प्रदीप कुमार
ऊखीमठ/श्रीनगर गढ़वाल। पंच केदारो में द्वितीय केदार के नाम से विख्यात व सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य विराजमान भगवान मदमहेश्वर के कपाट वेद ऋचाओं व विधि – विधान से शीतकाल के लिए बन्द कर दिये गये! कपाट बन्द होने के पावन अवसर पर दो सौ से अधिक श्रद्धालु कपाट बन्द होने के साक्षी बने। कपाट बन्द होने के बाद भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली विभिन्न यात्रा पड़ावों पर भक्तों को आशीष देते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गौण्डार गांव पहुंच गयी है तथा चल विग्रह उत्सव डोली 25 नवम्बर को शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर में विराजमान होगी तथा 26 नवम्बर से भगवान मदमहेश्वर की शीतकालीन पूजा विधिवत शुरू होगी बुधवार को ब्रह्म बेला पर मदमहेश्वर धाम के प्रधान पुजारी बागेश लिंग ने पंचाग पूजन के तहत भगवान मदमहेश्वर सहित सभी देवी – देवताओं का आवाहन किया तथा भगवान मदमहेश्वर के स्वयंभू लिंग को भस्म, चन्दन, बागाम्बर, पुष्प, अक्षत्र, भृगराज सहित अनेक पूजा सामग्रियों से समाधि दी गयी तथा भगवान मदमहेश्वर जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हो गये। भगवान मदमहेश्वर के कपाट शुभ लगनानुसार वेद ऋचाओं के साथ बन्द होने के बाद भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली का विशेष श्रृंगार किया तथा भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली सहित अनेक देवी – देवताओं के निशाणों ने मुख्य मन्दिर सहित सहायक मन्दिरों की परिक्रमा की तथा चल विग्रह उत्सव डोली कैलाश से शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ के लिए रवाना हुई। भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम से रवाना होते ही सैकड़ों भक्तों की जयकारों से मदमहेश्वर धाम गुजायमान हो उठा! भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के दोपहर बाद गौण्डार गांव आगमन पर ग्रामीणों ने पुष्प अक्षत्रो से भव्य स्वागत किया तथा लाल – पीले वस्त्र अर्पित कर क्षेत्र के समृद्धि की कामना की। गुरूवार को भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली गौण्डार गांव से रवाना होकर द्वितीय रात्रि प्रवास के लिए राकेश्वरी मन्दिर रासी पहुंचेगी। मन्दिर समिति के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी यदुवीर पुष्वाण ने बताया कि इस बार यात्रा काल में 12777 तीर्थ यात्रियों ने मदमहेश्वर धाम पहुंचकर पुण्य अर्जित किया! इस मौके पर प्रधान बीर सिंह पंवार, डोली प्रभारी पारेश्वर त्रिवेदी, वेदपाठी, यशोधर मैठाणी, मृत्युंजय हिरेमठ,बृजमोहन सहित गौण्डार, रासी व उनियाणा के हक – हकूकधारी, जनप्रतिनिधि, मन्दिर समिति के अधिकारी, कर्मचारी व ग्रामीण मौजूद थे।