ऋषिकेश, 20 जुलाई। केंद्र सरकार ने एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं की एक सूची को तैयार कर उन्हें 1 जुलाई, 2022 से प्रतिबंधित कर दिया है, परन्तु विडम्बना है कि कांवड यात्रा के दौरान प्लास्टिक की बाॅटल, सिंगल यूज प्लास्टिक के बैग और ंिसंगल यूज प्लास्टिक के रेनकोट का भारी मात्रा में उपयोग किया जा रहा हैं, जो कि मानव और पर्यावरण दोनों के लिये घातक है। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में सिंगल यूज प्लास्टिक से वन्य जीवों के साथ प्राकृतिक वातावरण भी प्रभावित होने का खतरा बना रहता है इसलिये कांवडियों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर प्लास्टिक कचरे को फैलाने से रोकने के साथ -साथ प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा। साथ ही समाज, सरकार और संस्थायें को मिलकर सिंगल यूज प्लास्टिक के स्थान पर बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के विषय में मंथन करना होगा; सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्पों खोजना होगा ताकि हमारा नेचर, कल्चर और फ्यूचर को बचाया जा सके।
परमार्थ निकेतन आश्रम द्वारा प्रतिवर्ष कांवड यात्रा के दौरान कांवडियों की सुविधा के लिये स्वास्थ्य शिविर, जल मन्दिरों की स्थापना और सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति जनसमुदाय को जागरूक करने के लिये पपेट शो का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी कांवडियों को जागरूक करने के लिये प्रतिदिन तीन से चार शो किये जा रहे है ताकि प्लास्टिक से होने वाले खतरों के बारे में जनसमुदाय को जानकारी हो।
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर 130 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक अधिकांश कचरे के लिये जिम्मेदार है, जिसमें से अधिकांश को जला दिया जाता है और लैंडफिल कर दिया जाता है या सीधे पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है। कांवड यात्रा के दौरान एकल उपयोग प्लास्टिक से बने रेनकोट को एक बार उपयोग कर वहीं पर छोड़ दिया जाता है जिससे वन्य जीवन और प्र्यावरण दोनों प्रभावित होते है। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2050 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 5-10 प्रतिशत के लिये जिम्मेदार हो सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि कांवड़ यात्रा में आज का युवा बहुत उत्साह से भाग ले रहा है। युवाओं को यात्रा के उत्साह के साथ ही कांवड़ यात्रा का इतिहास और उसके महत्व के विषय में भी जानकारी होनी चाहिये। कांवड़ यात्रा का मतलब यह नहीं कि हम गंगा जल लेकर जायें और भगवान शिव का अभिषेक करे बल्कि हमें इसकेे इतिहास को जानना होगा।
कांवड यात्रा बहुत दिव्य, प्राचीन और प्रेरणादायक है। कहा जाता है कि जब सागर मंथन हुआ था तब उसमें से सबसे पहले विष निकला। जीवन में भी ऐसा कई बार होता है। हम चाहते है कि हमें अमृत मिले, जीवन में सफलता मिले; समृद्धि मिले और सिद्धि मिले लेकिन जब हम उस रास्ते पर चलते है तो कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सागर मंथन में भी ऐसा ही हुआ था सब ने मिलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सागर मंथन किया परन्तु पहले उसमें भी विष निकला तब सभी ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने सभी पर कृपा करते हुये आंखे बंद की और विष का पान कर चले आये हिमालय में तब से गंगा के गोद में बसा नीलकंठ पर्वत वह भगवान शिव के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान समय में प्लास्टिक भी धरती के लिये विष के समान है और हम सभी को मिलकर इस विष रूपी प्लास्टिक का समाधान खोजना होगा।
विषपान करने के पश्चात उस उष्णता को शांत करने के लिये भगवान शिव को जब शीतलता की आवश्यकता पड़़ी तो उन्होने गंगा जी में स्नान किया उसी की याद में श्रावण माह में कांवड यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा की पवित्रता को बनाये रखने सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करें।