ऋषिकेश । परमार्थ निकेतन में यूनाइटेड किंगडम से प्रवासी भारतीयों का एक दल पधारा। उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर गंगा आरती और विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का उत्सव ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाया। स्वतंत्रता के बाद 75 वर्षों की अवधि के दौरान देश ने अनेक उपलब्धियाँ हासिल की। ये 75 वर्ष हमारे लिये ‘गौरवशाली वर्ष रहे’। भारत के नवनिर्माण और प्रगतिशील राष्ट्र निर्माण में प्रवासी भारतीयों की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत की आधारशिला को मजबूत करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रवासी भारतीयों को अपने मूल और मूल्यों से जोड़ने हेतु प्रेरित कर भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मानिर्भर भारत’ जैसे प्रमुख कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण भी तैयार किया जा सकता है। इस तरह से देश के विकास के लिये आने वाले वर्षों का रोडमैप तैयार हो सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि संस्कृति किसी भी देश की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश के समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके आधार पर अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण होता है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। साथ ही यह अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, समृद्ध एवं जीवंत भी हैं, जिसमें वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय है। इस दिव्य संस्कृति को जीवंत और जागृत बनाये रखनें में भारतीयों के साथ प्रवासी भारतीय भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
स्वामी जी ने प्रवासी भारतीयों के दल से चर्चा के दौरान वर्तमान पीढ़ियों को हिन्दी से जोड़ने का संदेश देते हुये कहा कि ’किसी भी राष्ट्र की अपनी एक विशिष्ट भाषा होती है, जो वहां की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी होती है। हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर भारत को एक विशिष्ट पहचान प्रदान की है और यही भारतीयों के मध्य जुड़ाव का सबसे बेहतर माध्यम भी है। भाषा ही वह माध्यम है जो किसी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधती है और उसके द्वारा ही राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होती है। हिन्दी ने हमारे राष्ट्र की एकता को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
स्वामी जी ने प्रवासी भारतीयों का आह्वान करते हुये कहा कि आप चाहे जहां पर भी निवास कर रहें हो परन्तु अपने बच्चों को भारत की सभ्यता, संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, विरासत, कला, आध्यात्मिक और सामाजिक परम्पराओं तथा भारतीय मूल से भावनात्मक रूप से जोड़े रखना। भारत के मूल मंे अहिंसा, करूणा और नैतिकता के दिव्य सूत्र समाहित हैं, इन सूत्रों के साथ युवा पीढ़ी को पोषित करना होगा ताकि करूणा और सहिष्णुता से युक्त भविष्य का निर्माण हो सके।
‘आत्मनिर्भर भारत में योगदान’ देने का किया आह्वान
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‘लोकल से ग्लोबल तक रिश्ता मजबूत करने पर हुई चर्चा’