प्रदीप कुमार
पोखरी/श्रीनगर गढ़वाल। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नागनाथ पोखरी में वनस्पति विज्ञान विभाग तथा उत्तराखंड साइंस एंड एजुकेशन रिसर्च सेंटर देहरादून द्वारा दिनांक 26 एवं 27, फरवरी 2024 को हिमालयन इकोसिस्टम की चुनौतियाँ, प्रतिस्कन्दन एवं समुचित प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया,जिसमें उत्तराखंड तथा देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर पद्मश्री डॉ.कल्याण सिंह रावत जो कि मैती आंदोलन के जनक कहे जाते हैं , बतौर मुख्य अतिथि रहे। साथ ही सीएसआईआर -राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के मुख्य वैज्ञानिक डॉ.तारिक़ हुसैन तथा भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के मुख्य वैज्ञानिक डॉ.वी.पी.उनियाल जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। पद्मश्री डॉ.कल्याण सिंह रावत जी ने देश भर से जुड़े हुए शोधार्थियों तथा प्राध्यापकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में हिमालय की जैविविधता का संरक्षण अति आवश्यक हो गया है क्यूंकि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियां देश अथवा विश्व के किसी अन्य हिस्से में नहीं पायी जाती। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 200 से अधिक बुग्याल पाए जाते हैं। पिथौरागढ़ के व्यास,चौदस तथा दारमा घाटी से लेकर उत्तरकाशी के बंदरपूछ,काला नाग तक अनेकों बुग्याल अपनी मनमोहक सुंदरता के साथ-साथ वन-ौसगढ़ियों के लिए प्रसिद्ध हैं। पिथौरागढ़ के मुंशियारी के खलियाटॉप,चिपलकोट,गंगथल,रामा बुग्यालों से लेकर चमोली जनपद के राजा,औली,वेदिनी,भुना,कुंवारी,आली,वंशीनरायण,रुद्रनाथ,पनार,तुंगनाथ तथा रुद्रप्रयाग जनपद के मद्महेश्वर,कश्मिखर्क,देलसि बुग्याल प्रसिद्धत हैं। जनपद टिहरी में सबसे आकर्षक बुग्याल पंवाली,जौराई,खतलिंग,उत्तरकाशी जनपद में दयारा,कुश कल्याण,केदारकांठा,बागेश्वर जनपद मने नामिक, बिरदी,गोनिना,खाती इत्यादि बुग्याल अपनी जैव-विविधता तथा जड़ी बूटियों के लिए प्रसिद्द हैं। प्राचीन काल से हिमालय की अमूल्य जड़ी बूटियों के बारे में भारतीय आयुर्वेद ने पहचान की है। रामायण से लेकर महाभारत कल में अनेक ऐसे दृश्टान्त मिलते हैं जिनमे संजीवनी बूटी जैसे चमत्कारिक औषधियों का वर्णन मिलता है। इस तरह देखा जाये तो बुग्याल जड़ी बूटियों से भरे हुए अमृत स्वरूप वनस्पतियों का संसार है। सालमपंजा,रुद्रवती,विष,कंडारा,ब्रह्मकमल,कूट,सोमलता , रतनजोत,निर्विषी,भूत केशी जटामांसी,फ़ेंकामल,अतिष जैसे अनेक पौधे जीवन रक्षक औषधियां के लिए प्रसिद्द हैं। हिमालयी बुग्याल संवेदनशील परिस्थिक तंत्र न निर्माण करते हैं। देश के कुल क्षेत्रफल का 4% भूभाग बुग्याल से आच्छादित है। इतनी महत्वपूर्ण अमृतमय जड़ी-बूटियों को मानवीय हस्तक्षेप से दूर हिमालय की गॉड में सुरक्षित रखने की प्रकृति ने व्यवस्था की है, जहाँ से अपने अंदर विद्यमान बहुमूल्य तत्वों को लम्बे समय तक संरक्षित रखते हैं। यही बुग्याल गंगा-यमुना जैसी जीवन दायिनी नदियों को जल भी प्रदान करते हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ.वी.पी.उनियाल ने अपने 30 वर्षों तक वन्य जीवों विशेष रूप से चिडियाओं,कीटों एवं तितलियों के ऊपर शोध एवं संरक्षण के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि ये कीट परागण प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं जिसकी वजह से मानव अनाज,फल इत्यादि प्राप्त होते हैं। तथा पदों के जीवन चक्र पूर्ण होते हैं। डॉ.उनियाल ने बताया कि वर्तमान युग में मोबाइल टावर से निकलने वाली रेडिएशन से कीटों एवं चिडियाओं को बहुत नुकसान हो रहा है। ये रेडिएशन उनके फ्लाइट पथ को विचलित कर देते हैं। यदि किसी भी इकोसिस्टम को संरक्षित करना है तो कीटों का संरक्षण अति आवश्यक है। यदि पोलीनेशन नहीं होगा तो पौधों के नए बीज नहीं बनेंगे और बीज नहीं बनेंगे तो पौधों कि प्रजातियां विलुप्त होने लगेंगी और इकोसिस्टम का क्षरण शुरू हो जायेगा। इसी क्रम में सी.एस.आई.आर.राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान से आये हुए डॉ.तारिक़ हुसैन ने कहा कि हिमालय कि पौध विविधता बहुत ही अनूठी है क्यूंकि हिमालय में लगभग 10000 पौधों कि प्रजातियां हैं जिनमे से करीब 3160 प्रजातियां सिर्फ हिमालयी क्षेत्रों में ही पायी जाती हैं। उन्होंने बताया कि हिमालय क्षत्रों में 750 से ज्यादा प्रजातियों के ऑर्किड्स पाए जाते हैं। यदि हिमालयी क्षेत्रों का तथा उनके परिस्थिक तंत्र का संरक्षण नहीं किया गया तो हम दिन-प्रतिदिन अपनी अमूल्य प्राकृतिक धरोहर खोते जाएंग। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि आजकल पर्यटक उत्तराखंड में बहुत ज्यादा संख्या में आने लगे हैं जिसकी वजह से पहाड़ों में तापमान वृद्धि हो रही है। इस प्रकार कि तापमान वृद्धि से जलवायु चक्र तथा जीवों का सामान्य व्यवहार भी परिवर्तित हो रहा है जो कि प्रकृति एवं मानवता के लिए नकारात्मक सन्देश है। कांफ्रेंस के दूसरे दिन शोधपत्रों की ऑनलाइन प्रस्तुति के साथ समान्तर रूप से स्नातक जीव विज्ञानं वर्ग के विद्यार्थियों को औषधीय पौधों की पहचान करने एवं उनकी औषधीय गुणों के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। जिससे की विद्यार्थियों में इन पौधों के महत्वा के बारे में जागरूकता पैदा हो तथा वे इन पौधों के समुचित उपयोग एवं संरक्षण हेतु प्रेरित हों।
कार्यक्रम में उच्च शिक्षा निदेशालय उत्तराखंड के पूर्व सहायक निदेशक प्रो.प्रेम प्रकाश,डॉ.कमलापति चमोली,द्वाराहाट से डॉ.दर्शन सिंह कम्बोज,गोपेश्वर से डॉ.अमित जायसवाल, डॉ.प्रियनका उनियाल,डॉ.सुनील भंडारी , कर्णप्रयाग डॉ.इंद्रेश पांडेय के साथ विभिन्न संस्थानों से आये हुए शोध छात्र-छात्रों ने प्रतिभाग कर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। जिसको वैज्ञानिकों द्वारा आकलन कर उन्हें मार्गदशन दिया गया। सी.एस.आई.आर.राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संसथान लखनऊ के शोधछात्र दिलेस्वर प्रसाद को यंग साइंटिस्ट तथा पौशाली को वीमेन साइंटिस्ट अवार्ड के लिए नामित किया गया। राजकीय महाविद्यालय गैरसैण के डॉ.कृष्णा चंद्र को उत्कृष्ट प्रस्तुति प्रथम,द्वाराहाट कि गूंजा शाह को द्वितीय तथा एम.बी.स्नातकोत्तर महाविद्यालय कि शोध छात्र दीप पांडेय को तृतीय पुरष्कार के लिए नामित किया गया।
महाविद्यालय के प्राचार्य ने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से महाविद्यालय में अध्ययन एवं उच्च स्तरीय शोध का माहौल बनता है। जो कि हमारे युवा विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों को प्रेरणा देता है तथा शोध कार्य हेतु प्रोत्साहियत करता है। यह कांफ्रेंस इस महाविद्यालय में आयोजित होने वाला अभी तक का प्रथम कांफ्रेंस था इससे महाविद्यालय के साथ ही पोखरी क्षेत्र का मान बढ़ा है। इसके लिए उन्होंने कार्यक्रम के आयोजक सचिव वनस्पति विज्ञानं विभाग के डॉ.अभय श्रीवास्तव तथा संयोजिका जंतु विज्ञानं विभाग की डॉ.कंचन सहगल को विशेष रूप से बधाई दिया ।
आयोजक सचिव डॉ.अभय श्रीवास्तव जो कि स्वयं प्लांट डाइवर्सिटी एवं टेक्सोनोमी के क्षेत्र में शोध कार्य कर रहे हैं ने बताया कि इस आयोजन के सभी वक्ता उच्च श्रेणी के विद्वान थे जिन्होंने अपने अनुभव को विद्यार्थियों के साथ साझा किया तथा उन्हें उच्च स्तरीय शोध हेतु प्रेरित किये। कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी की संयोजिका डॉ.कंचन सहगल ने किया तथा कांफ्रेंस की थीम को परिभाषित करते हुए कांफ्रेंस की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर महाविद्यालय के शिक्षक डॉ.चंद्रसुत,डॉ.अनिल कुमार,डॉ.वर्षा सिंह,डॉ.सुनीता मेहता.डॉ.अंशु सिंह,डॉ.रेनू सनवाल,डॉ.आरती रावत,डॉ.शज़िआ,जगजीत सिंह,डॉ.अंजलि रावत एवं डॉ.कीर्ति इत्यादि उपस्थित रहे।