आचरण और व्यक्तित्व”– एम.एस.रावत*

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल आचरण से ही व्यक्तित्व निर्माण होता है,या यों भी कह सकते है कि आचरण ही व्यक्तित्व के दर्पण है,हमारे रहन सहन ,लोकव्यवहार व शिष्टाचार के साथ साथविचारों में भि आचरण का प्रभाव पड़ता है,जो हमारे व्यक्तित्व के निर्माण का आधार है,इसी दिशा में हमेशा सतर्क रह कर आचरण करना होगा, विचारों में बड़ी शक्ति होती है,यह शक्ति अपने विरोधियों को भी घुटने टेकने पर विवश कर देती है,यदिश व्यक्तिके विचारों में सत्यता और गम्भीरता है तो उसका प्रभाव अन्य लोगो पर भी पड़ता है।

आचरण की शुचिता जीवन की वास्तविकता का बोध कराती है,यह हमारा शरीर केवल अपने लिऐ ही नही है, बल्कि इशारे परिवार व समाज को पर्याप्त अपेक्षाये हैं,साथ ही यह शरीर केवल सुख सुविधाओं तथा ऐश्वर्य के साधनों,के होते हुऐ भी कमल की भांति सदैव इनसे निरापद होते हुऐ ईमानदारी से अधीर सामाजिक व पारिवारिक दाईत्वों का निर्वहन करने के लिऐ है,ऐसे आचरण से हम दूसरों के हृदय में अपना स्थान बना सकते हैं, सदैव जो हमे निश्चय ही स्थाई शांति प्रदान करेगा,व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिऐ हमारा दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक होना आवश्यक है,हमारी सोच तभी सार्थक होगा जब वह प्रभाव साली हो,इसके लिऐ हमे सकारात्मक चिंतन के साथ साथ आत्मीयता का भी विस्तार करना होगा व वसुदेव कुटुंबकम की भावना विकसित करनी होगी। हमारा आचरण ही हमे अमरता दिलाता है,याद हम अधिकाधिक लोगों के साथ भलाई का कार्य करेंगे तो लोग हृदय से याद करिंगे,उनमें अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, और जब हम किसी के साथ अपनी इच्छा के विपरित कर्म करेंगे तो चाहे निंदा का पात्र बनायेगा,जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अधिक से अधिक लोगों के हृदय में अपना स्थान बना सके,जीवन के सश्वतम मूल्यों की रक्षा करे,ओर ईमानदारी से नैतिकता के मूल्यों का पालन करते हुऐ,जैसे हम दूसरों से चाहते हैं वैसा ही दूसरों के साथ व्यवहार करे,तभी हमारा व्यक्तित्व निश्चित रूप से बिराट होगा,जो हमारे आत्मबल का के निर्माण का आधार होगा,आज संसार में पैसों से सब कुछ खरीदा जासकता है,लेकिन आचरण की सुचिता और व्यक्तित्व के निर्माण के लिए त्याग की आवश्यकता होती है।
आजकल रिश्तों में व्यवसाइकता अति जा रही है,जिससे संबंधों में अपनत्व में उदाशीनता आती जा रही है,इस विषय में हमे गंभिता से ध्यान देना होगा,अन्यथा बादमे पस्ताने के अलावा कुछ हाथ लगने वाला नही है,आज जो समाज व परिवारों में आचरण आदर्श घट रहा है,इसके लिऐ कहा गया है, दुद्ध की बुद्ध ये कितना कारगर है,व्यक्ति को खुद पर या खुद के परिवार पर आकलन करना होगा,यही कमजोर मानसिकता,आचरण, व्यक्तित्व का ही परिणाम है,व्यक्तित्व की पारदर्शिता सर्वोपरि है,इसके आगे सभी रिश्ते बोने हैं,हमे अगर निर्मल या स्वच्छ परिवार ,समाज का निर्माण करना है तो अपने आचरण और व्यक्तित्व को उत्कृष्ठ रखना होगा।