केदार घाटी में हो रही बारिश से हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्याल हरियाली से आच्छादित लगे होने

प्रदीप कुमार

ऊखीमठ/श्रीनगर गढ़वाल। केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में निरन्तर हो रही बारिश से हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्याल हरियाली से आच्छादित होने लगे है। सुरम्य मखमली बुग्यालों के हरियाली से आच्छादित होने से बुग्यालों की सुन्दरता पर चार चांद लगने शुरू हो गयें है तथा जंगलों में विचरण करने वाले अनेक प्रजाति के जंगली जानवर बुग्यालों में निर्भीक उछल-कूद करने लगे है। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि बुग्यालों में हरियाली उगने से बरसात के समय बुग्यालों में उगने वाली अनेक प्रकार की जडी़-बूटियां भी अंकुरित होने लगी है। केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों के भूभाग में बसे बुग्याल हरियाली से आच्छादित होने से भेड़ पालकों ने धीरे-धीरे ऊंचाई वाले इलाकों की ओर रूख दिया है तथा जून प्रथम सप्ताह तक भेड़ पालक अपनी तक पहुंच जायेगें। केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में सुरम्य मखमली बुग्यालों की भरमार है। टिंगरी-विसुणी ताल,गडगू-ताली,पटूणी-मनणामाई तीर्थ,मदमहेश्वर-पाण्डव सेरा-नदी कुण्ड के आंचल में दूर-दूर फैले असंख्य मखमली बुग्याल है। हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्यालों को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। इन बुग्यालों में घड़ी भर बैठने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है। केदार घाटी में यदि आप किसी घाटी से चोटी की ओर अग्रसर होगें तो पहले सीढ़ीनुमा खेल-खलिहान,गांव-कस्बे,नदी-नाले आपको आनन्दित करेंगे फिर सघन वन सम्मोहित करेगें। करीब आठ हजार फीट के ऊपर सारा परिदृश्य बदला हुआ नजर आयेगा। पेड़-पौधे गुम हो जायेगें और नर्म-नाजुक मखमली घास का रुपहला विस्तार नजर आयेगा जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। इन बुग्यालों के पावन वातावरण में पल भर बैठने से मानव का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है और उसे सांसारिक राग,द्वेष,घृणा,लोभ,क्रोध,अहंकार जैसे भावों पर विजय पाने की शक्ति मिलती है तथा मानव में सत्य,स्नेह,संयम,पवित्रता,दान,दया जैसे भावों का उदय होता है। बरसात व शरत ऋतु में इन बुग्यालों में अनेक प्रजाति के पुष्प व जडी़ बूटियां अपने यौवन पर रहती है, इसलिए बरसात के समय बुग्यालों की सुन्दरता और अधिक बढ़ जाती है। हिमालय के आंचल में फैले मखमली बुग्यालों में कुखणी,माखुणी,जया-विजया,रातों की रानी सहित अनेक प्रजाति के पुष्प व जडी़ बूटियां प्रति वर्ष उगती है। सिद्ववा-विद्धवा नृत्य में कुखणी-माखुणी पुष्पों की महिमा का गुणगान बडे़ मार्मिकता के साथ किया जाता है। प्रकृति प्रेमी मदन भट्ट ने बताया कि केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में लगातार हो रही बारिश के कारण सभी मखमली बुग्याल हरियाली से आच्छादित है तथा मखमली बुग्यालों के हरियाली से आच्छादित होने के कारण बुग्यालों की सुन्दरता और अधिक बढ़ने लगी है। जागर गायिका राजेश्वरी पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों में मखमली बुग्यालों का वर्णन किया जाता है तथा हिमालय के आंचल में फैले असंख्य बुग्याल देवभूमि की धरोहर है। लेखक दमयंती भट्ट ने बताया कि हिमालय के आंचल में फैले बुग्यालों में ऐडी-आछरियो व इन्द्र की परियो का वास माना जाता है तथा वे आज भी इन बुग्यालों में अदृश्य रुप से नृत्य करते हैं। भेड़ पालक प्रेम भट्ट ने बताया कि बुग्यालों में हरियाली लौटने से सभी भेड़ पालक ऊंचाई वाले इलाकों के लिए अग्रसर होने लगे हैं।