फूल जैसी बेटी
बेटी पराया धन होती है
ऐसा मैनें बुजुर्गों से सुना है
पर मेरे लिए बेटी
नहीं है पराया धन,
मेरे लिए बेटी है
इक खुशियों भरी सौग़ात
जिसे भेजा है भगवान ने
मेरे आँगन में
खुशियों की वर्षा करने के लिए।
मेरी बेटी जब हंसती है
तो लगता है जैसे
खिल गए हों सब फूल
दुनिया के सारे ग़म
तब जाता हूँ भूल
पुलकित हो उठता है मेरा मन
इसलिए मैं बेटी को
नहीं मानता पराया धन।
बेटी मेरे लिए नहीं है बोझ
जैसे कि लोग समझते हैं।
बेटी मेरे लिए एक
दोस्त से भी बढ़कर है
जो करती है खुद मेरे
बोझों को हल्का
जब मैं परेशान होता हूँ।
मैं अपनी बेटी को देना चाहता हूं
वह तमाम खुशियां
जो अन्य बेटियों को
मयस्सर न हुई हों,
क्योंकि वह पूरी तरह
भागीदार है मेरे सुख दुःख में।
इसलिए मैं बेटी को
नहीं मानता पराया धन
क्योंकि वह मेरी
फ़ूल जैसी बेटी है।
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।
गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल