ऊखीमठ व मदमहेश्वर घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से काश्तकारों को रवि फसल की चिन्ता सताने लगी*

पर्यावरणविदों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फ्यूली निर्धारित समय से दो माह पहले ही खिल चुकी है। मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से क्षेत्र का शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है

प्रदीप कुमार

ऊखीमठ/श्रीनगर गढ़वाल। जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से काश्तकारों की रवि की फसल खासी प्रभावित होने से कास्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। खेत-खलिहानों की में मार्च महीने में खिलने वाली फ्यूली के जनवरी माह में खिलने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि पर्यावरणविदों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फ्यूली निर्धारित समय से दो माह पहले ही खिल चुकी है। मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से क्षेत्र का शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है तथा आने वाले समय में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं होती है तो मई-जून में बूंद-बूंद पानी का पानी का संकट होने के साथ बरसात के समय उगने वाली सेब के उत्पादन पर भी खासी गिरावट आ सकती है। मौसम विभाग ने 31 दिसम्बर 1 जनवरी तथा 9-10 जनवरी को बर्फबारी व बारिश का अनुमान तो किया था मगर जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का अनुमान भी सच साबित नहीं हो पाया। मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट देखने को मिल रही है तथा आने वाले समय में पेयजल की समस्या गम्भीर होने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। मदमहेश्वर घाटी गैड़ बष्टी के प्रगतिशील काश्तकार बलवीर राणा ने बताया कि जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं,जौ, मटर व सरसों की फसलें खासी प्रभावित हो चुकी है तथा आने वाले समय में काश्तकारों के समुख दो जून रोटी का संकट बन सकता है। व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष आनन्द सिंह रावत ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय भी बर्फ विहीन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है उन्होंने बताया कि दो दशक पर्व जनवरी व फरवरी माह में जमकर बर्फबारी होने से यातायात खासा प्रभावित हो जाता है तथा तुंगनाथ घाटी में भारी संख्या में सैलानियों की आवाजाही होने से घाटी गुलजार रहती थी मगर इस बार बर्फबारी न होने से शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच पूर्व अध्यक्ष मदन भट्ट ने बताया कि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण जलवायु परिवर्तन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। काश्तकार फगण सिंह पंवार ने बताया कि निर्धारित समय से दो माह पूर्व फ्यूली के साथ बुरांस के फूल भी खिलन लगे हैं तथा ऋतु में खासा परिवर्तन महसूस होने लगा है। जल संस्थान के अवर अभियन्ता बीरेन्द्र भण्डारी ने बताया कि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से सभी प्राकृतिक स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट आने लगे हैं तथा इस बार मार्च महीने से जल संकट गहराने से सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।