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फूल देई: उत्तराखंड का पारंपरिक बाल पर्व और नव वर्ष का स्वागत — लेखक –अखिलेश चन्द्र चमोला

प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल।वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक,राजकीय इंटर कॉलेज सुमाडी विकासखंड खन्ड खिर्सू,जनपद पौड़ी गढ़वाल हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड की पूरे भारत वर्ष में अपनी विशिष्ट पहचान है। अद्भुत तीर्थों की नगरी से आच्छादित उत्तराखंड अपने पर्व व त्योहारों के लिए भी प्रसिद्ध है।समय-समय पर यहां त्योहारों की छटा आपसी भाईचारे व प्रेम के भाव को प्रदर्शित करते हैं। ऐसा ही बाल पर्व फूल देई का त्योहार है।जो प्रेम,स्नेह मेल मिलाप व नव वर्ष के सुआगमन के भाव को उजागर करता है। सदियों से उत्तराखंड में फूल देई का त्योहार मनाया जाता रहा है। यह त्योहार चैत्र मास की सौर संक्रांति से मनाया जाता है। गढ़वाल मण्डल में 8 दिन तक बच्चे प्रत्येक के घर में जाकर सुबह सुबह देहरी में फूल चढ़ाते हैं। कुमाऊं में फूल चढ़ाने की प्रक्रिया पूरे महीने तक चलती है। हमारे यहां बच्चों को भगवान का प्रतीक माना जाता है।यह भी सच है कि चैत्र मास में सौर मंडल में भी परिवर्तन होता है। नये वर्ष के रुप में पूरे मन्त्री मन्डल का नये रुप में अधिपत्य होता है। नये वर्ष का का अभिनंदन करने वाले बच्चों को प्रत्येक घर से चावल और दाल के रूप में पारितोषिक दिया जाता है। बाल पर्व के फूल देई पर्व को फ्योली का फूल भी कहते हैं। यह फूल ज्यादा तर वसन्त के महीने में खिलता है। इस फूल के सन्दर्भ में एक लोककथा प्रचलित है,कहा जाता है कि गढ़वाल के सुरम्य आन्चल में एक राजकुमारी रहती थी,जो कि अपने आप में अद्वितीय सुन्दरी थी।जिसका नाम फ्योली था,एक राजकुमार का उससे प्रेम हो जाता है।वह राजकुमार विवाह करके उसे अपने घर ले जाता है।राजकुमारी की विरह वेदना में पहाड़ के अन्य पौधे भी मुरझा जाते हैं। पशु पक्षी भी उदास रहने लग जातें हैं।एक समय यह भी आता है कि फ्योली बीमार हो जाती है। अपने ससुराल में ही मर जाती है। ससुराल वाले उसे अपने जंगल में दफना लेते हैं।कुछ समय बाद वहां पर एक पीला फूल उग जाता है। जो कि हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।सभी उस फूल को फ्योली के नाम से पुकारते हैं।फ्योली की याद में यह त्योहार मनाया जाता है।छोटे बच्चे इस त्योहार में अत्यधिक उत्साहित दिखाई देते हैं।यह त्योहार चैत्र मास में प्रथम तिथि को मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष यह त्योहार 14मार्च या 15मार्च को मनाया जाता है।अन्तिम दिन बच्चे घोघा माता की डोली की पूजा करके विदाई करते हैं। फूल देई खेलने वाले बच्चों को ही फूलारी कहा जाता है।घोघा माता को फूलों की देवी के रुप में माना जाता है। मान्यता है कि घोघा माता अपनी पूजा बच्चों के द्वारा ही कराने से खुश होती है।घोघा माता की पूजा में फ्योली और बुरांश के फूलों का प्रयोग किया जाता है।

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