प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। संयुक्त राष्ट्र संघ के आवाहन पर खाद्य एवं कृषि संगठनों द्वारा 5 दिसंबर को हर बर्ष विश्व मृदा दिवस एक नई थीम के साथ मनाया जाता है। विश्व मृदा दिवस 2023 की थीम “मिट्टी और पानी, जीवन का स्रोत”।
विश्व मृदा दिवस का मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा कृषि के साथ साथ जलवायु परिवर्तन का असर कम करना गरीबी उन्मूलन और सतत् विकास के लिए मिट्टी के महत्व के बारे में दुनिया को जनमानस को जागरूक करना है।
मिट्टी मानव जीवन का आधार है। समस्त मानव जीवन मिट्टी पर निर्भर करता है। यह हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह भोजन, कपड़े, आश्रय और दवा समेत जीवन के चार प्रमुख साधनों का स्रोत यही है। इसलिए इसके संरक्षण व संवर्धन पर ध्यान देना जरूरी है।
वनों का दोहन, पेड़ों की कटाई से जंगल तो कम हो ही रहे है, साथ ही पेड़ों की जड़ें, जो मिट्टी को बांधकर रखती हैं, पेड़ कम होने से बाढ़, तेज बारिश, या तूफानी हवाओं से प्राकृतिक आपदाओं आती हैं जो अपने साथ उपजाऊ मिट्टी बहा ले जाती हैं जिससे भूमि में उपजाऊ मिट्टी का छरण व कटाव हो रहा है।
जनसंख्या में वृद्धि,बढ़ते औद्योगिकरण , वाहनों की संख्या में वृद्धि, पैट्रोलियम ईंधन एवं ऊर्जा की बढ़ती खपत, जंगलों में आग, जंगलों का दोहन, खेती में अधिक रासायनिक, कीट व्याधिनाशक दवाइयों का प्रयोग व अन्य कारणों से मृदा जहरीली व प्रदूषित हुई है।
अच्छी उपज हेतु मिट्टी की जांच आवश्यक है ,मृदा के स्वास्थ्य की जांच हेतु भारत सरकार के सहयोग से सभी राज्य सरकारें, स्वाइल हेल्थ कार्ड योजना के माध्यम से मिट्टी की जांच करा रहें हैं।
मृदा परीक्षण मिट्टी के किसी नमूने की रासायनिक जांच है जिससे भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा के बारे में जानकारी मिलती है साथ ही मृदा में लवणता, क्षारीयता तथा अमलीयता की समस्या की पहचान का पता लगाया जा सकता है।जांच के आधार पर भूमि में पोषक तत्वों की कमी पाये जाने पर सुधार किया जा सकता है।
पौधों को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें मुख्य तत्व,कार्बन, हाइडोजन, आक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्सिशयम, मैग्नीशियम हैं जबकि सूक्ष्म तत्च जस्ता मैग्नीज, ताँबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम व क्लोरीन। इन सभी तत्वों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करने से ही उपयुक्त पैदावार ली जा सकती है।
अच्छी उपज हेतु मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्वन 0.8 तक होना चाहिए ,कार्बन पदार्थ कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है।
यदि भूमि में जैविक कार्वन की मात्रा कम हो तो जंगल की ऊपरी सतह की मिट्टी ,गोबर/ कम्पोस्ट खाद व जीवामृत का प्रयोग करें।
पी.एच. मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय) है तो मिट्टी में चूना मिलायें यदि मिट्टी का पी.एच. मान अधिक (क्षारीय)है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) का प्रयोग करें। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है तथा हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
मृदा में हवा का संचार बना रहना चाहिए जिससे मृदा का आक्सीजन लेवल ठीक रहे जिससे हानिकारक फफूद नहीं पनपपाते, मृदा का आक्सीजन लेवल तभी ठीक रहेगा जव भूमि की मिट्टी के कणों के बीच Air space होगा अतः भूमि को Compact न होने दें। मिट्टी के कणों के बीच Air space बना रहे इसके लिए अधिक से अधिक जीवांश वाली खादों का प्रयोग करेंं साथ ही पौधों की सूखी धासफूस से मल्चिंग करें।
प्राकृतिक खेती अपनायें
भूमि में ह्यूमस (जीवनद्रव्य) के निर्माण हेतु फसलों के अवशेषों को भूमि की सतह पर फसलों की दो कतारों के बीच आच्छादित/बिछायें। आच्छादन मल्चिंग से भूमि में केंचुओं के लिए अनुकूल माइक्रो क्लाइमेट बनती है जिससे केचुऐं कार्य करने लगते हैं इससे भूमि में सुधार होता है।
वनीकरण मृदा संरक्षण की सबसे आसान एवं सरल विधि है। वनीकरण, या अधिक पेड़ लगाना, मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करने का एक पुराना और प्रभावी तरीका है। पौधों और पेड़ों की जड़ें मिट्टी को मजबूती से जमीन से बांधती हैं,जिस कारण अधिक बर्षा पानी द्वारा मिट्टी का कटाव रुकता है।
स्वस्थ जीवन जीने के लिए हम सभी को ऐसी मिट्टी की आवश्यकता होती है जो स्वस्थ और रसायनों से मुक्त हो। आइए हम इस सपने की दिशा में मृदा के संरक्षण व संवर्धन हेतु मिलकर काम करें।