ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
आजकल चमोलो जनपद के चमोली से लेकर गोपेश्वर तक सड़क किनारे और चमोली से पीपलकोटी के मध्य खिले स्वर्ग के फूल अर्थात नीले गुलमोहर नें यहां की सुंदरता में चार चाँद लगा दियें हैं। इसकी सुंदरता हर किसी को भा रही है। स्थानीय लोगों को ये गुलमोहर के ये पेड़ खासे रोमांचित कर रहे हैं। गोपेश्वर के जीरो बैंड तिराहे पर नीले गुलमोहर की सुंदरता की वजह से लोगों के बीच ये तिराहा, गुलमोहर तिराहा के नाम से जाना जाने लगा है। वहीं चमोली से पीपलकोटी के मध्य बिरही पुल के पास नीले गुलमोहर की सुंदरता को देखकर हर कोई अभिभूत हो रहा है। चेज हिमालय के सीईओ विमल मलासी, विनय मैठाणी कहते हैं नीले गुलमोहर के पेड़ो नें चमोली की सुंदरता बढाई है। सड़क के किनारे इसके फूल और पेड बेहद सुंदर दिखाई दे रहें हैं।
गौरतलब है कि इस मनोहारी वृक्ष का मूल जन्म ब्राजील है, तो कुछ इसे मैडागास्कर का मानते हैं। आज यह पूरी दुनिया में फैल गया है। उत्तराखंड के हल्द्वानी को लाल गुलमोहर शहर कहा जाता है क्योंकि यहाँ गुलमोहर के सैकड़ो पेड है। जबकि चमोली से लेकर गोपेश्वर तक सड़क के किनारे दर्जनों नीले गुलमोहर के पेड़ को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो उस पेड़ पर कोई बादल आकर बैठा हो। वनस्पति विज्ञानी इसे जैकरंडा मिमोसिफोलिया कहते हैं। जैकरंडा ब्राज़ीली नाम है। उत्तराखंड का हल्द्वानी लाल गुलमोहर का शहर है जबकि चंबा से नागणी और सावली गांव तक नीले गुमोहर की अद्भुत बहार छाई हुई है। गढ़वाल के गांव इस दूर देश से आए जैकरेंडा यानी नीले गुलमोहर को बहुत पसंद आए हैं। इन्हें दाख कर अद्भुत सम्मोहन होता है। इसे ‘स्वर्ग का फूल’ के नाम से भी जानते हैं। गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन फूलों से प्राप्त होता है। फूलों से परागीकरण मुख्यतया पक्षियों द्वारा होता है।