कल्याण मार्ग व्यर्थ नहीं–एम.एस.रावत

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल कोई भी व्यक्ति कर्म किये बिना नहीं रहसकता कुछ न कुछ करना ही है, इस लिये सोच समझ कर ऐसा मार्ग चुने जो कल्याण कारी हो लोग मोटे तौर से जानते ही हैं कि कौन से कर्म अच्छे भुरे! अच्छे कर्म कल्याणकारी होते हैं, शास्त्र और धार्मिक ग्रंथ हमें कल्याणकारी कर्म कि अच्छी जानकारी देते हैं, हमारा मार्ग दर्शन करते हैं, भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताया हैकि कल्याण कारी कर्म कोई भी हो उसकी जानकारी अच्छी तरह मिलती है, हमारा मार्ग दर्शन करते हैं, कोई भी दुर्गति को नहीं प्राप्त होता, कर्म का बीज नष्ट नहीं होता,अतः निश्चित भाव से व्यक्ति को अच्छे कर्मो का आश्रय लेना चाहिये,अच्छा व्यवहार करना चाहिए इससे अपना भला तो होता ही है, लेकिन दूसरों का भी भला होता है,

कर्म संस्कार बस होते हैं, और संगति का प्रभाव,हमारे पूर्व जन्म की जो संस्कार हैं,उनका न हमें पता है,न उस पर हमारा बस ही चल सकता है, किन्तु जो कर्म लोगोंके सँग-साथ के परिणाम स्वरुप होते हैं,उन्हें हम जानते रहते हैंअच्छी दंगती हैंतो अच्छे कर्म की सम्भावनाये हैं, यही कारण हैं कि सभी धार्मिक ग्रन्थ संतसंग की महिमा से भरे पड़े हैं, सभी उपदेश सतसंग की महिमा का गुणगान करते हैं, कल्याण कारी कर्म की विशेषता है कि जो व्यक्ति इस मार्ग पर चलनेकी वास्तविक इच्छा रखता है, उसे ईश्वर के अदृश्य हाथ का सहारा मिलता है, कठिनाईयां आती हैं, तो उनका निवारण भी होता रहता है, अंतर ह्रदय से प्रेरणा मिलती रहती है,उत्साह बढ़ता है, श्यायोगी जुड़ते चले जाते हैं, यस और कीर्ति तो पीछे ही लग जाती है, जिस महापुरुष का नाम समाज आदर श्रद्धा के साथ लेता है, उनके जीवन का विश्लेषण कियाजाय तो बात समझ में आजाती है कि उसकी महानता का आधार उनके कल्याण कारी कर्म हैं, वें कर्म उनकी उद्द्त भावनाओं एवं बिचारों की उपज थे, अतः कल्याण कारी कर्मो का संपादन हो इसके लिये पहले यह जरूरी हैकि उत्तम बिचार एवं भावनाओं का प्रस्फूरण हो,
शास्त्र एवं सदग्रंथ इसमें हमारी भरपूर सहायता कर सकते हैं, कर्म की गति जश्न है, बड़े बड़े विद्वान् भी इस विषय में भर्मित होजाते हैं,सृष्ठी वा वांच्छनीय और सम्यक संचालन कल्याण कारी कर्मो पर निर्भर करता है, और उसका फल यही तो संसार चक्र है,
अश्यमेवभोगतव्यम
कृत कर्म शुभाशुभ :-
यह सृष्टि का सारस्वत सिद्धांत है, जो विवेकी हैं, वें इस बातको ध्यानमें रखकर शुभाशुभ कर्म ही करते हैं, प्रतेक व्यक्ति इस लोक या प्रलोक दोनों में ही सुख और शांति पाना चाहते हैं, जहाँ तक कर्मो का संबंध है, दोनों लोकों में सुख और शाँति की प्राप्ति कल्याणकारी कर्मो से ही हो सकती है, इस सृष्टि से यह आवश्यक हैकि हम कल्याणकारी कर्मो पर विचार करे, मनन करे, उन्हें करने का शंकल्प ले और करने में दृढ़ता रखे और देहाभिमान एवं अहंकार छोड़ कर प्रभु कि इच्छा, प्रेरणा,योजना,एवं शक्ति का आश्रय ले कर्मो का संपादन करे, यह विश्वाश रखे कि कल्याण कारी कर्म चाहे वह कितना भी छोटा हो करने में कष्ट नहीं होता, और उन कर्मोको करने वाले कि कभी दुर्गति भी नहीं होती।