अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस पर समाज को स्वस्थ बनाने के साथ ही उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने का संकल्प लें – अखिलेश चंद्र चमोला।

गबर सिंह भंडारी

श्रीनगर गढ़वाल।अन्तरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस के पुनीत सुअवसर पर हमारे राज्य के उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित नशा उन्मूलन प्रभारी अखिलेश चन्द्र चमोला से खास बातचीत—-

प्रतिवर्ष 26 जून को अन्तरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस मनाया जाता है।सर्वप्रथम नशीली वस्तु ओं और पदार्थों का निवारण के लिए संयुक्त राष्ट्र महा सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया था।तभी से हर वर्ष आम जनमानस को नशीले पदार्थों का सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
इस पुनीत पर्व पर अखिलेश चन्द्र चमोला नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौड़ी गढ़वाल ने बताया कि नशा एक जान लेवा बीमारी है जो कि युवा पीढ़ी को निरन्तर चपेट में लाकर उनका जीवन नष्ट कर रही है।हम सबका समग्र प्रयास होना चाहिए कि हम भावी पीढी के सम्मुख अपने आदर्श प्रस्तुत करें। उन्हें इस बात से जरुर अवगत करायें कि हमारा भारत वर्ष सदियों से पूरे विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है।इसी कारण इसे जगत गुरु के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। आज बर्तमान परिदृश्य में स्थिति दूसरी बन गई। पाश्चात्य संस्कृति अपनाने के कारण अपने मूल भूत स्वरुप से भटक चुके हैं। मनुष्य जीवन की सार्थकता नित नए नए जनोपयोगी कार्य करने में है।
आज सबसे बड़ा चिन्तन का विषय यह है कि हमारी महत्वपूर्ण पूंजी,राष्ट्र की धरोहर युवा शक्ति नशा जैसी गंदी आदतों की ओर अग्रसर हो रही है।युवा वर्ग के अन्दर असीम शक्तियों का विशाल पुन्ज निहित रहता है।हर असम्भव कार्य को वह बडी सहजता के साथ सम्पन्न कर सकता है।
नशे को सदियों से हर बुराई का प्रतीक माना जाता है।इसकी लत से हिंसा ,चोरी, आत्म हत्या आदि करने में ब्यक्ति प्रवृत्त हो जाता है।
मुंह,गले ,फेफडो का कैंसर, ब्लड प्रेशर, अवसाद, कुण्ठा इन सबका कारण नशा है,इसी कारण राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने कहा था —यदि मुझे एक घन्टे के लिए भारत का सर्वशक्तिमान शासक बना दिया जाए, तो पहला काम जो मैं करुंगा वह यह होगा कि तत्काल तमाम मदिरालयों को बिना किसी मुवाबजा दिये बन्द करा दूंगा।
नशे से मुक्ति पाने के लिए ब्यक्ति के जीवन को भय,तनाव और पलायन से मुक्त कराना होगा।भावी पीढ़ी के समक्ष अपने आदर्श प्रस्तुत करने के साथ साथ बिद्यालयी शिक्षा पाठ्यक्रम मे प्रेरणा दायिनी साहित्य तथा भारतीय संस्कृति पर आधारित प्रसंगों को शामिल करना होगा,जिससे भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन किया जा सके।