आवश्यक है आत्मनियंत्रण–एम.एस.रावत*

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल संसार में अनेक लोग आत्नियंत्रण की कमी के करनापनी कठिनाईयों को बढ़ाते रहते हैं,आत्मन्यंत्रण से रहित व्यक्ति सारा जीवन कठिनाईयों से छुटकारा पाने के लिए क्लेश्मय संघरसमे ही बिट जाती है,दूसरी ओर आत्मनियंत्रण करने वाला व्यक्ति अपने संतोष एवम् आंतरिक शांति के कारण सुखी जीवन बिताते देखे जाते हैं,हो सकता हैकि उनके पास भौंतिक सुख, साधन की कमी दूसरों को यह आसानी से कहलेनेदें कि उस व्यक्ति के पास तो कुछ भी नही यह तो बड़ा दुःखी है, पर यह ध्यान रखना चाहिए कि वास्तव में किस सुख , और आंतरिक मानसिकता से निहित है,न कि बाहरी वस्तुओ में आंतरिक सुख का महत्वपूर्ण कारण आत्मनियंत्रण है।
अत: सशक्त बनने का प्रयत्न करते रहना चाहिए,विवेक एव वैराग्य ,भावना, आत्मनियंत्रण को दृढ़ बनाती है, आत्मनियंत्र से अनेक लाभ हैं,इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण आजाता है,चरित्र में बाल आजाता है,मन की चंचलता कम हो जाती है,क्या समाप्त ही हो जाती है,सभी लोगों के ऊपर आकर्षक ढंगसे प्रभाव पड़ता है,आत्मनियंत्रण व्यत्ति को गलत विचारों से बचाता है, आत्मनियंत्रण वाला व्यक्ति अपना और जगत का दोनो का ही कल्याण कर होता है,यादि आत्मचिंतन न हो और मनकी चंचलता को खुली छूटदी जायतो व्यक्ति का पतन सुनिश्चित है,अत: प्रत्येक मनुष्य के लिऐ आत्म- नियंत्रण एक आवश्यक करणीय कार्य है,इसके द्वारा वास्तविक आनंद प्राप्त कियाजा सकता है,इस आनंद का उद्गम-स्थल हमारा हृदय है,यह अंत: स्थल ही प्रसन्नता की जड़ है,बाहर तो कही आनंद का उदगम होगा तो वह अंतरिक प्रदेश में ही होगा आनंद की कोई सीमा नही,कोई परिणाम नही ,कोई बंधन्नही समय,स्थल, एवम् प्रस्थति की बाध्यता भी नहीं।
यह बिलकुल हमारा अपना है,और स्वतंत्र है,आज के युग में एक भ्रांति धारणा पनप रही है,वह यह कि सारा आनंद धन में समाहिताई,धन हो तो हम आनंदित हो लेंगे,पर हमे नही भूलना चाहिए कि बहुत सी एसी चीजें है,जिसको हम रुपयों से नही खरीद सकते जैसे प्रेम,सहानुभूति,दया,करुणा,सौहार्द और आनंद आदि खरीद सके,जो चीज धंसे नही खरीदी जा सकती हैं,वे हमारे दिल में ही वाश करते हैं,कोई इन्हें जितना चाहे दान कर सकते हैं, येसि स्थतियों की नीव आत्मनियंत्रण में ही है,आत्मनियंत्रण की स्थति व्यक्ति को अपने अंदर लोटा लाती है,जिसे अपने अंदर वर्तमान खजाना दिखाई पड़ने लगता है, उसी के अंदर ये आनंद का स्रोत उमड़ पड़ता है,( जरूरत है,अहम को त्यागना) आनंद चाहिए तो आत्म नियंत्रण साधना पड़ेगा,( घमंड त्यागना होगा) संसारिक से रुकना होगा,आपने अंदर की गहाइयो में झांकना होगा,(और भौतिक कागज पेन लेकर हिसाब लिखिए क्या लाए थे? क्या देगाए?)फिर अपनी नव अर्जित संपति को संभाल ने की भरपूर एकाग्र एकमन एक बचना एक ध्यान इस संपति को संभाल लीजिए,था तभी संभव है,यादि आत्म- दृष्टि अपनाली जाय और इसी मार्ग पीआर आगे बढ़ने का संकल्प करने का प्रयास करते रहिए, और पुन:पुन:प्रयास करे करने का भी संकल्प लेते रहिए।