आयुर्वेद की दृष्टि से आयुर्वेद ग्रंथों का सही अर्थ जानने के लिए संस्कृत बहुत आवश्यक है-डा. राधावल्लभ सती

देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के मुख्य परिसर आयुर्वेद संकाय हर्रावाला में संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ परिसर निदेशक डा. राधावल्लभ सती द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए डा. सती ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीयता की आधार शिला है। इसी भाषा के माध्यम से प्राचीन काल से चिकित्सा शास्त्र ने प्रगति की है। संस्कृत भाषा सभी क्षेत्रों में अपने ज्ञान ग्रन्थों के माध्यम से व्याप्त है। हमारे ऋषि मुनियों ने इसी भाषा को आधार बनाकर ज्ञान को प्रसारित किया है। यदि हमें वास्तविक रूप में भारतीयता को जानना है तो वह संस्कृत से ही सम्भव है। आयुर्वेद की दृष्टि से आयुर्वेद ग्रंथों का सही अर्थ जानने के लिए संस्कृत बहुत आवश्यक है।

इस अवसर पर डा. प्रदीप सेमवाल असिस्टेंट प्रोफेसर संहिता सिद्धांत एवं संस्कृत विभाग ने प्रास्ताविक भाषण करते हुए कहा कि भारत की पहचान संस्कृत है। संस्कृत विश्व पोषिका भाषा है। बिना संस्कृत भारत की कल्पना कठिन है। प्राचीन काल से लेकर आज तक विश्व भारतीय ज्ञान का प्रशंसक रहा है और भारतीय ज्ञान को जानने के लिए तथा अपने अन्दर व्याप्त शान्ति को जानने के लिए संस्कृत ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। देववाणी संस्कृत पढ़ने वाले भी देव तुल्य हो जाते हैं। कार्यक्रम में डा. राजीव कुरेले ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत समाज को जोड़ती है। सामाजिक उन्नयन के लिए संस्कृत आवश्यक है।
कार्यक्रम में डा. ऋषि आर्य ने अपने वक्तव्य में बताया कि संस्कृत के उच्चारण से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ प्राप्त होता है। कार्यक्रम में बी. एम एस प्रथमवर्ष की छात्रा प्रेरणा, गीतिका मनचन्दा, दिव्या, कुमकुम एवं अदिति राणा ने गणेश वन्दना तथा सरस्वती वन्दना की। लक्ष्मी यादव ने संस्कृत में भाषण दिया। गीतिका अग्रवाल ने संस्कृत कविता पाठ किया, कृशा, काव्या एवं शफक ने संस्कृत गीत में नृत्य प्रस्तुत किया। शिवानी, प्रिंसा, अदिति पंवार, ईशा, कोमल, गौरव , सौरभ व सागर ने संस्कृत नाटक प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन कृशा अग्रवाल और दर्शना भट्ट के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डा. इला तन्ना सहित सभी विभागों के प्राध्यापक एवं छात्र उपस्थित रहे।