प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल यूँ तो राजनीति में अक्सर नेता लोग पहले से ही हवा हवाई घोषणाएं करते फिरते थे। पर पहले कोई उनको सीरियसली नहीं लेता था। पर कालांतर में ऐसा संभव हो सकता है।ऐसा लगने लगा है। कोई भी नेता हो सिर्फ और सिर्फ मुफ्त की घोषणाएं करता फिर रहा है। इसकी शुरुआत दिल वालों की दिल्ली से हुई है। वहां बिजली मुफ्त है, राशन मुफ्त है ,पानी मुफ्त है। और आने वाले समय में जाने क्या क्या मुफ्त होता है।
दिल्ली वाले नेताओं की दरियादिली देखकर और राज्य के नेताओं और जनता के हौसलों में गजब की जान आयी है। जब दिल्ली वाले मुफ्त की ऐश कर सकते हैं ,तो और राज्यों की जनता ने क्या बिगाड़ा है।वह भी तो मुफ्त की हकदार है।उसे भी वोट के बदले मुफ्त की दरकार है।अब जनता क्या है,उसे पता है कि नेता लोग चुनाव जीतने के पांच साल बाद ही उनके दर पर मत्था टेकने आते हैं।चुनावों के बाद वे गधे के सींग की तरह गायब हो जाते हैं। तो फिर क्यों न मुफ्त का हकदार बना जाए।क्यों न मुफ्त का माल उड़ाया जाए।इस मंहगाई में अगर मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी मिल जाये तो फिर क्या कहना।वैसे भी मंहगाई डायन खाये जात है।
रोजगार नहीं हाथ है। तो फिर मुफ्त बिजली पानी काहे न फूंके भैया।यही तो अपने लोकतंत्र की खूबी है। इस हाथ दे ,उस हाथ ले। तू खाये जा हमें भी खिला।कहते हैं न ताली दोनों हाथों से बजती है। तुम भी खाओ, हमें भी खिलाओ। तभी तो और नेता पब्लिक से दूर हो रहे हैं, और मुफ्त की रेवड़ी बांटने वालों की पौ बारह है।गली गली में मुफ्त बांटने वालों के कसीदे पढ़े जा रहे हैं।
लोग वाह वाह कर रहे हैं।अब जनता मुफ्त बांटने वालों को ध्यान से सुन रही है ।नित नए नए सपने बुन रही है। सुंदर सुंदर ख्वाब देख रही है।सुनहरे ख्वाब देख रही है। लाजवाब ख्वाब देख रही है। कहते हैं कि दिल जीतने के लिए पेट से होकर गुजरना पड़ता है। मुफ्त बांटने वालों ने दिल और पेट पर कब्जा कर लिया है।
पब्लिक खुश है अब सब मुफ्त होता जाएगा । ।सब मुफ्त का माल उड़ाएंगे । जय हो लोकतंत्र की। जय हो चुनावों की ।वोट दो ,और सब मुफ्त लो। बिजली,पानी, राशन, स्कूटी ,मोटरसाइकिल, मोबाइल, और कम्प्यूटर सब पब्लिक की जद में हैं। अब काम करने की जरूरत नहीं है। अब सब मुफ्त होता जाएगा। मुफ्त का माल उड़ाने में किसी का क्या जाता है।मुफ्त का माल उड़ाने में दिल बेरहम हो ही जाता है।इसे ही तो कहते हैं माले मुफ्त दिले बेरहम।
आज मलूकदास जी बहुत याद आ रहे हैं जिन्होंने कभी कहा था।
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए
सबके दाता राम।
-नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।
(यह लेखक के निजी विचार है )