को नियंत्रित करे

ईसबगोल भोजन के साथ ग्लूकोज के अवशोषण को धीमा करता है, जिससे अचानक शुगर लेवल बढ़ने से बचाव होता है। यह विशेष रूप से टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीजों के लिए लाभकारी है।

आयुर्वेद कहता है:
ईसबगोल मधुमेह नाशक औषधियों में गिना जाता है, जो मेधावी धातुओं पर प्रभाव डालता है।

5. बवासीर और एनल फिशर में रामबाण

जब मल कठोर होता है तो बवासीर के मरीजों को असहनीय पीड़ा होती है। ईसबगोल इस दर्द को कम करता है क्योंकि यह मल को मुलायम बना देता है। साथ ही यह शौच प्रक्रिया को आसान बनाता है।

डॉ. कुरेले कहते हैं, “रक्तस्रावी बवासीर या गुदा विदर से पीड़ित रोगियों को ईसबगोल दही या ठंडे दूध के साथ लेने से अत्यधिक आराम मिलता है।”

6. गैस, जलन और अम्लपित्त में शांति का सूत्र

ईसबगोल पेट की अंदरूनी दीवार पर एक पतली परत बना देता है, जिससे अम्ल का प्रभाव कम हो जाता है। इससे गैस, सीने की जलन और अम्लपित्त जैसी समस्याओं में आराम मिलता है।

विशेष प्रयोग:
भोजन के बाद आधे घंटे के अंदर ईसबगोल को शीतल जल के साथ लेने से गैस व जलन में त्वरित राहत मिलती है।

7. आंतों की सफाई और माइक्रोबायोम का संतुलन

डॉ. कुरेले बताते हैं, “आंतों का स्वास्थ्य पूरे शरीर के स्वास्थ्य का मूल है। ईसबगोल नियमित रूप से लेने से आँतों में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं और अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा मिलता है।”

8. त्वचा और मन के लिए भी लाभकारी

आंतों की सफाई से त्वचा पर चमक आती है और मुँहासे व एलर्जी की शिकायतें कम होती हैं। साथ ही पेट का हल्का होना मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर करता है।

सेवन विधि: कब, कितना और कैसे?

सामान्य वयस्क के लिए:

रात्रि में सोने से पहले: 1–2 चम्मच ईसबगोल को एक गिलास गुनगुने पानी या दूध में मिलाकर पीएं।

दस्त की स्थिति में: 1 चम्मच ईसबगोल को ताजे दही के साथ लें।

डायबिटीज़ या वजन घटाने के लिए: भोजन के 30 मिनट पहले या बाद में पानी के साथ लें।
सावधानियाँ:

1. जल के साथ अवश्य लें, अन्यथा कब्ज बढ़ सकता है।

2. दवाओं के साथ कम-से-कम 1 घंटे का अंतर रखें।

3. गर्भवती महिलाएं और गंभीर रोगी विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही सेवन करें।

परंपरा में छिपा विज्ञान

डॉ. राजीव कुरेले की मानें तो ईसबगोल आयुर्वेद की उस परंपरा का हिस्सा है, जिसमें रसोई को ही दवा-घर माना गया है। यह छोटा सा फाइबर न केवल आपकी पाचन क्रिया को सुधारता है, बल्कि हृदय, रक्त, त्वचा और मन को भी शुद्ध करता है।

“स्वस्थ शरीर का आधार एक साफ पेट है, और ईसबगोल उस सफाई का सबसे सरल साधन।”
— डॉ. राजीव कुरेले, आयुर्वेद विशेषज्ञ, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हररावाला, देहरादून
यह लेख डॉ राजीव कुरेले जी से वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर सिंह की हुई विशेष बातचीत पर आधारित है,

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