प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड में युवा पोल्ट्री व मत्स्य पालन को एक व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं ,पहाड़ी क्षेत्रों में मुर्गियों व मछलियों का चारा महंगा पड़ता है जिसकारण इस व्यवसाय में लागत अधिक आने से लाभ कम मिल पाता है।अजोला की खेती/ उत्पादन एक सस्ता व पौष्टिक आहार हो सकता है।
अजोला तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती है। अजोला कम लागत व न्यूनतम श्रम से पैदा होने वाला सस्ता, उच्च प्रोटीन युक्त सुपाच्य एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर पशु आहार है। पशुओं को अजोला खिलाने से कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा होता है। अजोला का उपयोग हरे चारे व जैविक खाद के रूप में बहुत लाभकारी है।
अजोला में कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है, इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक पशु आहार बनाती है। इसे पशुओं द्वारा आसानी से पचाया जा सकता है। क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक एवं लिग्निन की मात्रा कम होती है। पशु बहुत ही जल्दी इसके अभ्यस्त हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त अजोला के उत्पादन की प्रक्रिया सरल एवं किफायती है। अजोला में प्रोटीन आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों , मछलियां आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।
यह मुर्गियों व मछलियों का पसंदीदा आहार है। कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है. यह मुर्गीपालन करने वाले व्यवसाइयों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है। यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों एवं खरगोश, बतखों एवं मछलियां के आहार के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
उत्पादन –
आम तौर पर अजोला धान के खेतों या उथले जल निकायों में उगाया जाता है, पहाड़ों में गाड़ गधेरों के पास या किसी पानी वाली छायादार स्थानों में इसका उत्पादन किया जा सकता है। उत्पादन हेतु नये अजोला कल्चर की आवश्यकता होती है।पालीथीन सीट से बने या पक्के पानी के टैंकों में भी इसकी खेती की जा सकती है। अजोला उत्पादन हेतु भूमि की सतह से कम से कम 5 से 10 सेंटीमीटर ऊंचे जलस्तर की ज़रूरत होती है ,25 से 30 डिग्री तापमान इसकी वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है। अजोला के अच्छे उत्पादन हेतु समय समय पर उत्पादन टैंक में उपजाऊ मिटटी व तीन चार दिन पुराना गाय के गोबर को अच्छी तरह मिश्रित कर अजोला उत्पादन वाले तालाब/टैंक में डालते रहना चाहिए। प्रयोग करने से पहले अजोला को उत्पादन टैंक से निकाल कर साफ़ पानी से धो लें तत्पश्चात् छन्नी में रख कर निथार लें।
सफलता की कहानी-
दिनांक 20 नवंबर 2020 को जनपद रुद्रप्रयाग विकास खण्ड अगस्तमुनि के ग्राम भीरी में आजीविका ILSP परियोजना के सहयोग से “इम्पावर्ड सोसायटी” द्वारा “चारा विकास” ( अजोला ) संम्बन्धी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करने गया।
भीरी निवासी भगवती सेमवाल मछ्ली पालन के साथ ही कुकुट्ट पालन भी करते हैं। सेमवाल जी का कहना है कि जब से उन्होंने अजोला का उत्पादन करना शुरू किया है मछलियों व मुर्गियों के लिए चारा/ Feed वाहर से नहीं मंगाना पढ़ता है पहले वे मछलियों एवं मुर्गियों के हेतु चारा वाहर से मंगाते थे जो काफी महंगा होता था।
एक छोटे से पोखर में वे अजोला कल्चर (नया अजोला) डालते हैं जिससे तीन दिनों के भीतर उन्हें दस कीलो ग्राम तक अजोला प्राप्त हो जाता है जिसे वे मछली पालन टेंक में डालते रहते हैं साथ ही मुर्गियों को खिलाते हैं। सेमवाल जी का कहना है कि अजोला चारे को मछलियां बहुत तेजी से खाती हैं तथा इस चारे को खाने से मछलियों में बड़वार काफी तेजी से होती है। अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।
सेमवाल मछ्ली /कुकुट्ट पालन के साथ साथ बड़ी इलायची का भी अच्छा उत्पादन कर ग्रामीण स्वरोजगार कर रहे हैं जिसमें उनके पूरे परिवार की भागीदारी है।