योग कर्मसु कौशलम्–लक्ष्मण सिंह बड़थ्वाल

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। आज हमारी संस्कृति और अध्यात्म के प्रकाश से संपूर्ण विश्व जगमगा उठा है। अपने प्राचीन पद्धति एवं विलक्षण आविष्कार योग को आज अखंड विश्व मान्यता देकर इसे विश्व योग दिवस के रूप में प्रतिष्ठा दे रहा है। आज जब पूरी दुनिया दिन प्रतिदिन के हो रहे वैज्ञानिक खोजों के बावजूद भी भयंकर बीमारियों एवं आपसी कलह के क्रूर झंझावातों से लहूलुहान है,इन परिस्थितियों में संपूर्ण विश्व की निगाहें अपने दिव्य देश भारत पर टिकी है। जिसने हर डूबती परिस्थितियों में इस विश्व को उबारा है। आज जहां कुछ राष्ट्र विरोधी तत्व भारतीय दर्शन संस्कृति अध्यात्म और ग्रंथों तथा संतों की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें आज हम अपने सशक्त प्रयासों के द्वारा यह याद दिलाएंगे कि हमारी विराट संस्कृति की देन महान आयुर्वेद और योग एवं ध्यान का अनुसरण कर आज संपूर्ण विश्व की चिकित्सा जगत,स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। चिकित्सा विज्ञान की सारी खोजों को आधार हमारा यह आयुर्वेद है। हमारी योग और ध्यान की कक्षाएं संपूर्ण विश्व की एक से बढ़कर एक शिक्षण संस्थाओं,सैन्य संगठन एवं बुद्धिजीवियों की बैठकों में गौरव सहित प्रस्तुत की जाती है तथा उनका अपार स्वागत होता है। हजारों वर्षों के कालखंड में जो संभव ना हो सका आज की हमारी प्रखर सरकार ने प्राचीन भारत की पद्धति योग को एक विश्व दिवस के रूप में मान्यता दिलवाकर हम समस्त देशवासियों के स्वाभिमान को एक असाधारण ऊंचाई प्रदान की है। योग के रूप में एक ऐसी जीवन पद्धति भारत ने दुनिया के सामने प्रस्तुत की है जिसे आर्थिक रूप से अमीर गरीब के साथ साथ सभी उम्र के बाल वृद्ध युवक और महिलाएं भी कर के चमत्कारिक लाभ पा सकते हैं तथा अपना जीवन धन्य बना सकते हैं। योग शरीर के अलावा मानव की मानसिक वृत्तियों को भी अत्यधिक प्रभावित करता है। इसी मानसिक क्लेश और परेशानियों से आज सारा विश्व बुरी तरह प्रभावित है। योग हमारी भावनाओं और प्रवृत्तियों पर भी जादू का असर डालता है। इसके प्रभाव से हमारी प्रवृतियां स्वतः ही शुभ कार्यों की ओर प्रवृत्त हो जाती है। आज के वर्तमान परिपेक्ष्य में हम सभी इस योग को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर अपनी समस्त समस्याओं का निदान पा सकते हैं, जो अन्य उपायों से संभव नहीं हो पा रहा है।

ये लेखक के निजी विचार है