समाज में व्याप्त जड़ता को दूर नितांत आवश्यक स्वामी चिदानन्द सरस्वती

महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले जी जयंती पर विशेष
समाज में व्याप्त जड़ता को दूर नितांत आवश्यक
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 20 फरवरी। परमार्थ निकेेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने महान समाज सुधारक, चिंतक, दार्शनिक एवं लेखक महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये अपने संदेश में कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने जीवन भर नारी शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए कार्य किया। समाज में व्याप्त जड़ता को दूर करने के लिये उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। पीड़ित समाज और हाशिये पर खड़े लोगों के लिये उन्होंने समर्पण और निष्ठा से जो कार्य किया वह आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले जी एक अग्रणी पंक्ति के समाज सुधारक थे जिन्होंने अपना जीवन नारियों, पीड़ित और उपेक्षित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने और उनके उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। वे एक समाज सुधारक होने के साथ-साथ लेखक, चिंतक, दार्शनिक और संपादक भी थे।
19 वीं सदी मेें समाज में सामाजिक भेदभाव चरम पर था। समाज के हाशिए पर रहने वाली जातियों व लोगों के साथ अत्यधिक उत्पीड़न किया जा रहा था। ऐसे में ज्योतिराव फुले जी को भी सामाजिक भेदभाव एवं उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उसके पश्चात ही उन्होंने सामाजिक भेदभाव और असमानता को उखाड़ फेंकने का निश्चय किया।
उनका मानना था कि यदि आजादी, समानता, मानवता, आर्थिक न्याय, शोषणरहित मूल्यों और भाईचारे पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है तो प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होना होगा तभी असमानता का व्यवहार और शोषक वृतियों को बंद किया जा सकता है और उनकी इस मुहिम को सामाजिक आंदोलन बनाने हेतु उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ज्योतिराव फुले जी ने स्वयं सावित्री बाई की शिक्षा का प्रबंध करवाया और इसके पश्चात उन्होंने भारत में लड़कियों के लिए समर्पित पहला विद्यालय खोला । उन्होंने विधवाओं के लिए आश्रम का निर्माण करवाने के साथ-साथ विधवा पुनर्विवाह की भी व्यवस्था की। कन्या भ्रूण और कन्याओं की हत्या रोकने के लिए उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए एक बाल आश्रम भी बनाया।
ज्योतिबा फुले जी ने सत्यशोधक समाज नामक संस्था की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य जातिगत आधार पर हो रहे भेदभाव व शोषण से लोगांे को मुक्त कराना था तथा उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाना था।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्तमान समय में एक समुन्नत और संस्कारयुक्त समाज की स्थापना के लिये ऐसे ही कर्तव्य निष्ठ, सकारात्मक सोच और सेवाभावी नौजवानों की आवश्यकता है। उन्होंने देश के युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि समाज के सम्पूर्ण विकास के लिये प्रत्येक युवा को योगदान देना होगा।