उत्तराखंड के पहाड़ी गांव के सामाजिक जीवन पर आधारित हमारे गांव की राम लीला (चालीस साल पहले) दूसरी किस्त गतांक से आगे–कविराज नीरज नैथानी

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। आज आपको पहाड़ी गांव की सामाजिक जीवन पर आधारित हमारे गांव की रामलीला 40 साल पहले कि एक झलक लगभग एक महीने की तालीम के बाद रामलीला मंचन की तैयारी को अंतिम रूप दिया जाने लगता।गांव से जुड़े बड़े खेत पर चार छ:तख्त लगाकर मंच बनाया जाता।
मंच के पार्श्व में राम दरबार वाला बड़ा एकल पर्दा लटकाया जाता।यद्यपि इसमें भगवान रामचंद्र,सीता माता,लक्ष्मण,भरत शत्रुघ्न व हनुमान जी के चित्रांकन का दृश्य होता लेकिन यही पूरी रामलीला में दृष्टिगोचर होता रहता, अब चाहें मंच पर सीन सूर्पनखा के नाक कटने का दिखाया जा रहा हो या खरदूषण वध का अथवा धनुष भंग का या लक्ष्मण मेघनाद युद्ध का।
मंच के पास एक बल्ली गाढ़कर उस पर पूजा धूप बत्ती करने के पश्चात हनुमान जी का केसरिया ध्वज लगा दिया जाता जो सम्पूर्ण रामलीला अवधि में फहराता रहता।
नयी कमेटी वाले पुराने ट्रंक से पात्रों की कस्ट्यूम को धूप में सुखाकर नमी की गंध बास को दूर करते।पिछली बार के बचे खुचे मेकअप के सामान को कण्डम मान कर उसके स्थान पर शहर से नयी सामग्री मंगायी जाती।
कुछ ड्रेस जो फट चुकीं होतीं उनके स्थान पर नये कपड़े सिलवाए जाते।पुरानी‌ फट गये कपड़ों को टांके व गांठ लगाकर राक्षसों व बानर सेना के पहनने लायक बना दिया जाता।
पेट्रोमेक्स के लिए मिट्टी का तेल,नये मेंटल आदि की व्यवस्था कर दी जाती।हां,पुरानी कमेटी ने कुछ साल पहले एक पुराना खटारा किस्म का लाऊडस्पीकर भी कहीं से जुटा लिया था।
हांलाकि बजते समय उससे घीं घीं घूं घूं चीं ची की अजीब सी आवाजें आतीं लेकिन मंच पर डायलौग बोलने वाला पात्र उसी के आगे मुंह ले जाकर अपने संवाद बोलता तथा उसका संवाद पूरा होने से पहले ही अगला चरित्र उसे धकिया कर माइक के आगे पंचम स्वर में अपनी चौपाई गायन करता।
कुछ एक पात्रों को छोड़कर सभी अपने हाथ में पर्ची छुपकर रखते (जिसे सभी दर्शक आसानी से देख सकते थे) वे पर्ची में पढ़कर अपनी चौपाई या डायलौग बोलते।
फिर भी गैस के कम उजाले में ठीक से न पढ़ पाने पर पर्दे के पीछे से कमेटी का सक्रिय सदस्य रजिस्टर में पढ़कर प्राऊंटिंग करता।
कान कम सुनने वाले या बुजुर्ग कलाकार जब मंच से ही प्राउंटिंग करने वाले से ऊंची आवाज में कहते जरा जोर से डायलोग बोलो सुनायी नहीं दे रहा तो दर्शक पात्र के बजाय पार्श्व से बोले जा रहे संवाद को सहजता से‌ सुन रहे होते थे।
अब चाहें इसे आप धार्मिक आस्था कहें या भक्ति भाव अथवा परम्परा संस्कृति का अनुसरण खेली जाने वाली रामलीला की कभी मी मंचीय संदर्भ में आलोचना नहीं की जाती।
चरित्र अभनीत करने वाले कलाकार की अभिनय शैली की प्रशंसा करना उसे प्रोत्साहित करना दर्शकों का नैतिक व्यवहार था।
कतिपय सक्षम परिवार के सदस्य प्रोत्साहन स्वरूप पारितोषिक भी देते।
जब एक सीन के पूर्ण होने के पश्चात दूसरे दृश्य की तैयारी चल रही होती(हांलाकि वह भी कमोबेश पहले दृश्य ही होता) तो संचालक माइक के आगे रजिस्टर से पढ़कर घोषणा करता,
राम चंद्र के सुंदर अभिनय पर प्रसन्न होकर देवेश्वरी देवी ने दो रुपए का ईनाम दिया है मैं देवेश्वरी देवी के परिवार की‌कुशल मंगल होने की कामना करता हूं,भगवान राम चंद्र की देवेश्वरी देवी के परिवार पर कृपा बनी रहे।
फिर अगली घोषणा होती सच्चिदानंद के शानदार अभिनय पर प्रसन्न होकर ईनाम दिया है।
मैं सच्चिदानंद के परिवार की‌ कुशल मंगल होने की कामना करता हूं,भगवान राम चंद्र जी की सच्चिदानंद जी के परिवार पर कृपा बनी रहे।
श्रोताओं का एक प्रबुद्ध वर्ग अपेक्षा करता था कि सभी दानदाताओं के नाम एक साथ पढ़े जांए व सभी को एक साथ धन्यवाद व आशीवार्द दिया जाय परंतु संचालक माइक मोह के चलते इस प्रक्रिया को विस्तृत करते हुए पुनरावृत्ति पर पुनरावृत्ति करता तथा मंच पर लम्बी अवधि तक उपस्थित होने की इसे वाजिब वजह मानता।