आलेख – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
– डॉ उमेश प्रताप वत्स
(महिला दिवस पर विशेष)
आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर क्यों न भारत की विश्व प्रसिद्ध उन महिलाओं पर चर्चा हो जो प्राचीनकाल से वर्तमान तक विभिन्न क्षेत्रों में विश्व का मार्गदर्शन करती आ रही है। वेदों में, गार्गी, मैत्रेयी, विश्वम्भरा, और अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, सकता, और निवावरी जैसी कुछ महिला विद्वानों का उल्लेख किया गया है तथा वेदों में ‘मां’ को अंबा , अम्बिका, दुर्गा, ज्वाला, सरस्वती, शक्ति, भूमि आदि नामों से भी संबोधित किया गया है। इसके अतिरिक्त माँ को जननी, जन्मदात्री, जीवनदायिनी, धात्री आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। सामवेद में एक प्रेरणादायक मंत्र मिलता है, जिसका अभिप्राय है, ‘हे जिज्ञासु पुत्र! तू माता की आज्ञा का पालन कर, अपने दुराचरण से माता को कष्ट मत दे। अपनी माता को अपने समीप रख, मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर।’
भागवत कथा में यशोदा जी व देवकी के साथ-साथ राधा, रुक्मणी, सत्यभामा व सुभद्रा का वर्णन मिलता है।
रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से ‘मां’ को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं-
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’
जब विषय माँ का हो तो माँ पार्वती, माता सीता, यशोदा, जीजाबाई, पन्नाधाय और पुत्र को कमर पर बाँधकर लड़ने वाली रानी लक्ष्मी बाई को कैसे विस्मृत कर सकते हैं।
वर्तमान में भी सनातन संस्कृति का ध्वज फहराने वाली अनाथ आश्रम में असंख्य बच्चों को सनाथ करने वाली ममतामयी माँ साध्वी ऋतंभरा की कथा पंडालों में गरिमामयी उपस्थिति श्रद्धालुओं को भक्ति का रसास्वादन कराती रहती है। साध्वी सरस्वती भागवत विहिप की प्रमुख प्रचारक है, वे नो वर्ष की अवस्था से आदिवासी स्थानों में जाकर सेवा करती रही व साध्वी ऋतंभरा के बाद वे विहिप की प्रमुख प्रचारक के रूप में जानी जाने लगी। जया किशोरी मात्र 7 साल की उम्र से भागवत कथा का वाचन कर रही हैं। एक प्रसिद्ध भारतीय कथावाचक, भजन गायिका और वक्ता हैं। वह 13 जुलाई 1995 को राजस्थान के सुजानगढ़ में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं। कथावाचक देवी चित्रलेखा जी का जन्म 19 जनवरी 1997 को हरियाणा के पलवल जिले के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र 4 साल की उम्र में ही उन्होंने गुरु गिरधारी बाबा की संस्था से जुड़कर कथा वाचन की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। 6 साल की उम्र से ही उन्होंने लोगों को उपदेश देना और कथा सुनाना शुरू कर दिया था। कृष्णप्रिया जी के दादाजी एक पुजारी थे और वे उन्हें भागवत कथा, महाभारत, रामायण और कृष्ण लीला जैसी हिंदू पौराणिक कथाएं सुनाया करते थे। इससे उन्हें इन ग्रंथों की गहन जानकारी प्राप्त हुई। 13 साल की उम्र में ही वे धार्मिक प्रवचन देने लगी थीं और उनके ग्रंथों के ज्ञान और समझ की व्यापक सराहना होने लगी। पलक किशोरी जी को शाम्भवी मिश्रा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के मध्य प्रदेश राज्य के सतना शहर में एक धार्मिक हिन्दू परिवार में पैदा हुईं। उनका जन्म 24 दिसंबर, 2005 को हुआ था। ये धार्मिक ग्रंथों और कथाओं के प्रति गहरी रुचि रखती हैं। लॉकडाउन के दौरान मात्र 16 साल की पलक ने अपना पहला सार्वजनिक कथा वाचन दिया था। देवी नेहा सरस्वत भारतीय अध्यात्म की दुनिया की एक उभरती हुई कथावाचक है। उनका जन्म 26 जून 1997 को उत्तर प्रदेश में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने पहली बार 8 साल की उम्र में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया था। उनकी छोटी बहन देवी निधि सारस्वत ने बहुत ही कम उम्र में उनके साथ कथा प्रचार में शामिल होना शुरू कर दिया था। जल्द ही दोनों बहनें ‘युगल जोड़ी’ के रूप में लोकप्रिय हो गईं। उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। ये सभी भावी पीढ़ी को सनातन से जोड़ने के लिए सफल प्रयास में रत्त हैं।
इस बार विश्व विख्यात महाकुंभ 2025 भी महिलाओं की गरिमामयी उपस्थिति से प्रकाशित रहा। जहाँ एक ओर साध्वी हर्षा रिछारिया महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती में शामिल हुईं। वहीं दूसरी ओर ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाना भी चर्चा का विषय रहा। मोनालिसा रूद्राक्ष की माला बेचते-बेचते वायरल होकर बॉलीवुड तक पहुंच गई तो दूसरी ओर 45 दिन चलें महाकुंभ में लगभग 66 करोड़ श्रद्धालुओं में भी महिलाओं की भागीदारी अधिक रही जो भयंकर भीड़ व व्यवस्थाओं की चिंता न करते हुए महाकुंभ की ओर श्रद्धा रूपी जल के साथ भागीरथी सी बहती जा रही थी। कुछ ऐसी भी महासंकल्पित महिलायें थी जो गर्भावस्था में भी महाकुंभ जाने से वंचित नहीं रहना चाहती थी और ऐसी लगभग 11 माताओं ने अपनी सनातनी संतानों को महाकुंभ प्रयागराज के पावन संगम पर जन्म देकर सौभाग्य प्राप्त किया। महाकुंभ 2025 में 7,000 से ज़्यादा महिलाओं ने संन्यास लिया। इनमें से 246 महिलाओं को नागा संन्यासिनी की दीक्षा दी गई। उल्लेखनीय है कि इनमें अधिकतर महिलाएं उच्च शिक्षित और आत्म चिंतन के लिए पहले से ही जुड़ी हुई थीं। इन महिलाओं को जूना अखाड़ा, पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, और वैष्णव संन्यासियों के धर्माचार्यों ने दीक्षा दी। कुंभ में महिला अखाड़ों में दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा और परी अखाड़ा प्रमुख हैं। कुंभ में महिला संन्यासियों की तपश्चर्या बहुत कठिन होती है। बिना विचारे बातें करने वाले बुद्धिजीवियों को कभी इनकी दिनचर्या पर शोध करना चाहिए।
माता जीजाबाई से प्रभावित होकर अहिल्याबाई ने भारतवर्ष की पावन धरती पर जो उदाहरण प्रस्तुत किया वह अविस्मरणीय है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छौंड़ी गांव में 31 मई 1725 को उत्पन्न देवी अहिल्याबाई होल्कर मराठा साम्राज्य की सम्मानीय रानी थी। वे मल्हारराव होल्कर की पुत्री थी। उन्हें ‘लोकमाता’ और ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि से भी जाना जाता है। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे गांव के पाटिल थे। उन्होंने मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की तथा धर्म का संदेश फैलाने में और औद्योगीकरण के प्रचार-प्रसार में अहम योगदान दिया। माहेश्वर को अपनी राजधानी बनाकर राज्य की सीमाओं से बाहर भी कई मंदिर बनवाए। भूखों के लिए अन्नसत्र और प्यासों के लिए प्याऊ बनवायें। समाज के उत्थान के लिए निरंतर काम करने वाली अहिल्याबाई ने न्याय के लिए अपने बेटे तक को रथ के नीचे कुचलवाकर मारने की ठान ली थी। महाराणी अहिल्याबाई होल्कर महिला सशक्तीकरण और लोकहित के लिए सतत् कार्य करती रही। धर्म के प्रचार-प्रसार और सनातन संस्कृति के संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने लोगों के लिए धर्मशालाएं बनवाईं। औरंगज़ेब द्वारा तोड़े गए कई मंदिरों का पुनः जीर्णोद्धार करवाया। प्रजा पर लगाये गये अनावश्यक कई राज्य कर भी समाप्त किये तथा ऐसी योजना चलाई कि राज्य किसानों को खेती करने के लिए धन देता था तत्पश्चात उपज का आबंटन भी नियमानुसार होता था।
इसी तरह हाडा रानी का इतिहास रोंगटे खड़े कर देता है। हाड़ी रानी राजस्थान में हाड़ा चौहान राजपूत की बेटी थीं और उनका ब्याह रतन सिंह चूड़ावत से हुआ था। रतन सिंह मेवाड़ के सलुम्बर के सरदार थे। हाड़ी रानी ने अपने पति को रणक्षेत्र में उत्साहित करने हेतु जीवन का उत्सर्ग कर दिया था।
सरदार रतन सिंह के महाराणा राजसिंह ने युद्ध में बुलाने का संदेश भेजा तो सात दिन पहले ही हुये विवाहोपरांत वह अपनी सुंदर रानी को छोड़कर युद्ध में जाने के लिए घोड़े पर बैठ तो गया किंतु उसका मन अभी भी रानी के साथ बिताये क्षणों में खोया हुआ था। तब उसने एक सैनिक को रानी से कोई निशानी (सैनाणी) लाने को कहा। रानी समझ गई कि सरदार इस स्थिति में युद्ध नहीं कर पायेंगे और उस राजपूत वीरांगना ने सैनाणी के रूप में स्वयं अपना शीश काटकर थाल में रखकर सरदार रतन सिंह चूडावत के पास भेज दिया। हाड़ा सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। वह शत्रु पर टूट पड़ा। इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा कठिन है। जीवन की आखिरी सांस तक वह लड़ता रहा। औरंगजेब की सहायक सेना को उसने आगे नहीं ही बढने दिया, जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़कर भाग नहीं गया था।
चुण्डावत मांगी सैनाणी,
सिर काट दे दियो क्षत्राणी”
पन्नधाय का चरित्र महिलाओं को ओर भी गर्वान्वित कर जाता है। पन्ना धाय का जन्म चित्तौड़गढ़ के पास पाण्डोली गांव में हुआ था। उनका असली नाम पन्ना गुजरी था। पन्ना धाय खींची चौहान राजपूत थीं। वह राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। रानी कर्णावती के जौहर करने के बाद उदयसिंह के लालन पालन का भार पन्ना को सौंपा गया था। जब चित्तौड़गढ़ के किले में आंतरिक साजिश चल रही थी, तब पन्ना धाय ने अपने बेटे चंदन को उदय सिंह के कपड़े पहनाकर चन्दन को उदय सिंह के बिस्तर पर सुला दिया। क्रोध में अन्धे बनवीर ने बिना देखे उदय सिंह बने चन्दन का वध कर दिया। इस तरह पन्ना ने अपने पुत्र का बलिदान देकर कुँवर उदयसिंह की रक्षा की। आज भी महिलायें भारत माता के मस्तक को हिमालय से भी ऊँचा रखे हुए हैं।
भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी प्रिया झिंगन थी। वह हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर से आती हैं। भारतीय सेना में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। महिलाओं को युद्ध सेवाओं और पर्यवेक्षी भूमिकाओं में अनुमति दी जाती है। महिलाएं भारतीय सेना के चिकित्सा और गैर-चिकित्सा कैडर में शामिल हैं। मई 2021 में, 83 महिलाओं को पहली बार भारतीय सेना में सैन्य पुलिस कोर में जवान के रूप में शामिल किया गया था। अब महिलाएँ एनडीए में प्रवेश ले सकती हैं। 2023 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय सेना में लगभग 7,000 महिला अधिकारी सेवारत हैं।
इसरो में कई महिला वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। डॉ. रितु करिधाल को ‘भारत की रॉकेट महिला’ कहा जाता है। इन्होंने चंद्रयान-2 और मंगलयान मिशन का नेतृत्व किया था। डॉ. वीआर ललिताम्बिका एक प्रसिद्ध इंजीनियर और वैज्ञानिक है जिन्होंने गगनयान मिशन का नेतृत्व किया। अनुराधा टीके संचार उपग्रह और नाविक इंस्टॉलेशन विशेषज्ञ हैं। इन्होंने मिशन मंगल में अहम भूमिका निभाई थी। नंदिनी हरिनाथ ने भी मिशन मंगल में अहम भूमिका निभाई थी। मौमिता दत्ता मंगल मिशन में परियोजना प्रबंधक थी। कीर्ति फौजदार कंप्यूटर वैज्ञानिक है। जो उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करती हैं और उन पर निगाह रखती है। एन. वलारमती इसरो की उपग्रह मिशन की प्रमुख बनने वाली दूसरी महिला अधिकारी है। इन्होंने देश के पहले देशी रडार इमेजिंग उपग्रह री-सैट-1 के प्रक्षेपण में अहम भूमिका निभाई थी।
इसी तरह भारतीय संगीत में महिलाओं ने गायन, वादन, और नृत्य के क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाई है। संगीत में महिलाओं के योगदान को बढ़ावा देने के लिए कई संगठन भी काम कर रहे हैं। महाकाव्य काल में राज्य सभाओं में संगीत में निपुण महिलाओं को राजकलाकार के रूप में नियुक्त किया जाता था। बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी महिलाओं द्वारा मधुर गायन का वर्णन मिलता है। एमएस सुब्बुलक्ष्मी को ‘कर्नाटक संगीत की रानी’ के नाम से जाना जाता है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर विश्व प्रसिद्ध पार्श्व गायिका हैं। आज संगीत के साथ ही कला अभिनय में नवोदित कलाकार अपना प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। आज छावा जैसी फिल्मों की पटकथा नई पीढ़ी के युवाओं को भी अपनी संस्कृति, वीरता के लिए उत्साहित कर जाती है।
नारी को सृष्टि की जननी कहा गया है – ‘स्त्री ना होती जग म्हं, सृष्टि को रचावै कौण।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों, मन म्हं धारें बैठे मौन।
अथर्ववेद का एक श्लोक है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।
जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। नारी ही मां है और नारी ही सृष्टि। एक सृष्टि की कल्पना बगैर मां के नहीं की जा सकती है। मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है।
एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।’
अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरुआत हुई।
नारी सृष्टि का आधार होने के कारण उसे विधाता की अद्वितीय रचना कहा गया है। नारी समाज, संस्कृति और साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है। सृष्टि के आरंभ से ही सृष्टि के निमार्ण और संचालन में नारी की अह्म भूमिका रही है। मानव जाति की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का मूल आधार नारी ही है। गर्भधारण से लेकर संतान का जन्म एवं उसके पालन-पोषण का कार्य नारी ही करती है। परन्तु हमारे समाज में पुरूषों को स्त्रियों से श्रेष्ठ माना जाता है। उन्हें अपने फैसले स्वयं लेने का अधिकार नहीं है। उसके जीवन से संबंधित सभी फैसले पिता, पति या बेटा लेता है वह स्वयं नहीं। हमारे शास्त्रों-पुराणों में हजारों संदर्भ भरे पड़े हैं जिनमें नारी को एक वस्तु या सम्पत्ति माना गया है। आज भी सम्पूर्ण व्यवस्था का निर्माण पुरुषों द्वारा होने के कारण नारी की भूमिका दूसरे दर्जे की ही रही है।
नारी तेरे रूप हजार
कैसा तुझ भी ये संसार
तू सृष्टि की रचयिता है
तू ही है जग का आधार
तू हरिश्चंद्र की तारा भी
भगवान राम की सीता भी
तू अहिल्या तू शबरी
मंदोदरी तू कैकयी भी
ममता के आंचल की यशोदा
कान्हा की राधा भी तू
तू ही कुंती और पांचाली
चीरहरण की साक्षी तू
जहर का पान किया तूने
मीरा बनकर कान्हा की
बेटा अपना कटवा डाला
बन पन्ना कुंवर की रक्षा की
कभी पद्मिनी, दुर्गाबाई
कभी हाडा रानी, जीजाबाई
बाँध पुत्र लड़ी फिरंगी से
रानी झांसी लक्ष्मी बाई
नारी आदि काल से ही सेवा, त्याग व शक्ति का प्रतीक रही है। उसे आचरण, त्याग और सहिष्णुता की मुर्ति माना गया है। भारतीय समाज में पुरुष समाज का महत्व होने के कारण सामान्य नारी नहीं अपितु शिक्षित एवं आधुनिक नारी को भी पुरूष की अधीनता स्वीकार करनी पड़ती है। इस सब का मूल कारण पुरुष की सामन्तवादी मनोवृति एवं अहंकार है। आधुनिक होने के वाबजूद पुरुष वर्ग स्वार्थ केंद्रित परम्परागत और संस्कारों का दास है। उसकी दृष्टि आज भी नारी के मन से अधिक तन की ओर आकर्षित होती है। आर्थिक अवलम्बन भी नारी के शोषण में सहायक है। अर्थ का स्वामी पुरुष नारी को अपनी दासी मानता है। किंतु अब समय बदल रहा है। हमें भी सकारात्मक मन से प्रत्येक नारी का सम्मान करते हुए हर संभव सहयोग करना चाहिए।
वर्तमान नारी परम्परागत रूढ़ियों को नकार कर घर की चार दीवारों से बाहर निकल गई है। वह सामाजिक स्वतंत्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षरत है। हमें इस नई सोच को न केवल स्वीकार करना चाहिए अपितु इसका अभिनंदन करना चाहिए।
स्तंभकार :
डॉ उमेश प्रताप वत्स
umeshpvats@gmail.com
#14 शिवदयाल पुरी, निकट आइटीआइ
यमुनानगर, हरियाणा – 135001
9416966424