वो बाघिन व उसका शावक –कवि नीरज नैथानी

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। आजकल पहाड़ी गांव कस्बों में बाघ का आतंक फैला हुआ है।आए दिन अखबारों में खबरें आ रही हैं कि फलां गांव में बाघ ने मासूम बच्ची को निवाला बना लिया, कभी किसी महिला पर झपट्टा मार कर घायल कर दिया,कहीं किसी को दौड़ा दिया वगैरह वगैरह।
बाघ की दहशत का आलम यह है कि लोग शाम अंधेरा ढलने से पहले ही घरों में कैद हो जाने को मजबूर हो गए हैं।सुबह सैर पर जाने वाले जब तक ठीक से उजाला न हो जाए बिल्कुल बाहर नहीं निकल रहे।
आते जाते लोग रास्ते के दाएं बाएं लगी झाड़ियों पर सतर्क नजर रखते हैं क्या पता यहीं कहीं छिपा बैठा हो घात लगाए।
मैं एक रोज सुबह हवाखोरी के लिए निकला तो एक पहाड़ी मोड़ के बाद देखा कि पास के घास तप्पड़ में वह बाघिन अपने शावक के साथ पसरी हुई है।उस पर नजर पड़ते ही मेरे होश फाख्ता हो गए।
अभी मैं अपने डर पर काबू करने की कोशिश कर ही रहा था कि महसूस किया वह भी मुझे देखकर भयभीत हो रही है।
शायद सोच रही हो कि मैं शोर मचाकर आसपास से लोगों को न बुला लूं। फिर सभी उस पर व उसके बच्चे पर लाठी डंडो व पत्थरों से चौतरफा हमला न कर दें।
मैं उससे पूछना चाह रहा था क्यों हमारे मुहल्ले के बच्चों को निवाला बना रही हो? तुम्हारे डर से छोटे बच्चों ने आंगन चौक में खेलना बंद कर दिया है,महिलाएं घास चारे के लिए जंगल नहीं जा रही हैं,लोग बाहर निकलने में डर रहे हैं?
मैंने उसकी कातर दृष्टि में झांका तो लगा कि वह शिकायत कर रही हो आखिर अपने इस छोटे बच्चे को लेकर कहां जाऊं?मेरे आवासीय परिसर के घने वृक्ष काट कर तुमने सीमेंट के जंगल फैला दिए हैं। जब कहीं भी हरे भरे जंगल न रहे तो जाहिर है कि जंगली पशु पक्षी,जीव जंतु वे कहां रहेंगे। मेरे सब आहार स्रोत तुमने नष्ट कर दिए,मेरा बच्चा कई दिनों से भूखा है उसे क्या खिलाऊं?