प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। जलवायु व समुद्र तल से ऊंचाई के आधार पर फल पौध का चयन करें।
1200-1600 मीटर के ऊचाई वाले स्थानों में आडू,प्लम ,खुबानी का रोपण करें।
1600 मीटर से अधिक ऊचाई वाले स्थानों में आड़ू प्लम खुवानी नाशपाती अखरोट व सेब के पौधे लगायें।
भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण-
फलदार पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में पैदा किये जा सकते हैं। परन्तु जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है ।
जिस भूमि में उद्यान लगाना है उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा में कार्वन की मात्रा , पी.एच.मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन ) तथा चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
पी.एच. मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय) है तो मिट्टी में चूना मिलायें यदि मिट्टी का पी.एच. मान अधिक (क्षारीय) है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) मिलायें । भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है साथ ही हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अधिकतर फल पौधों के लिए 5.5 – 7.5 पी. एच. मान की भूमि उपयुक्त रहती है, पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर मृदा अम्लीय पायी जाती है अतः भूमि में बारीक पिसा हुआ चूना 100 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से अवश्य मिलाएं।
अच्छी उपज हेतु मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्वन 0.8 तक होना चाहिए किन्तु अधिकतर स्थानों में यह 0.25 – 0.35 प्रतिशत ही पाया जाता है।
कार्बन पदार्थ कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है। जैविक कार्वन का मृदा में स्तर बढ़ाने हेतु जंगल में पेड़ों के नीचे की उपरी सतह की मिट्टी गोबर/ कम्पोस्ट खाद या जीवामृत का प्रयोग करें।
किस्मों का चयन–
आडू -अर्ली अलवर्टा,रेड जून, पैराडीलेक्स एलिकजैन्डर,क्रेफोर्ड अर्ली।
खुबानी–न्यू कैसल, रायल, चारमग्ज, टर्की।
प्लम–सेंटारोजा, मैरी पोजा
ब्लैक अंबर, फ्रायर एंजीलीनो़ ,रेड ब्यूट, क्यून रोजा ,ब्लैक स्पिन्डर।
नाशपाती–रेड वार्टलेट, मैक्स रेड, वार्टलेट, विन्टरनेलिस
अखरोट में प्रयास करें कि कलमी पौधे मिल जाए विभागों या परियोजनाओं में दिये गये अखरोट के बीजू पौधों की विश्वसनियता कम ही है।
सरकारी योजनाओं व परियोजनाओं में आड़ू व प्लम के पौधे सहारनपुर व मैदानी क्षेत्रों में स्थित पंजीकृत पौधशालाओं से क्रय किए जाते हैं मैदानी क्षेत्रों में इनके पौधे एक ही बर्ष में तैयार हो जाते हैं जिससे इनके उत्पादन में लागत कम आती है।पहाड़ी क्षेत्रों में इन पौधों के रोपण के बाद मृत्यु दर बहुत अधिक होती है साथ ही ये लो चिलिंग किस्में हैं जिनके फलौ की बाजार में अपेक्षाकृत मांग कम रहती है।
सहारनपुर व अन्य मैदानी क्षेत्रों की पौधालयों में उगाये गये शीतकालीन फल पौधौं को पहाडी क्षेत्रों में कदापि न लगायें। शीतकालीन पौधे पहाड़ी क्षेत्रों की पंजीकृत पौधशालाओं से ही क्रय करें।
राज्य सरकार सेब मिशन व अन्य योजनाओं के अन्तर्गत सेब के बाग लगाने हेतु कृषकों को प्रोत्साहित कर रही है। सेब के बाग, विशेषज्ञों व सफल बागवान जो सेब की बागवानी कर रहें हैं से विचार-विमर्श के बाद ही लगायें कहीं ऐसा न हो आपका धन व मेहनत बेकार जाय और बाद में पछताना पड़े।
उत्तराखंड राज्य का अधिकांश भाग भौगोलिक रुप से temperate zone नही है ,उत्तराखंड राज्य 28 – 31 डिग्री उत्तरीय अक्षांश पर है जबकि हिमाचल प्रदेश 30 – 33 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर है हिमाचल प्रदेश में जितनी ठंड 1500 मीटर पर पड़ती है उत्तराखंड में उतनी ही ठंड 2000 मीटर की ऊंचाई पर पड़ती है। यहां पर उंचाई व बर्फीले पहाडौं का लाभ लेते हैं अब जलवायु परिवर्तन एवं अन्य कारणों से पहाड़ियों में उतनी ठंड नही मिल पाती है जितनी सेब के पेडौं के लिए आबश्यक है।
सेव उत्पादन के लिए राज्य के अधिक ऊंचाई वाले उत्तरी भाग जो 30 डिग्री उत्तरीय अक्षांश ( North latitude ) से ऊपर हैं तथा हिमाचल प्रदेश के समीप है, जनपद उत्तरकाशी, टेहरी में थत्यूड/ जौनपुर क्षेत्र एवं देहरादून में चकरौता/ त्यूणी वाला क्षेत्र सेब उत्पादन के लिए अनुकूल है तथा इन क्षेत्रों में बागवान अच्छा सेब उत्पादन कर रहे हैं। नैनीताल के रामगढ़ व अन्य क्षेत्रों में भी जहां सेब के लिए अनुकूल जलवायु है सेब के नये बाग विकसित हो रहे हैं। सेब उत्पादन के लिए 2000 Mt से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के नजदीक है तथा जहां आसपास जंगल हों जिससे अनुकूल माइक्रोकल्यमेट मिल सके तथा जिनका ढाल उत्तर पश्चिम दिशा का चयन करें। दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम ढलान पर सेब का बाग न लगायें।
जहां पर पूर्व में सेव के बाग लगे हों उन स्थानौं में नये सेव के बाग उगाने में सफलता कम ही मिलती है इन स्थानों में गड्ढो को सौर ऊर्जा या फार्मेलीन से उपचारित कर ही सेब के पौधे लगायें या उन स्थानौ पर अखरोट व नाशपाती के फल पौधों का रोपण कर सकते हैं।
बाग लगाने से एक माह पूर्व खेतों की सफाई करें तथा बाग रेखांकन (layout)कर गड्ढे खोद लें,गड्ढों को खुला छोड़ दें जिससे सूर्य का प्रकाश गड्ढों के अन्दर तक जा सके, जल निकासी का उचित प्रबंध करें।
पौधों का रोपण उचित दूरी पर करें-
आडू ,प्लम खुवानी- 6×6 M
नाशपाती-. 8×8M
अखरोट- 10×8M
पौधौ रोपण हेतु 1×1×1 मीटर के गड्डे खोदें।
शीतकालीन फल पौध रोपण की तैयारी का यह उपयुक्त समय है, पौधों का रोपण माह दिसम्बर/ जनवरी में करें।
बाग में 10% परागणकर्ता किस्मों का रोपण अवश्य करें।
पौध रोपण से पूर्व खुदे गडों को मिट्टी में खूब सड़ी गोबर की खाद मिलाकर भूमि की सतह से 2″ ऊपर तक भरें।पौधों का रोपण गडें के बीचों बीच करें तथा उतनी ही गहराई में करें जितना पौधा नर्सरी में दबा था।
पौधे का कलम किया स्थान union भूमि से ऊपर रहना चाहिए।
पौध लगाने के बाद उसके आस पास की मिट्टी को पैरों से खूब दबा देना चाहिए।
पौधे यदि दूर से लाये गये है तो लगाने से पूर्व उन्हें Trenching अर्थात नाली खोद कर कुछ समय के लिए मिट्टी में दबा दें जिससे पूरे पौधे में पानी का संचार ठीक से हो सके।
पौध लगाने से पूर्व पौधे को ग्राफ्ट से 45-50 सेन्टि-मीटर पर अवश्य काट लें।