गबर सिंह भण्डारी
ऊखीमठ/श्रीनगर गढ़वाल। मदमहेश्वर घाटी के रासी गांव में वैशाखी मेला पांच दिनों तक मनाया जाता है।पांच दिनों तक चलने वाले वैशाखी मेले में अनेक धार्मिक,सांस्कृतिक,आध्यात्मिक व पौराणिक परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि इस पांच दिवसीय वैशाखी पर्व पौराणिक जागरों के गायन,शिव-पार्वती नृत्य व राम रावण युद्ध के साथ समाप्त हो गया है। पांच दिवसीय वैशाखी मेले में सैकड़ों ग्रामीणों ने प्रतिभाग कर पुण्य अर्जित किया तथा पांच दिनों तक रासी गांव का वातावरण भक्तिमय बना रहा तथा ग्रामीणों में प्यार,प्रेम व सौहार्द बना रहा। जानकारी देते हुए राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार पांच दिवसीय वैशाखी मेले में अनेक पौराणिक परम्पराओं के निर्वहन करने की परम्परा आज भी रासी गांव में जीवित है। शिक्षाविद रवीन्द्र भट्ट ने बताया कि भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गांव में वैशाखी पर्व पर लगने वाला पांच दिवसीय वैशाखी मेले में पौराणिक परम्पराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है। बद्री केदार मन्दिर समिति पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत ने बताया कि पांच दिवसीय वैशाखी मेले का शुभारंभ पौराणिक जागरों से किया जाता है तथा पौराणिक जागरों के माध्यम से हरि के द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्भा हिमालय तक विराजमान सभी देवी-देवताओं की स्तुति के माध्यम से क्षेत्र की खुशहाली व विश्व कल्याण की कामना की जाती है। क्षेत्र पंचायत सदस्य बलवीर भट्ट ने बताया कि पांच दिवसीय वैशाखी मेले में मधु गंगा से गाडू घडा़ लाकर भगवती राकेश्वरी का जलाभिषेक कर विश्व शान्ति व समृद्धि की कामना की जाती है। हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि पांच दिवसीय वैशाखी मेले में अखण्ड धूनी प्रज्वलित कर रात्रि भर जागरण कर भगवती राकेश्वरी व भगवान मदमहेश्वर सहित तैतीस कोटि-देवी-देवताओं की स्तुति की जाती है। बिक्रम सिंह रावत ने बताया कि पांच दिवसीय वैशाखी मेले के समापन अवसर पर शिव पार्वती नृत्य व राम-रावण युद्ध मुख्य आकर्षण रहता है। रणजीत सिंह रावत ने बताया कि रासी गांव में आयोजित होने वाले पांच दिवसीय वैसाखी मेले में ग्रामीणों में भाईचारा व आपसी सौहार्द देखने को मिलता है। पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य भरोसी रावत ने बताया कि रासी गांव में लगने वाले पांच दिवसीय वैशाखी मेले में धियाणियों व ग्रामीणों के भारी संख्या में प्रतिभाग करने से आत्मीयता छलकती है तथा प्रदेश सरकार इस प्रकार के पौराणिक मेलो के संरक्षण व संवर्धन की पहल करती है तो इस प्रकार के मेलो को विश्व स्तर पर पहचान मिल सकती है तथा पौराणिक जागरों के गायन को नई पहचान मिल सकती है।