“नशायुक्त युवा”. शराब ना पियां मेरा भुलौं–लक्ष्मण सिंह बर्तवाल

शीर्षक-“नशायुक्त युवा”. शराब ना पियां मेरा भुलौं–लक्ष्मण सिंह बर्तवाल

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। नशायुक्त के प्रभाव में आज हर युवा आ गया है इस पर एक स्वरचित कविता। कई सम्मानों से सम्मानित। हिंदी साहित्य रचना सम्मान पत्र, सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, 6 रचनाओं का साझा संकलन, सोहम म्यूजियम हिमालयन मसूरी द्वारा यूनाइटेड कलर्स ऑफ उत्तराखंड से सम्मानित। लक्ष्मण सिंह बर्तवाल द्वारा प्रस्तुत

शायद कमजोर पड़िगे आज मां कि संस्त्रधारी कु प्रभाव जु आज हम घिच्चा पर शराब कु गिलास लगौणा छां,,जैं जिभ्या थै कतै नी भांदु छौ एक साल मां का दूध सी अलावा कुछ भी,,आज देखा या कुंगली ज्वानी शराब की बोतल्यों मा ढलकी गे। औण वालू वक्त त शायद सुधरी भी जालू मेरा भुलौं ठोकरियों खैक,,पर भोल कैन देखी,,पैली हम अपणु आज त संवारी द्यां,,,सुण मेरा नवल किशोर,,भौत मिलला शराब का बानां, बाटा का अबाट लीक जाण वाळा त्वेकु,,,न बिरड़ी मेरा लाटा तौं बटोहियों दगड़ी,, छन वीं मां की संस्त्रधारी का बुरा सौं त्वेकु,,,महफिल त कक्खी भी बैठी जाली मेरा नवल किशोर,,पर वीं महफिल मा नी व्होण्यां हमारा संस्कारु कू मान,,चंद द्वी चार लाठ्या काठ्या मिलिन जु त्वेकु,,त कन मा भूली गै तू अपणु आत्मसम्मान,,,खैर आत्मसम्मान पर त लगणी रैली हाळ,,पर तिन त सपाचट ख्वेली ब्वे बाबू कु स्वाभीमान। नी मिलण्यां ईं दारु सी नफा,,रैलू सदानी सब्बु सी खफा,,,करी कमायीं सब्बी ईं दारू मा लगी जाण,,भोळ सब्बु की आंख्यों आंसू दीक,,त्वेन माटा मा मिली जाण। अरे नी जाणी सकलु तु,, तेरा जीवन कू मोल,,पर छै तू ब्वे बाबू का वास्ता अनमोल,,,,आज संभली सकदी त संभली जा भुल्ला,,,ब्याली त स्यू हम दगड़ी छौ बैठ्यूं,,इन बोलला लोग,,,ईं दारू का बाना मेरा भुल्ला,,, त्वेन याद बणीं की रै जाण भोळ। क्य छ धर्युं ईं द्यूकी दारू मा ईन,,,जु भूली गै तू सैडू घर द्वार,,,अर जरा गौर स्ये देखी अपरी मुखड़ी मेरा भुल्ला,,जु पैली छै भली सजीली अब नी रै तेरा मुखड़ी पर वा अन्वार। भौत मन्नतों सी मां बाबाजिन वे विधाता सी तू मांगी व्होलु,,,ईं आश मा की मेरु व्होलु त मैं खलौलु,,पर क्य जाण्न छै की बेटा द्वी पैक का बाद सब्बी कुछ बिसरी जालू,,सैथ भूली जांद व्होलु तू समय पर घौर जाण आज,,पर मां हमेशा समय पर औंद छै की भूखु रैगी मेरु लाल आज। बाबूजी भी अब कम प्येंदिन यू सोचिकी की बेटा त निकली सौ हाथ ऐथर,,,पर शायद मेरी भी बैठीं रांद छै महफिल खयाल आज ऐ जब देख्यी पैथर। ज्वा जिकुड़ी मजबूत कन्न छै,,जीवन की लड़ै लौड़्न का खातिर स्या फुक्येगी बिना लगायां आग,,,ज्वा हर सांस ज्यूण छै मां बाबाजी का वास्ता,,तौं फेफड़ौं पर भी लगैली बणांग। चिंता चिता समान व्होंदी मेरा भुल्ला,,स्या दारु सी नी व्हे सकदी हमसी दूर,,अपणा आचरण शुद्ध कन्न पड़दिन मेरा भुल्ला तब जैक मिलदू आनंद भरपूर,,,कक्खी देर ना व्हे जौ मेरा भुल्ला,,हीट अभी भी सही,अर शुद्ध राह,,निथिर देख ले भोळ जीवन नष्ट व्हे जाणीन सपना सारा जौं पूरा कन्न की रै जिंदगीभर चाह,,,फ्येर वक्त कुछ इन औलू की दर्द सी औली हर पल मुख सी आह,,फ्येर अग्नि तै समर्पित व्हे जाण,,अंत्येष्टी व्हेकी स्वाह

स्वरचित रचना- लक्ष्मण सिंह बर्तवाल
गांव-पल्यापटाला,पोस्ट ऑफिस-घंडियालधार। लोस्तु टिहरी गढ़वाल। उत्तराखण्ड।