प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन गढ़वाल विश्विद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा वैज्ञानिक तथा तकनीक शब्दावली आयोग (CSTT), उच्च शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एकेडमिक एक्टिविटी सेंटर चौरास में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। इस दो दिवसीय कार्यशाला का मुख्य विषय “संसदीय लोकतांत्रिक परम्परा में तकनीकी शब्दावली का महत्व” है जिसमें देश भर के विषय विशेषज्ञ जुटकर संसदीय तकनीकी शब्दावली के विकास एवं संवर्धन के विषय में विचार-विमर्श करेंगे ।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो.गिरीश नाथ झा, अध्यक्ष वैज्ञानिक तथा तकनीक शब्दावली आयोग (CSTT) , संरक्षक गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल, विशिष्ठ अतिथि प्रो.काशी नाथ जेना (कुलपति हिमालयन विश्वविद्यालय देहरादून), विशेष अतिथि डॉ.शहज़ाद अहमद अंसारी (सहायक निदेशक, वैज्ञानिक तथा तकनीक शब्दावली आयोग ), प्रो.हिमांशु बौड़ाई ( संकायाध्यक्ष मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय) तथा कार्यशाला के संयोजक प्रो.एम.एम.सेमवाल उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.राकेश नेगी ने कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत करके की।
इसके पश्चात कार्यक्रम संयोजक प्रो.एम.एम.सेमवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए इस कार्यक्रम के विषय में अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में तकनीकी परिभाषिक शब्दावली के महत्व को रेखांकित करते हुए इसके इतिहास तथा वर्तमान संदर्भों के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने जोर देकर कहा कि विषयगत शब्दों का तकनीकी स्वरूप समझे बिना इनका भावार्थ नहीं समझा जा सकता और जहां एक तरफ संसदीय तकनीकी शब्दावली को समृद्ध करने की विशेष आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ इसमें विदेशी क्लिष्ट भाषा के बजाय सुगृहय भारतीय भाषाओं का उपयोग किया जाना भी नितांत आवश्यक है। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में इसी प्रकार के तकनीकी शब्दों पर चर्चा की जायेगी साथ ही उनके मानकीकरण हेतु आयोग को रिपोर्ट दी जायेगी।
मुख्य अतिथि प्रो.गिरिश नाथ झा ने कहा कि गढ़वाल क्षेत्र बहुत सुंदर और बहुआयामी क्षेत्र है। गढ़वाली भाषा पर वर्तमान में बहुत शोध कार्य हो रहा है। भारत बहुभाषायी देश है। एक वाक्य को हम अलग- अलग भाषाओं में अलग- अलग तरह से उपयोग करते है। यह हमारी बहु भाषायी विरासत है। प्रो.झा ने कहा कि महत्वपूर्ण शब्दावली कमरे के अन्दर नही बल्कि देश भर में घूमकर बनायी जाती है, ताकि तकनीकी शब्दावलियों में स्थानीयता और भारतीयता की झलक आए। इससे आम लोग भी तकनीकी शब्दावलियों का सहजता से उपयोग कर पाते है। हमारा उद्देश्य है कि सभी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली का उपयोग कर पुस्तके लिखी जाय ताकि नयी पीढ़ी अपनी भाषाओं में ज्ञान प्राप्त कर सके। वैज्ञानिक एवं तकनीकि शब्दावली मंत्रालय देश भर से अलग अलग भाषाओं में शब्दावलियों का निर्माण कर ज्ञान और समझ को आसान बनाना चाहता है, ताकि देशभर में अलग अलग भाषाओं वाले विद्यार्थियों के ज्ञान में भाषा रुकावट न बने।
विशिष्ठ अतिथि प्रो.के.एन.जेना ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कार्यशाला है जिसे देशभर में पहुचाने की आवश्यकता है। संसदीय लोकतान्त्रिक परंपरा में तकनीकी शब्दावली के महत्व पर ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन संसद और विधानसभाओं में होना चाहिए ताकि हमारे प्रतिनिधि लोकतांत्रिक परम्पराओ से अवगत हो पायें। बहुत बार हमारे जन प्रतिनिधि संसदीय तकनीकी शब्दावलियों का ज्ञान न होने के कारण लोकतांत्रिक परंपरा का पालन नहीं कर पाते है। तकनीकि शब्दावली आयोग एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है, जिसे देश भर में पहचान की आवश्यकता है ताकि हम केवल राजनीतिक रूप से लोकतांत्रिक न रहे बल्कि सामाजिक रूप से भी लोकतांत्रिक बने।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति अन्नपूर्णा नौटियाल ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग का कार्यशाला के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह कार्यशाला विश्वविद्यालय को तकनीकी शब्दावलियों से संपन्न बनाएगी। गढ़वाल विश्वविद्याल भाषाओं के विषय में भारतीयता व स्थानीयता को बढ़ावा दे रहा है। नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को गढ़वाल विश्वविद्यालय ने गढ़वाली भाषा में अनुवाद किया है। गढवाल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की स्मारिका अब तीन भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और गढ़वाली भाषा में होगी। हम अपने छात्रों को ज्ञान की भाषायी बाध्यता से दूर करना चाहते है। इसके अलावा विश्वविद्यालय यह भी प्रयास कर रहा है कि विद्यार्थियों को अपनी मातृभाषा के अलावा दूसरी भाषा का भी ज्ञान हो, इसके लिए विश्व विद्यालय ने डिप्लोमा व प्रमाण पत्र कोर्स शुरू किये है।
डॉ.शहजाद अंसारी ने कहा कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग देश भर में स्थानीय भाषाओं से तकनीकी शब्दों का आकड़ा तैयार कर रहे हैं। आयोग, तकनीकी शब्दों के लिए स्थानीय भाषाओं से लिए जाते है। हम कोशिश कर रहे है कि देशभर से एकत्र की गई तकनीकी शब्दावली का उपयोग आम बोलचाल की भाषा में शामिल हो ताकि हमारा लक्ष्य पूर्ण हो सके।
प्रो.हिमांशु बौड़ाई डीन स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज ने संसदीय तकनीकी शब्दावली के भारतीयकरण की तरफ ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि जिस प्रकार महात्मा गांधी, विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण ने शासन तथा सरकार के लिए पृथक भारतीय भाषा का निर्माण तथा इस्तेमाल किया उससे हमें अवश्य ही प्रेरणा लेनी चाहिए और इसी प्रकार तकनीकी शब्दावली का निर्माण करना चाहिए।
इस अवसर पर मुख्य नियंता प्रो.बी.पी.नैथानी, अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो.महावीर सिंह नेगी, मुख्य छात्रावास अधीक्षक प्रो.दीपक कुमार, प्रो.नावेद जमाल , प्रो.यूसी गैरोला, प्रो.वीरपाल सिंह चौधरी, प्रो.सुनील खोसला, प्रो.राजपाल सिंह नेगी, डॉ.दिनेश गहलोत,डॉ.सर्वेश उनियाल, डॉ.आकाश रावत, डॉ.कपिल पँवार, डॉ.आशुतोष गुप्त, डॉ.अमित कुमार शर्मा कार्यशाला में आचार्य कमला कान्त मिश्र, पूर्व निदेशक, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान (सम्प्रति केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय), दिल्ली, डॉ.एम.पी. मिश्रा, इग्नू, दिल्ली, डा.ममता त्रिपाठी, गार्गी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय तथा डा.अजय कुमार मिश्रा, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ने विशेषज्ञों के रुप में इस संगोष्ठी में भाग लिया। इसके साथ ही 150 से अधिक शिक्षक, शोधकर्ताओं ने इस सेमिनार में प्रतिभाग किया।