*उत्तराखंड विधानसभा: मुख्यमंत्री चेहरे धामी, रावत और कोठियाल हारे चुनाव*
देहरादून। उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री के लिए चर्चित तीनों चेहरे चुनाव हार गए हैं। लालकुऑ से हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा माना जा रहा था। खटीमा से पुष्कर धामी भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री के चेहरे थे। इसके अलावा गंगोत्री से आम आदमी पार्टी के कर्नल अजय कोठियाल आप के मुख्यमंत्री के चेहरे थे।
इन सबमें सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और सरकार बनने से पहले ही सीएम पद के प्रमुख दावेदार रहे पूर्व सीएम हरीश रावत की है। उनके लिए अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आत्ममंथन का वक्त आ गया। लालकुआं के रण में रावत को जैसी करार हार मिली है, उसकी वजह से कांग्रेस के भीतर रावत की राजनीतिक हैसियल पर भी सवाल उठना तय है। हैरानी की बात है कि हरीश रावत पांच सालों में चार बार चुनाव हार गए हैं।पांच साल में यह रावत की चौथी बड़ी हार है। यह पहला मौका नहीं जब रावत को हार का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सीएम रहते हुए भी रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट से चुनाव एक साथ चुनाव हारे थे। उसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में नैनीताल सीट से रावत को हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि रावत हर हार के बाद नई ताकत के दोबारा उठ खड़े हुए, लेकिन वर्ष 2022 का चुनाव रावत के राजनीतिक करियर का अहम पड़ाव था। कुछ समय पहले रावत खुद भी कह चुके हैं, वो या तो सीएम बनेंगे या फिर घर ही बैठेंगे।
रावत की करारी हार से कांग्रेस गहरे सदमे में है। जिस रावत को कांग्रेस अपना मुख्य चेहरा मानते हुए चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था। भाजपा की आंधी में वो इस तरह धराशायी होंगे, किसी ने सोचा भी नहीं था।
हरीश रावत को राज्य की सियासत का सबसे सयाना नेता माना जाता है। लेकिन उनकी हार की वजह उनके फैसले को भी माना जाता है। वर्ष 2014 में धारचूला सीट पर उपचुनाव जीते रावत वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मैदानी सीटों पर शिफ्ट हो गए। हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला राजनीतिक रूप से बड़ी भूल साबित हुआ।
इस बार भी रावत सीट के चयन पर अंतिम क्षणों तक उलझे ही रहे। हाईकमान के दबाव के बाद उन्होंने पहले रामनगर सीट को चुनाव और टिकट हासिल भी कर लिया था। लेकिन पार्टी में उपजे विवाद के बाद रावत लालकुआं सीट पर शिफ्ट होने को भी आसानी से राजी हो गए।रावत वर्ष 2017 की हार का बदला इस चुनाव में भाजपा से चुकाना चाहते थे। इसके लिए वो पूरी ताकत से जुटे भी थे। साभार जनपक्ष आजकल