हरिद्वार। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का द्वितीय दीक्षांत समारोह का आयोजन ऋषिकुल परिसर हरिद्वार में आज दिनांक 25 फरवरी 2025 को संपन्न हुआ। इस दीक्षांत समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) ने दीप प्रज्वलन एवं भगवान धन्वंतरि एवं महर्षि चरक की प्रतिमा को माल्यार्पण के साथ कुलगीत के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रारंभ में उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति कुलसचिव, शैक्षणिक परिषद एवं विद्या परिषद के सदस्यों द्वारा महामहिम के सम्मान में उनके साथ संचलन करते हुए सभागार में पदार्पण किया। प्रारंभ में माननीय कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी द्वारा उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय द्वारा विगत वर्षों में गए विगत वर्षों में किए गए उल्लेखनीय कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में अनुसंधान, शिक्षण एवं चिकित्सा कार्य व्यवस्थित रूप से चल रहा है एवं अनेक अनुसंधान एवं चिकित्सा कार्यों के प्रोजेक्ट विश्वविद्यालय के द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। कई विश्वविद्यालयों के साथ एम ओ यू किया गया है एवं उनके साथ अध्ययन अध्यापन एवं अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों द्वारा बहुत से सम्मान एवं पदक प्राप्त किए गए हैं। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को महामहिम राज्यपाल द्वारा बीएमसी स्नातक वर्ग में हिमाद्री रोहिल्ला, दिव्या तिवारी, निशा जीना, बीएचएमएस आयेशा नसीम, अंबिका तोमर एवं स्नातकोत्तर शोधार्थियों -स्वाति कोठियाल, सोनिया कार्णवाल, वीरेंद्र सिंह, नेहाजोशी, चंद्र मोहनयादव, रूपालीपुरोहित, मनीषा कुमारी, कनिकाशर्मा, नेहा रावत, भावना जोशी, निवेदिता गिरी, अंकित धृजपाल लोधनी, प्रतिका धुरिया को स्वर्ण पदक – एवं 120 स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान की गई। इसके उपरांत माननीय कुलपति द्वारा सभी स्नातक एवं स्नातकोत्तर उत्तीर्ण विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गई।
इस अवसर पर महामहिम राज्यपाल महोदय ने अपने वक्तव्य में आयुर्वेद चिकित्सा को अनेक व्याधियों में कारगर बताया। उन्होंने कहा की कोरोना काल में विश्व को आयुर्वेद का महत्व अच्छी तरह समझ में आ गया है। उनका कहना था कि पदक एवं डिग्री प्राप्त करने वाले स्नातकों का आत्मविश्वास आज स्पष्ट झलक रहा है आयुर्वेद के स्नातक एवं परास्नातक को नौकरी ढूंढने की बजाय कुछ ऐसे कार्य एवं उद्योग स्थापित करने चाहिए जिससे कि वह बहुत से लोगों को रोजगार दे सकें। उत्तराखंड में आयुर्वेद की वनस्पतियों का खजाना है उसका उपयोग औषधि निर्माण में सब जगह किया जाता है यह हमारे राज्य का देश एवं दुनिया को महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि समस्त विश्व इस समय जिन रोगों से ग्रस्त है उनकी चिकित्सा के लिए वह आयुर्वेद की ओर आशा भरी निगाह से देख रहा है। इस स्थिति में आवश्यकता है कि आयुर्वेद के विद्वानों एवं चिकित्सकों को अनुसंधान प्रमाण एवं तथ्यों के आधार पर आयुर्वेद के विज्ञान को स्थापित करते हुए पीड़ित मानवता की सेवा के लिए कार्य करना चाहिए। महामहिम राज्यपाल ने सभी चिकित्सकों विद्वानों से महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में यह शपथ लेने के लिए आग्रह किया कि आयुर्वेद के उत्थान एवं विकास के लिए वह अपनी जी जान से अथक प्रयत्न करेंगे।
इस अवसर पर आयुष सचिव श्री रविनाथ रमन ने आयुर्वेद पद्धति से स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वालों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए एवं आयुर्वेद चिकित्सा एवं शिक्षा में प्रगति के लिए सरकार बहुत प्रयास कर रही है एवं इसके लिए कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है। इस अवसर पर आयुष एवं आयुष शिक्षा निदेशक एवं अपर सचिव डॉ विजय कुमार जोगदंडे उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुल सचिव श्री रामजी शरण शर्मा द्वारा किया गया। मंच का संचालन प्रोफेसर नरेश चौधरी द्वारा किया गया। समारोह कार्यक्रम के संचालन हेतु विभिन्न समितियों में विश्वविद्यालय के शिक्षकों कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं द्वारा सहयोग किया गया। इस कार्यक्रम में हरिद्वार की मेयर श्रीमती किरण जैसल, जिलाधिकारी पुलिस अधीक्षक, मुख्य विकास अधिकारी, जिला आयुर्वेद अधिकारी एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, विशिष्ट अतिथि, वरिष्ठ शिक्षकजन एवं गणमान्य अतिथि गण उपस्थित रहे। कार्यक्रम में तीनों परिसरों के अधिकारी शिक्षकों डॉ केके शर्मा, डॉ डीसी सिंह, प्रो० पंकज शर्मा, प्रो० बालकृष्ण पवांर, प्रो० संजयत्रिपाठी, प्रो० आलोक श्रीवास्तव, संजीव पांडे उप कुलसचिव, प्रो० उत्तम कुमार शर्मा, डा० नंदकिशोर दाधीचि, डा० राजीव कुरेले, डा० रीना दीक्षित, डा० विपिन अरोड़ा, डा० डॉ वर्षा सक्सैना, डा मन्नत मरवाह, डा० डी के सेमवाल, डा० आशुतोष चौहान, हरिश्चंद्र गुप्ता, मंजूपांडे, चंद्र मोहन पेन्यूली विवेकजोशी, मोहित मनोचा, जगदीश केंतुरा, खेमचंद भट्ट, विवेकतिवारी, आदि शिक्षकों का सक्रिय योगदान रहा। कार्यक्रम की व्यवस्था सभी विभागों के शिक्षकों एवं शोधार्थी डॉक्टर एवं आयुर्वेदिक विद्यार्थियों ने वालंटियर के रूप में सक्रिय योगदान दिया।